Edited By Niyati Bhandari,Updated: 09 Mar, 2020 10:47 AM
आज जहां देश में हिंदू-मुस्लिम समुदाय को लड़ाया जा रहा है, ऐसे में उत्तर प्रदेश के बाराबंकी स्थित देवा स्थित सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की मजार पर मनाई जाने वाली होली गंगा जमुनी तहजीब के
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आज जहां देश में हिंदू-मुस्लिम समुदाय को लड़ाया जा रहा है, ऐसे में उत्तर प्रदेश के बाराबंकी स्थित देवा स्थित सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की मजार पर मनाई जाने वाली होली गंगा जमुनी तहजीब के रंग घोलती नजर आती है। यहां हिंदू-मुस्लिम युवक एक साथ रंग व गुलाल में डूब जाते हैं।
अली शाह के चाहने वाले सभी धर्म के लोग थे। इसलिए हाजी साहब हर वर्ग के त्यौहारों में बराबर भागीदारी करते थे। वह अपने हिंदू शिष्यों के साथ होली खेलकर सूफी परम्परा का इजहार करते थे। उनके निधन के बाद यह परंपरा आज भी जारी है। यह देश की पहली दरगाह है, जहां होली के दिन रंग-गुलाल के साथ जश्न मनाया जाता है। इसमें आपसी कटुता को भूलकर दोनों समुदाय के लोग भागीदारी करके संत के ‘जो रब है, वहीं राम है’ के संदेश को पुख्ता करते हैं।
साहित्य में होली कवियों के प्रिय विषय रहे हैं। भारत के अनेक मुस्लिम कवियों ने होली पर अमर रचनाएं लिखी हैं। प्राचीन काल से मुगल बादशाहों ने तो धूमधाम से होली मनाने की परम्परा को निभाया। अकबर, हुमायूं, जहांगीर शाहजहां और बहादुरशाह जफर होली के आगमन से बहुत पहले ही रंगोत्सव की तैयारियां प्रारंभ कराते थे। अकबर के महल में सोने-चांदी के बड़े-बड़े बर्तनों में केवड़े और केसर से युक्त टेसू का रंग घोला जाता था और राजा अपनी बेगम और हरम की सुंदरियों के साथ होली खेलते थे। शाम को महल में ठंडाई, मिठाई और पान इलायची से मेहमानों का स्वागत किया जाता था और मुशायरे, कव्वालियों तथा नृत्य-गानों की महफिलें जमती थीं। इस अवसर पर राज्य के साधारण नागरिक बादशाह पर रंग डालते थे। बहादुरशाह जफर होली खेलने के बहुत शौकीन थे और होली को लेकर उनकी सरस काव्य रचनाएं आज तक सराही जाती हैं।
मुगल काल में होली के अवसर पर लाल किले के पिछवाड़े यमुना नदी के किनारे आम के बाग में होली के मेले लगते थे। अकबर का जोधाबाई के साथ तथा जहांगीर का नूरजहां के साथ होली खेलने का वर्णन मिलता है। अलवर संग्रहालय के एक चित्र में जहांगीर को होली खेलते हुए दिखाया गया है इसलिए होली प्रेम और सौहार्द का अनूठा और महान पर्व है।