श्री राम चरित्रमानस: इन मानस मंत्रों से जानिए कैसे मिलती है भवसागर पार करने की शक्ति?

Edited By Jyoti,Updated: 19 Mar, 2022 06:01 PM

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हमारे हिंदू धर्म में लगभग हर देवी-देवता के ऊपर कोई न कोई ग्रंथ आदि रचा गया है। तो वहीं ऐसे भी देवी-देवता है जिन पर एक नहीं बल्कि दो-दो ग्रंथों रचित हैं। इन्हीं देवताओं में एक

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हमारे हिंदू धर्म में लगभग हर देवी-देवता के ऊपर कोई न कोई ग्रंथ आदि रचा गया है। तो वहीं ऐसे भी देवी-देवता है जिन पर एक नहीं बल्कि दो-दो ग्रंथों रचित हैं। इन्हीं देवताओं में एक नाम श्री राम चंद्र का शामिल है। श्री राम के जीवन पर दो ग्रंथ रचित हैं, एक रामायण और दूसरा श्री राम चरित्र मानस। आज हम आपको एक बार फिर इसमें वर्णित कुछ मानस मंत्रों के बारे में बताने जा रहे हैं। जिनमें श्री राम के जीवन से जुड़े प्रसंग उल्लेखित है। 

राम अनंत अनंत गुन अमित कथा बिस्तार ⁠। 
सुनि आचरजु न मानिहहिं जिन्ह कें बिमल बिचार।। ⁠

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इस श्लोक में तुलसीदास जी द्वारा उल्लेख किया गया है कि श्री रामचन्द्र जी अनन्त हैं, उनके गुण भी अनन्त हैं, तथा इनकी कथाओं का विस्तार भी अनन्त व असीम है। अतः जिस व्यक्ति के विचार निर्मल होते हैं, वे इनकी कथा को सुनकर आश्चर्य नहीं मानते।

नौमी भौम बार मधुमासा । 
अवधपुरीं यह चरित प्रकासा ⁠।⁠। 
जेहि दिन राम जनम श्रुति गावहिं । 
तीरथ सकल तहाँ चलि आवहिं ⁠।⁠। 

श्री राम चरित्र मानस के इस श्लोक में बताया गया है कि चैत्र मास की नवमी तिथि मंगलवार को श्री अयोध्या जी में यह चरित्र प्रकाशित हुआ, जिस दिन श्री राम जी का जन्म होता है, वेद कहते हैं कि इस पावन दिन सारे तीर्थ श्री अयोध्या जी में चले आते हैं। 

असुर नाग खग नर मुनि देवा । 
आइ करहिं रघुनायक सेवा ⁠।⁠। 
जन्म महोत्सव रचहिं सुजाना । 
करहिं राम कल कीरति गाना ⁠।⁠। 

तमाम असुर, नाग, पक्षी, मनुष्य, मुनि और देवता अयोध्या जी में आकर श्री रघुनाथ जी के दर्शन करके उनकी सेवा करते हैं। तो वहीं अन्य लोग जन्म का महोत्सव मनाते हैं और श्रीराम जी की सुन्दर कीर्तिका गान करते हैं।

मज्जहिं सज्जन बृंद बहु पावन सरजू नीर ⁠। 
जपहिं राम धरि ध्यान उर सुंदर स्याम सरीर ⁠।⁠।⁠ 

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इस पावन दिन सज्जनों के समूह श्री सरयू जी के पवित्र जल में स्नान करते हुए हृदय में सुन्दर श्याम शरीर श्री रघुनाथ जी का ध्यान करते हैं और उनके नाम का स्मरण करते हैं।

दरस परस मज्जन अरु पाना । 
हरइ पाप कह बेद पुराना ⁠।⁠। 
नदी पुनीत अमित महिमा अति । 
कहि न सकइ सारदा बिमल मति ⁠।⁠। 

 
वेद पुराणों में उल्लेख है श्री सरयू जी का दर्शन, स्पर्श, स्नान और जलपान पापों को हरता है, यह नदी अत्यंत पावन है, इसकी महिमा अनन्त है। इसका वर्णन विमल बुद्धि वाली सरस्वती जी भी नहीं कर सकतीं।

राम धामदा पुरी सुहावनि । 
लोक समस्त बिदित अति पावनि ⁠।⁠। 
चारि खानि जग जीव अपारा । 
अवध तजें तनु नहिं संसारा ⁠।⁠। 

यह शोभायमान अयोध्यापुरी श्री रामचन्द्र जी के परम धाम को देने वाली है, सब लोकों में प्रसिद्ध है और अत्यन्त पवित्र है। धार्मिक शास्त्रों में बताया गया है कि जगत्‌ में अण्डज, स्वेदज, उद्भिज्ज और जरायुज चार प्रकार के अनन्त जीव हैं, इनमें से जो कोई भी अयोध्या जी में शरीर छोड़ते हैं वे फिर संसार में नहीं आते बल्कि जन्म मृत्यु के चक्कर से छूटकर भगवान के परम धाम में निवास करते हैं।

सब बिधि पुरी मनोहर जानी । 
सकल सिद्धिप्रद मंगल खानी ⁠।⁠। 
बिमल कथा कर कीन्ह अरंभा । 
सुनत नसाहिं काम मद दंभा ⁠।⁠। 

श्री राम चरित्र के रचयिता तुलसीदास जी कहते हैं कि मैंने इस अयोध्यापुरी को सब प्रकार से मनोहर, सब सिद्धियों की देने वाली और कल्याण की खान समझकर इस निर्मल कथा का आरम्भ किया, जिसके सुनने से काम, मद और दम्भ नष्ट होते हैं। 

रामचरितमानस एहि नामा । 
सुनत श्रवन पाइअ बिश्रामा ⁠।⁠। 
मन करि बिषय अनल बन जरई । 
होइ सुखी जौं एहिं सर परई ⁠।⁠। 

रामचरितमानस नामक इस ग्रंथ को सुनने वाले कानों को शान्ति की प्राप्ति होती है। मन रूपी हाथी विषय रूपी अग्नि में जल रहा हो, तो श्री राम चरितमानस रूपी सरोवर में आ पड़ने से सुख की प्राप्ति होती है। 

रामचरितमानस मुनि भावन । 
बिरचेउ संभु सुहावन पावन ⁠।⁠। 
त्रिबिध दोष दुख दारिद दावन । 
कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन ⁠।⁠। 

बताया जाता है कि रामचरित मानस मुनियों का प्रिय है, जिसकी रचना स्वयं शिवजी ने की। यह तीनों प्रकार के दोष, दुःख और दरिद्रता, कलियुग की कुचालों तथा सब पापों को नष्ट करता है। 

रचि महेस निज मानस राखा । 
पाइ सुसमउ सिवा सन भाषा ⁠।⁠। 
तातें रामचरितमानस बर। 
धरेउ नाम हियँ हेरि हरषि हर ⁠।⁠। 

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पौराणिक व धार्मिक व ग्रंथों के अनुसार महादेव जी ने इसको रचकर अपने मन में रखा था और सुअवसर मिलने पर पार्वती जी से कहा था। शिव शंकर ने ही इसको श्री रामचरितमानस का नाम दिया था। 
 

 

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