Edited By Niyati Bhandari,Updated: 04 Apr, 2024 11:30 AM
दीनों के प्रति उदारता दान है। परोपकारिता को भी दान माना जाता है। जिससे जरूरतमंदों एवं दुखियों के कष्ट का निवारण होता है, उसे भी दान कहते हैं।
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Daan donation: दीनों के प्रति उदारता दान है। परोपकारिता को भी दान माना जाता है। जिससे जरूरतमंदों एवं दुखियों के कष्ट का निवारण होता है, उसे भी दान कहते हैं। सामान्य अर्थों में प्रेम, परोपकार तथा सद्भावना को दान माना जाता है। आध्यात्मिक दृष्टि से इसका अर्थ है, सार्वभौमिक सार्वजनीन सद्भावना तथा ईश्वर के प्रति अनन्य श्रद्धा व परम प्रेम।
प्रत्युपकार की (किसी भी प्रकार की) इच्छा न रखते हुए दूसरों की सेवा करना सच्चा दान माना जाता है। जो व्यक्ति स्वयं को अपनी सम्पत्ति का न्यासी मानता है और इसका उपयोग दान में करता है, यह मानते हुए कि वस्तुत: सब कुछ भगवान का है, वही व्यक्ति सुखी रहता है। मुक्ति अथवा शाश्वत शांति आनंद केवल उसको ही मिलते हैं।
यदि लोग गंगा के जल से अपनी प्यास बुझा लेते हैं तो जल कम नहीं हो जाता इसी प्रकार दान देने से धन कम नहीं होता। अपनी आय का 10वां भाग दान दिया करें। दान सदा प्रसन्नतापूर्वक, शीघ्रतापूर्वक और बिना हिचकिचाहट के दिया करें। प्रतिदिन दान देना चाहिए।
दान के प्रकार : विद्या-दान अथवा ज्ञान-दान महादान (सर्वोत्तम दान) है। यदि आपने किसी दरिद्र को भोजन खिलाया तो उसे फिर भूख लगने पर भोजन मांगने की आवश्यकता पड़ेगी। इसके विपरीत यदि आपने अज्ञानी को ज्ञान-दान द्वारा विनिष्ट कर दिया तो आपने उसके सारे संकटों का ही निवारण सदा के लिए कर दिया।
उत्तम दान का दूसरा रूप है रोगी को औषधि देना। उत्तम दान का तीसरा रूप है भूखे को अन्न का दान (भोजन) देना। जब आप सब प्राणियों में प्रभु के दर्शन करने लग जाते हैं तब कौन भला है, कौन बुरा है, इसका विचार ही कहां रहता है?
दरिद्र, रोगी, असहाय तथा अनाश्रितों को दान दीजिए। अनाथों, लूले-लंगड़ों, अंधों और विचारी, असहाय, विधवाओं को दान दीजिए। शुद्ध भावना से दान दीजिए और भगवत्प्राप्ति कीजिए।
गुप्तदान : दान गुप्त रूप से दीजिए। उसका प्रचार मत करिए। दाएं हाथ से दिए गए दान का पता, बाएं हाथ को भी नहीं लगने दीजिए।
तामस दान : बहुत लोग तो बढ़िया दूध, चाय लेंगे और अपरिचितों को घटिया से घटिया दूध ही देंगे। स्वयं तो बढ़िया फल लेंगे किन्तु अपरिचितों, पड़ोसियों तथा नौकरों को गले-सड़े फल देंगे। स्वयं तो बढ़िया भोजन तीन दिन तक खाते रहेंगे, तत्पश्चात बचा हुआ भोजन नौकरों को देंगे, वह भी दुखी मन से। अनेक व्यक्तियों के घरों में ऐसा हृदय विदारक दृश्य देखने को मिलेगा।
ये कैसे लोग हैं, उनकी दशा केवल दयनीय ही नहीं अपितु निंदनीय भी है। उनको ज्ञान ही नहीं कि वे वस्तुत: कितनी नीच वृत्ति दर्शा रहे हैं।