Ramayan Katha : क्यों शत्रुघ्न से नाराज हो गए थे प्रभु राम ? जानें रामायण की यह चौंकाने वाली कथा

Edited By Updated: 20 Dec, 2025 01:16 PM

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Ramayan Katha : रामायण के अनुसार, प्रभु श्रीराम के वनवास से लौटने के कुछ समय बाद अयोध्या की राजसभा में एक महत्वपूर्ण प्रसंग सामने आया। कई ऋषि-मुनि सभा में उपस्थित होकर भगवान राम को लवणासुर नामक राक्षस द्वारा किए जा रहे अत्याचारों की जानकारी देने...

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Ramayan Katha : रामायण के अनुसार, प्रभु श्रीराम के वनवास से लौटने के कुछ समय बाद अयोध्या की राजसभा में एक महत्वपूर्ण प्रसंग सामने आया। कई ऋषि-मुनि सभा में उपस्थित होकर भगवान राम को लवणासुर नामक राक्षस द्वारा किए जा रहे अत्याचारों की जानकारी देने लगे। ऋषियों की पीड़ा सुनकर श्रीराम ने तुरंत उन्हें आश्वासन दिया और सभा में उपस्थित सभी भाइयों से पूछा कि इस दुष्ट राक्षस का अंत करने का दायित्व कौन संभालेगा।

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शत्रुघ्न का स्वभाव और राम की आज्ञा
वनवास के समय जिस तरह लक्ष्मण भगवान राम की सेवा में सदैव तत्पर रहते थे, उसी प्रकार शत्रुघ्न भरत की सेवा में लीन रहते थे। उनका स्वभाव भी लक्ष्मण जैसा ही तेजस्वी और स्पष्टवादी था। कैकयी के प्रति उनके मन में कठोर भाव थे, यह बात श्रीराम भली-भांति जानते थे। इसी कारण वनवास काल में भरत-शत्रुघ्न से भेंट के समय प्रभु राम ने शत्रुघ्न को माता सीता की शपथ देकर कैकयी की सेवा करने का वचन लिया था, जिसे उन्होंने अयोध्या लौटकर पूरी निष्ठा से निभाया।

सभा में हुई एक क्षणिक भूल
लवणासुर के विषय में चर्चा के दौरान जब श्रीराम ने पूछा कि कौन उसका वध करेगा, तो भरत ने आगे बढ़कर यह उत्तर दिया कि वे इस कार्य को करने के लिए तैयार हैं। भरत की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि शत्रुघ्न अपने स्थान से उठ खड़े हुए और अपने बड़े भाई की बात को बीच में ही काटते हुए स्वयं इस दायित्व को निभाने की इच्छा प्रकट कर दी। उस समय उन्हें यह भान नहीं रहा कि भरत की स्वीकृति के बाद उन्हें मौन रहना चाहिए था। श्रीराम ने शत्रुघ्न की बात सुनकर निर्णय दिया कि वही लवणासुर का वध करेंगे और उन्हें मधु दैत्य के नगर का शासन भी सौंपा जाएगा। यह सुनते ही शत्रुघ्न को अपनी भूल का अहसास हुआ कि उन्होंने सभा में भरत की बात को बीच में रोककर अनुचित व्यवहार किया था।

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आत्मबोध और प्रभु से दूरी
शत्रुघ्न ने विनम्रता से कहा कि भरत जैसे बड़े भाई के रहते उनका राज्याभिषेक कैसे संभव है। लेकिन उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि प्रभु की आज्ञा का उल्लंघन करना अधर्म होगा। वेद-शास्त्रों के अनुसार बड़े भाई की बात स्वीकार हो जाने के बाद बीच में बोलना अनुचित था और इसी कारण यह परिस्थिति उत्पन्न हुई। उन्होंने अपने व्यवहार को ही इस स्थिति का कारण माना और प्रभु राम की आज्ञा को स्वीकार कर लिया। इसी कारण यह कहा जाता है कि शत्रुघ्न की उस छोटी-सी चूक ने उन्हें कुछ समय के लिए प्रभु राम से दूर कर दिया।

लवणासुर का वध
भगवान राम से मार्गदर्शन प्राप्त कर शत्रुघ्न सेना और धन के साथ लवणासुर के नगर की ओर रवाना हुए। च्यवन ऋषि के आश्रम में उन्होंने लवणासुर की शक्ति, दिनचर्या और कमजोरियों के बारे में जानकारी प्राप्त की। अवसर पाकर उन्होंने नगर के द्वार को रोक लिया। जब लवणासुर लौटा, तो दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। अंततः शत्रुघ्न ने दिव्य अस्त्र से लवणासुर का वध कर दिया और धर्म की स्थापना की।

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