पूरे देश में बहेगी ऋग्वैदिक नदी सरस्वती, पटियाला में बनेगा जलाशय, राजस्थान के गंगानगर से बनेगा 200 किलोमीटर लंबा नदी का ट्रैक

Edited By Prachi Sharma,Updated: 14 Jan, 2024 09:23 AM

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सैंकड़ों साल पुरानी ऋग्वैदिक नदी सरस्वती के पंजाब से नाते को जीवंत करने के लिए पटियाला के सगरा गांव में एक जलाशय का निर्माण किया जाएगा। सरस्वती और घग्गर

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चंडीगढ़  (अर्चना सेठी): सैंकड़ों साल पुरानी ऋग्वैदिक नदी सरस्वती के पंजाब से नाते को जीवंत करने के लिए पटियाला के सगरा गांव में एक जलाशय का निर्माण किया जाएगा। सरस्वती और घग्गर नदी जिस स्थान पर एक-दूसरे से मिलती हैं, उस जगह बनने वाले इस जलाशय की वजह से भूमिगत जल रिचार्ज तो होगा ही साथ ही पंजाब बरसात के दिनों में आने वाली बाढ़ के प्रकोप से भी बच सकेगा।

पंजाब में जलाशय का निर्माण और राजस्थान के श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ से 200 किलोमीटर नदी खुदवाने का काम किया जाएगा ताकि पूरे देश में सरस्वती नदी को प्रवाहित किया जा सके। हरियाणा सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड ने पंजाब सरकार को जलाशय से संबंधित और केंद्रीय जलशक्ति मंत्रालय को 200 किलोमीटर लंबी नदी के निर्माण से संबंधित प्रस्ताव सौंपने का फैसला किया है। सिर्फ इतना ही नहीं हाल ही में सरस्वती नदी पर अध्ययन करने वाली शोधकर्त्ताओं की टीम ने सिरसा से लेकर रन ऑफ कच्छ तक सरस्वती नदी के 2000 किलोमीटर तक के बहाव को ट्रैक करने में भी कामयाबी हासिल की है। 

लूनी की सरस्वती नदी की शाखा के तौर पर हो चुकी है पहचान : हरियाणा सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड के उपाध्यक्ष धुम्मन सिंह किरमिच का कहना है कि सिरसा से लेकर रन ऑफ कच्छ तक सरस्वती नदी बह रही है। सिर्फ 200 किलोमीटर का एक ट्रैक है जिस पर नदी का निर्माण किया जाए तो पूरे देश में सरस्वती नदी को बहते हुए देखा जा सकेगा। राजस्थान के श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ से आगे 200 किलोमीटर की राह पर नदी का निर्माण जरूरी है।

200 किलोमीटर तक नदी बनने के बाद नदी का पानी लूनी नदी में जाकर गिरेगा। लूनी नदी को सरस्वती नदी की ही शाखा कहा जाता है। जयपुर और अजमेर के बीच बहने वाली लूनी नदी राजस्थान को पार करने के बाद गुजरात में जाकर सरस्वती नदी से मिलती है। 200 किलोमीटर नदी का निर्माण कार्य पूरा होने के बाद पूरे देश में सरस्वती नदी बहने लगेगी। कई विद्वान सरस्वती नदी की पहचान उत्तर पश्चिमी भारत में बहने वाली घग्गर नदी से कर चुके हैं। धुम्मन सिंह किरमिच का कहना है कि पटियाला के सगरा गांव से होेते हुए कई गांवों से सरस्वती नदी का ट्रैक है इसलिए सगरा गांव में एक जलाशय का निर्माण भी करवाने की योजना है। 

राजस्थान और गुजरात में बहने वाले नदी के ट्रैक को खंगाला :  धुम्मन सिंह किरमिच का कहना है कि हरियाणा सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड के नदी से जुड़े शोधकर्त्ताओं की टीम ने हाल ही में राजस्थान और गुजरात का दौरा किया। राजस्थान और गुजरात में बहने वाले नदी के ट्रैक को खंगाला। गुजरात के पाटन जिले में सरस्वती नदी के तट पर स्थित रानी का वाव विश्व धरोहर है, जो एक बावड़ी है। इसके निर्माण का श्रेय 11वीं शताब्दी के चौलुक्य राजा भीम प्रथम की पत्नी उदयमती को जाता है, जिसने अपने पति की याद में इसे बनवाया था। 

गाद से भरी बावड़ी को वर्ष 1940 के दशक में फिर से खोजा गया। 
80 के दशक में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा बावड़ी को बहाल किया गया। वर्ष 2014 में भारत में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों में से एक के रूप में इसको सूचीबद्ध किया गया। माना यह जाता है कि सरस्वती नदी के तट पर यह बावड़ी पानी के संरक्षण के लिए बनवाई गई थी। वाबड़ी को बनाने में करीब 20 साल लगे। आर्कियोलॉजी विभाग की खुदाई में निकाली गाद के बाद बहुत खूबसूरत एक आकृति सामने आई जिसे पुरातत्व विभाग ने सहेजने के बाद इसको हैरिटेज घोषित किया। 

यूनेस्को ने भी इस धरोहर को विश्व धरोहर घोषित किया। कृति में सभी देवताओं का वर्णन है, भगवान विष्णु जी के अवतारों के चित्र, मां दुर्गा, मां सरस्वती का बहता हुआ स्वरूप बीच में लगा हुआ है। बावड़ी की खास बात यह है कि यह भारतीय करंसी 100 रुपए के नोट पर भी छपी हुई है। 

सरस्वती के तट पर करते हैं लोग पिंडदान
धुम्मन सिंह किरमिच का कहना है कि गुजरात में आज भी सरस्वती नदी पूरे प्रवाह में बहती है। मोक्ष प्राप्ति के लिए लोग बड़ी तादाद में इस जगह पर पिंडदान के लिए पहुंचते हैं। पिहोवा में भी सरस्वती नदी के घाट पर लोग पिंडदान करते हैं। सरस्वती नदी को मोक्ष प्रदान करने वाली नदी कहा जाता है। पंजाब में जलाशय, राजस्थान में नदी का ट्रैक बनने के बाद पूरे देश में सरस्वती नदी बहने लगेगी। उनका कहना है कि नदी से जुड़े इतिहास को खंगालने के लिए हर जगह मिट्टी, पत्थर के सैंपल लिए जा चुके हैं और उन सभी सैंपलों को जांच के लिए प्रयोगशाला में भेजा गया है। रिकॉर्ड कहते हैं कि सरस्वती नदी का उद्गम स्थल उत्तराखंड का बंदरपुच्छ गलेशियर है। वहां से नदी के पेलियो चैनल्स हरियाणा में पाए गए हैं। हरियाणा से पंजाब की तरफ से होते हुए नदी राजस्थान, फिर गुजरात जाती है और वहां से समुद्र में समा जाती है।

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