जानिए गोकुल में कब मनाई जाएगी छड़ीमारी होली?

Edited By Jyoti,Updated: 07 Mar, 2022 03:37 PM

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इस बार होली का त्यौहार 18 मार्च दिन शुक्रवार को मनाया जाएगा। रंगों का ये त्यौहार यूं तो देशभर के लगभग हर कोने में धूम धाम से मनाया जाता है। परंतु सबसे भव्य रूप से ये त्यौहार गोकल आदि

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इस बार होली का त्यौहार 18 मार्च दिन शुक्रवार को मनाया जाएगा। रंगों का ये त्यौहार यूं तो देशभर के लगभग हर कोने में धूम धाम से मनाया जाता है। परंतु सबसे भव्य रूप से ये त्यौहार गोकल आदि में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है प्राचीन समय में श्री कृष्ण और राधा रानी फूलों और रंगों से होली खेलते थे। जिसके चलते देश भर में होली का त्यौहार बेहद हर्षों उल्लास के साथ मनाया जाता है। परंतु बात करें गोकुल की होली को ती यहां की होली का अलग ही जश्न देखने को मिलता है। जी हां कहा जाता है ब्रज के गोकुल में मनाई जाने वाली होली की बात ही सबसे निराली मानी जाती है। प्रत्येक वर्ष होली के कुछ दिन पहले से ही मथुरा में विभिन्न जगहों पर विभिन्न प्रकार से होली का जश्न शुरू हो जाते है। इस साल भी इसकी तैयारियां प्रांरभ हो चुकी है। बता दें इस वर्ष यानि 2022 में होली का पर्व ब्रज में 10 मार्च से ही शुरू हो जाएगा। 
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बता दें इस कड़ी में सबसे पहले 10 मार्च, को लड्डू होली का आयोजन होगा। जिसके बाद मथुरा में फूलों की होली, लट्ठमार होली, रंगवाली होली और छड़ीमार होली का खूब जश्न मनाया जाएगा। तो आइए इस आर्टिकल में आज जानते हैं छड़ीमार होली से जुड़ी जानकारी कि इसकी शुरूआत कैसे हुई और क्या है इसे मनाने की परंपरा। 

जहां ब्रज में लट्ठमार होली व अन्य कई प्रकार की होली मनाई जाती है, तो वहीं गोकुल में छड़ीमारी होली अधिक प्रसिद्ध है। परंतु इसके पीछे क्या धार्मिक व पौराणिक कथा क्या है इस बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। आज हम आपकी इसी से जुड़ी जानकारी देने जा रहे हैं। दरअसल धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का बचपन गोकुल में बीता था। ऐसी मान्यता है छड़ीमार होली के दिन बाल कृष्ण के साथ गोपियां छड़ी हाथ में लेकर होली खेलती थीं, परंतु तब भगवान श्री कृष्ण बालस्वरूप में थे। इस भावमयी परंपरा के अनुरूप कहीं उनकी चोट न लग जाए, इसलिए गोकुल में छड़ीमार होली खेली जाती है।
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आप मे से लगभग लोग जानते हैं कि बचपन में बाल गोपाल कान्हा बड़े चंचल हुआ करते थे। उन्हें गोपियों को परेशान करने में उन्हें बड़ा आनंद आता था। जिस कारण गोकुल मे उनके बालस्वरूप को अधिक महत्व दिया जाता है। मान्यता है कि इन्हीं नटखट कान्हा की याद में प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास में छड़ीमार व होली का त्यौहार मनाया जाता है। 

बता दें इस दिन कान्हा की पालकी को गोकुल में घुमाया जाता है, श्री कृष्ण की भक्त पालकी के पीछे सजी-धजी गोपियां हाथों में छड़ी लेकर चलती हैं। आगे बताते चलें कि गोकुल में छड़ीमार होली का उत्सव आज से नहीं बल्कि सदियों से चला आ रहा है। 

बल्कि इसे लेकर कहा जाता है कि गोकुल की छड़ी मार होली खुद में एक अनोखी विरासत समेटे हुए हैं। आज भी हर साल  प्राचीन परंपराओं का निर्वहन करते हुए छड़ी मार होली का आयोजन होता है, जिसकी शुरूआत यमुना किनारे स्थित नंदकिले के नंदभवन में ठाकुरजी के समक्ष राजभोग का भोग लगाकर होती है। 
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ये भी कहा जाता है कि होली खेलने वाली गोपियां 10 दिन पहले से छड़ीमार होली की तैयारियां शुरू कर देती हैं। इस दौरान गोपियों को दूध, दही, मक्खन, लस्सी, काजू बादाम खिलाकर होली खेलने के लिए तैयार किया जाता है। गोकुल की इस छड़ीमार होली को देखने के लिए दूर-दराज से श्रद्धालु आते हैं। बता दें इस वर्ष गोकुल की छड़ीमारी होली 16 मार्च को मनाई जाएगी। 

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