चैत्र नवरात्रि 2019: शक्ति का दूसरा नाम ब्रह्मचारिणी क्यों पड़ा ?

Edited By Jyoti,Updated: 07 Apr, 2019 07:30 AM

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कल से यानि 6 अप्रैस से नवरात्रि का पर्व शुरू हो चुका है। इसके साथ ही ये भी सब जानते होंगे कि ज्योतिष के अनुसार नवरात्रि के 9 दिन शक्ति के नौ रूपों की पूजा की जाती है। आज चैत्र नवरात्रि का दूसरा दिन है।

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कल से यानि 6 अप्रैस से चैत्र नवरात्रि का पर्व शुरू हो चुका है। इसके साथ ही सब ये भी जानते ही होंगे कि ज्योतिष के अनुसार नवरात्रि के 9 दिन शक्ति के नौ रूपों की पूजा की जाती है। आज चैत्र नवरात्रि का दूसरा दिन है। इस दिन देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा का विधान होता है। बता दें शास्त्रों में देवी के नौ के नौ रूपों के अवतरण की कथा वर्णित है। आइए जानतें हैं देवी ब्रह्मचारिणी से जुड़ी पौराणिक कथा।

"मां ब्रह्मचारिणी उपासना मंत्र: दधाना कपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।"
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शास्त्रों के अनुसार नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। मां दुर्गा के उपासक और भक्त को अनंत कोटि फल प्रदान करने वाली मां ब्रहचारिणी मां दुर्गा की नवशक्ति का दूसरा स्वरूप है।माता ब्रह्मचारिणी का स्वरुप बहुत ही सात्विक और भव्य है। यहां ब्रम्ह का अर्थ तपस्या से है। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। 

ब्रम्हचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली। देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है। इस देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं।
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पूर्व जन्म में इस देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात ब्रम्हचारिणी नाम से अभिहित किया गया। 

एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया। कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। 

कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया। कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रघ्चारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा- हे देवी! आज तक किसी ने ऐसी कठोर तपस्या नहीं की। यह तुम्हीं से ही संभव थी।

तुम्हारी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।  इस देवी की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए। मां ब्रहचारिणी देवी की कृपा से सर्व सिद्धि प्राप्त होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है।
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