जानिए कब है हलहारिणी अमावस्या?

Edited By Updated: 07 Jul, 2021 06:44 PM

halharini amavasya 2021

हिंदू कैलेंडर के मुताबिक 9 जुलाई की सुबह 5।16 से ख़ास समय शुरू हो जाएगा जो कि 10 जुलाई की सुबह 6।46 तक रहने वाला है। चलिए आपको बताते हैं कि इस दिन को स्पेशल क्यों माना जा रहा है

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हिंदू कैलेंडर के मुताबिक 9 जुलाई की सुबह 5।16 से ख़ास समय शुरू हो जाएगा जो कि 10 जुलाई की सुबह 6।46 तक रहने वाला है। चलिए आपको बताते हैं कि इस दिन को स्पेशल क्यों माना जा रहा है और ऐसा क्या काम है जिसे करने में जीवन में खुशियों की दस्तक हो जाएगी। जैसा कि सभी जानते हैं कि आषाढ़ का महीना चल रहा है। ऐसे में 9 जुलाई को आषाढ़ की अमावस्या है। ग्रंथों के मुताबिक इस पर्व का खास महत्व है। आषाढ़ अमावस्या पर गंगा स्नान, दान और पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध का विशेष महत्व होता है। इस पर्व पर दान करने से कई यज्ञों का पुण्य मिलता है। ये अमावस्या वर्षा ऋतु के दौरान आती है। इस दिन हल और खेती के अन्य उपकरणों की पूजा करने की भी परंपरा है। इसलिए इसे हलहारिणी अमावस्या भी कहा जाता है।

चलिए अब आपको आषाढ़ अमावस्या की पूजन विधि बताते हैं-
हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि को भगवान विष्णु की पूजा करने और व्रत रखने का विधान है। सनातन धर्म में पितरों की आत्मा की शांति के लिए अमावस्या के दिन गंगा स्नान कर तर्पण करने का नियम उल्लिखित है। पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास में चातुर्मास का प्रारंभ होता है। चातुर्मास में पितरों को तर्पण करने एवं उनके नाम से दान करने का विशेष महत्व होता है। इस दिन पवित्र नदी में स्नान कर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और उसके बाद तर्पण एवं दान किया जाता है।

चलिए अब आपको बताते हैं कि हलहारिणी अमावस्या पर क्या करें और क्या न करें-
आषाढ़ महीने की अमावस्या पर तीर्थ या किसी पवित्र नदी के जल से नहाना चाहिए। इसके बाद श्रद्धा के मुताबिक दान करने का संकल्प लें। इस दिन जरूरतमंद लोगों को भोजन कराने का विशेष महत्व है।

अमावस्या पर पेड़-पौधे भी लगाए जाते हैं। ऐसा करने से कई तरह के दोष और जाने-अनजाने में हुए पाप खत्म हो जाते हैं।

इस पर्व पर ब्राह्मण भोजन करवाने का विधान बताया गया है। साथ ही गाय, कुत्ते और कौवे को रोटी खिलाने से भी पितर खुश होते हैं।

अमावस्या को महत्वपूर्ण खरीदी-बिक्री और हर तरह के मांगलिक काम नहीं किए जाते हैं।

ज्योतिष ग्रंथों में अमावस्या को शनिदेव के साथ ही केतु की जन्म तिथि भी माना गया है। इसलिए इस दिन पीपल के पेड़ की पूजा का विधान है।

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