ये 1 काम करवा सकता है ईश्वर से Personel मुलाकात

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 20 Nov, 2020 09:47 PM

daan ka mahatva

परहित की दृष्टि से दूसरों के प्रति प्रेम सहित उदारता का दृष्टिकोण रखना दान कहलाता है। सार्वभौमिक (विश्व) प्रेम को भी दान की संज्ञा दी जाती है। दीनों के प्रति उदारता दान है। परोपकारिता को भी दान माना जाता है, जिससे जरूरतमंदों एवं दुखियों के कष्ट का...

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Daan ka mahatva: परहित की दृष्टि से दूसरों के प्रति प्रेम सहित उदारता का दृष्टिकोण रखना दान कहलाता है। सार्वभौमिक (विश्व) प्रेम को भी दान की संज्ञा दी जाती है। दीनों के प्रति उदारता दान है। परोपकारिता को भी दान माना जाता है, जिससे जरूरतमंदों एवं दुखियों के कष्ट का निवारण होता है, उसे भी दान कहते हैं।

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सामान्य अर्थों में प्रेम, परोपकार तथा सद्भावना को दान माना जाता है। आध्यात्मिक दृष्टि से इसका अर्थ है सार्वभौमिक सार्वजनीन सद्भावना तथा ईश्वर के प्रति अनन्य श्रद्धा व परम प्रेम। किसी भी प्रकार की इच्छा न रखते हुए दूसरों की सेवा करना सच्चा दान माना जाता है। दान प्रेम का सक्रिय रूप है। दान का पाठ तो घर से ही आरंभ होता है, किन्तु उसे सब सीमाओं को लांघ जाना चाहिए। सारा जगत आपका घर है। आप समस्त विश्व के नागरिक हैं।  समस्त जगत के प्रति कल्याणमयी उदार भावना विकसित कीजिए।

धन संग्रह करना पाप है। सारी सम्पत्ति तो ईश्वर की है। जो व्यक्ति स्वयं को अपनी सम्पत्ति का न्यासी मानता है और इसका उपयोग दान में करता है- यह मानते हुए कि वस्तुत: सब कुछ भगवान का है, वही व्यक्ति सुखी रहता है। मुक्ति अथवा शाश्वत शांति आनंद केवल उसको ही मिलते हैं।

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यदि लोग गंगा के जल से अपनी प्यास बुझा लेते हैं तो जल कम नहीं हो जाता। इसी प्रकार दान देने से धन कम नहीं होता। अपनी आय का दसवां भाग दान दिया करें। दान सदा प्रसन्नतापूर्वक, शीघ्रतापूर्वक और बिना हिचकिचाहट के दिया करें। मृत्यु के समय तक दान टालते न रहें। प्रतिदिन दान देना चाहिए।

प्रार्थना तो प्रभु धाम के आधे मार्ग तक ले जाती है, उपवास प्रभु के परम धाम के द्वार तक, परंतु दान तो आपको भीतर तक ले जाकर ईश्वर के सम्मुख ही खड़ा कर देता है। दिल खोलकर दान करने से भगवान से मुलाकात का अवसर प्राप्त किया जा सकता है।

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दान क्या है ? : प्रत्येक सत्कर्म, भला कर्म दान है। प्यासे को जल पिलाना दान है। दुखी को प्रोत्साहन का एक शब्द कहना दान है। दान-हीन रोगी को औषधि देना दान है। मार्ग पर पड़े कांटे या कांच के टुकड़ों को हटाना दान है। दया भाव रखना, प्रेम भाव रखना भी दान है। अपकारी के अपकार को भूल जाना तथा क्षमा कर देना भी दान है। दुखी व्यक्ति को सांत्वना देना भी दान है।

धन के रूप में दान देना ही केवल दान नहीं है। दुखी लोगों के प्रति सहानुभूति रखना, उनके कल्याण के लिए प्रार्थना करना धन दान से भी बढ़ कर है।

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दान के प्रकार: विद्या दान अथवा ज्ञान दान महादान (सर्वोत्तम दान) है। यदि आपने किसी दरिद्र को भोजन खिलाया तो उसे फिर भूख लगने पर भोजन मांगने की आवश्यकता पड़ेगी। इसके विपरीत यदि आपके अज्ञान को जो जन्म मृत्यु का कारण है, ज्ञान दान द्वारा विनष्ट कर दिया तो आपने उसके सारे संकटों का ही निवारण सदा के लिए कर दिया।

उत्तम दान का दूसरा रूप है रोगी को औषधि देना। उत्तम दान का तीसरा रूप है भूखे को अन्न का दान (भोजन) देना।

आरंभ में दान देने में विवेक से काम लीजिए, तत्पश्चात बिना सोचे-विचारे दान देते जाइए। जब आप सब प्राणियों में प्रभु के दर्शन करने लग जाते हैं, तब कौन भला है, कौन बुरा है इसका विचार ही कहां रहता है? दरिद्री, रोगी, असहाय तथा अनाश्रितों को दान दीजिए। अनाथों, लूले-लंगड़ों, अंधों और बेचारी असहाय विधवाओं को दान दीजिए। दान देने का अवसर प्रदान करने वाले व्यक्ति को धन्यवाद दीजिए। शुद्ध भावना से दान दीजिए और भगवत्प्राप्ति कीजिए।

गुप्त दान की महिमा: दान गुप्त रूप से दीजिए। उसका प्रचार मत करिए। न ही उसकी डींग मारिए। दाएं हाथ से दिए गए दान का पता बाएं हाथ को भी नहीं लगने दीजिए।

युद्ध में लड़ना आसान है किन्तु अभिमान रहित आत्मश्लाघा रहित एवं प्रदर्शन रहित दान देना बड़ा कठिन है।

तामस दान: अपने प्रति तो सभी उदार रहते ही हैं। बहुत लोग तो बढ़िया दूध, चाय लेंगे और अपरिचितों को घटिया से घटिया दूध ही देंगे। स्वयं तो बढ़िया फल लेंगे किन्तु अपरिचितों, पड़ोसियों तथा नौकरों को गले सड़े फल देंगे। स्वयं तो बढ़िया भोजन तीन दिन तक खाते रहेंगे, तत्पश्चात बचा हुआ भोजन नौकरों को देंगे, वह भी दुखी मन से। ये गली-सड़ी वस्तुएं भी देना नहीं चाहते। अनेक व्यक्तियों के घरों में ऐसा हृदयविदारक दृश्य देखने को मिलेगा। ये कैसे लोग हैं उनकी दशा केवल दयनीय ही नहीं अपितु निंदनीय भी है। उनको ज्ञान ही नहीं कि वे वस्तुत: कितनी नीच वृत्ति दर्शा रहे हैं।

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