Edited By Punjab Kesari,Updated: 16 Dec, 2017 12:02 PM
चीन में एक महान दार्शनिक संत हुए-ताओ बू चिन। परम विद्वान और नितांत सादा जीवन व्यतीत करने वाले ताओ बू चिन धर्म की सही शिक्षा देने के लिए विख्यात थे। लाखों की तादाद में लोग उनके पास आते और परम संतुष्टि का
चीन में एक महान दार्शनिक संत हुए-ताओ बू चिन। परम विद्वान और नितांत सादा जीवन व्यतीत करने वाले ताओ बू चिन धर्म की सही शिक्षा देने के लिए विख्यात थे। लाखों की तादाद में लोग उनके पास आते और परम संतुष्टि का भाव लेकर वापस जाते। प्रत्येक व्यक्ति को उसकी प्रकृति के अनुकूल शिक्षा देना और तदनुसार उसे कर्मशील बनाना उनकी विशेषता थी।
एक दिन उनके पास चुंग सिन नाम का एक व्यक्ति पहुंचा। उसने उनसे धर्म की शिक्षा देने की प्रार्थना की। संत ताओ ने उस व्यक्ति को कुछ समय तक तो अपने पास रखा, फिर उसे दीन-दुखियों की सेवा में लगा दिया। चुंग सिन इस कार्य में निष्ठापूर्वक लगा रहा। वह वृद्धों व लाचारों की सेवा करता, उनका उपचार करवाता, उन्हें यथा समय पथ्यादि देता।
चुग सिन ने इस कार्य को करने में न दिन देखा न रात। वह अपना आराम, सुख-चैन छोड़कर असहायों की मदद करने में लगा रहता। जब सेवा कार्य करते-करते उसे काफी समय हो गया, तब उसने संत ताओ बू चिन से आग्रह किया। महात्मन, आपके पास रहते हुए मुझे इतने दिन हो गए, किंतु आपने मुझे अब तक धर्म की शिक्षा नहीं दी। संत ने मुस्कुराते हुए कहा कि तुम्हारा तो जीवन ही यहां रहते हुए धर्ममय हो गया है। फिर मैं तुम्हें इस विषय में क्या शिक्षा देता? तुम्हें जो कर्तव्य सौंपे गए उनका पालन तुम पूरी निष्ठा से करते हो। यही सबसे बड़ा धर्म है और तुम इस धर्म का यथाशक्ति पालन करते हो। चुंग सिन को कर्तव्य पालन के रूप में सही धर्म की शिक्षा मिल गई। प्रत्येक कार्य को कर्तव्य पालन का भाव लेकर करना ही सच्चा धर्म है। धर्म पालन से आशय मंदिर-मस्जिद में पूजा या व्रत-उपवास अथवा किसी भी प्रकार के बाह्यांडबर से नहीं है। विशुद्ध सात्विक भाव से अपना कर्तव्य पालन करना ही धर्म का मर्म है।