एकदंत संकष्टी चतुर्थी 2020: जरूर करें इस दिन कथा का श्रवण, होगी पुण्य फलों की प्राप्ति

Edited By Jyoti,Updated: 18 May, 2022 01:40 PM

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ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि है, जिसे एकदंत संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है, इस दिन भगवान गणेश जी की पूजा करना अति फलदायी माना जाता है। भक्त इस दिन संकष्टी चतुर्थी का व्रत करते हैं।

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ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि है, जिसे एकदंत संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है, इस दिन भगवान गणेश जी की पूजा करना अति फलदायी माना जाता है। भक्त इस दिन संकष्टी चतुर्थी का व्रत करते हैं। कहते हैं कि एकदंत संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा मात्र पढ़ने व सुनने शुभ फलों की प्राप्ति होती है। यहां जानें एकदंत संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा-
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एक समय की बात है कि भगवान विष्णु का विवाह लक्ष्मी जी के साथ निश्चित हो गया। विवाह की तैयारी होने लगी। सभी देवताओं को निमंत्रण भेजे गए, परंतु गणेशजी को निमंत्रण नहीं दिया। सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ विवाह में आए लेकिन गणेश जी उपस्थित नहीं थे, ऐसा देखकर सभी देवता आपस में चर्चा करने लगे कि क्या गणेशजी को नहीं न्योता है? या स्वयं गणेशजी ही नहीं आए हैं? फिर  देवताओं ने भगवान विष्णु से इसका कारण पूछा। उन्होंने कहा कि भगवान शिव और माता पार्वती को निमंत्रण भेजा है, गणेश जी अपने माता पिता के साथ आना चाहे तो आ सकते हैं। हांलाकि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी, और सवा मन लड्डू का भोजन दिनभर में चाहिए। यदि वे नहीं आएं तो अच्छा है। दूसरों के घर जाकर इतना सारा खाना-पीना अच्छा भी नहीं लगता। इतनी वार्ता कर ही रहे थे कि किसी एक ने सुझाव दिया यदि गणेशजी आ भी जाएं तो उनको द्वारपाल बनाकर घर की देखरेख की जिम्मेदारी दी जा सकती है। गणपति जी से कहा जा सकता है कि आप तो चूहे पर बैठकर धीरे-धीरे चलोगे तो बारात से बहुत पीछे रह जाओगे। ऐसे में आप घर की देखरेख करें। यह सुझाव भी सबको पसंद आ गया, तो विष्णु भगवान ने भी अपनी सहमति दे दी।
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इतने में गणेशजी वहां आ पहुंचें और उन्हें समझा-बुझाकर घर की रखवाली करने बैठा दिया। बारात चल दी, तब नारदजी ने देखा कि गणेशजी तो दरवाजे पर ही बैठे हुए हैं, तो वे गणेशजी के पास गए और रुकने का कारण पूछा। गणेशजी कहने लगे कि विष्णु भगवान ने मेरा बहुत अपमान किया है। नारदजी ने कहा कि आप अपनी मूषक सेना को आगे भेज दें, तो वह रास्ता खोद देगी जिससे उनके वाहन धरती में धंस जाएंगे, तब आपको सम्मान पूर्वक बुलाना पड़ेगा।

फिर गणेश जी ने अपनी मूषक सेना जल्दी से बारात के आगे भेज दी और सेना ने जमीन खोद दी। जब बारात वहां से निकली तो रथों के पहिए धरती में धंस गए। लाख कोशिश करें, परंतु पहिए नहीं निकले। सभी ने अपने-अपने उपाय किए, परंतु पहिए तो निकले नहीं, बल्कि जगह-जगह से टूट गए। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए।
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तब नारदजी ने कहा आप लोगों ने गणेश जी का अपमान करके अच्छा नहीं किया। यदि उन्हें मना कर लाया जाए तो आपका कार्य सिद्ध हो सकता है और यह संकट टल सकता है। भगवान शिव ने अपने दूत नंदी को भेजा और वे गणेशजी को लेकर आए। गणेशजी का आदर-सम्मान के साथ पूजन किया गया, तब कहीं रथ के पहिए निकले। अब रथ के पहिए निकल तो गए, परंतु वे टूट-फूट गए, तो उन्हें सुधारे कौन?

पास के खेत में खाती काम कर रहा था, उसे बुलाया गया। खाती अपना कार्य करने से पहले ‘श्री गणेशाय नमः’ कहकर गणेश जी की वंदना मन ही मन करने लगा। देखते ही देखते खाती ने सभी पहियों को ठीक कर दिया। तब खाती कहने लगा कि हे देवताओं! आपने सर्वप्रथम गणेशजी को नहीं मनाया होगा और न ही उनकी पूजा की होगी इसीलिए तो आपके साथ यह संकट आया है। हम तो मूरख अज्ञानी हैं, फिर भी पहले गणेशजी को पूजते हैं, उनका ध्यान करते हैं। आप लोग तो देवतागण हैं, फिर भी आप गणेशजी को कैसे भूल गए? अब आप लोग भगवान श्री गणेशजी की जय बोलकर जाएं, तो आपके सब काम बन जाएंगे और कोई संकट भी नहीं आएगा। ऐसा कहते हुए बारात वहां से चल दी और भगवान विष्णु का लक्ष्मीजी के साथ विवाह संपन्न करा के सभी सकुशल घर लौट आए। हे गणेश महाराज जी! आपने विष्णु को जैसो कारज सारो, ऐसो कारज सबको सिद्ध करो। बोलो गजानन भगवान की जय।


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