Edited By Niyati Bhandari,Updated: 06 Aug, 2023 08:19 AM
माता सीता जी का अमोघ आशीर्वाद पाकर हनुमान जी को बड़ी प्रसन्नता हुई। उनसे बातचीत करते हुए उनकी दृष्टि अशोक वाटिका में लगे हुए तमाम सुंदर फल
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Hanuman ji story: माता सीता जी का अमोघ आशीर्वाद पाकर हनुमान जी को बड़ी प्रसन्नता हुई। उनसे बातचीत करते हुए उनकी दृष्टि अशोक वाटिका में लगे हुए तमाम सुंदर फल वाले वृक्षों पर गई। उन फलों को देखते ही उनकी भूख जाग उठी। उन्होंने सोचा कि इन फलों से मुझे अपनी भूख मिटा लेनी चाहिए। यह सोचकर, उन्होंने माता सीता जी से उन फलों को खाकर अपनी भूख मिटाने के लिए आज्ञा मांगी।
सीता जी ने उनकी बात सुनकर कहा, ‘‘इस वाटिका की रक्षा में बड़े-बड़े बलवान राक्षस लगे हुए हैं। फल खाने के प्रयत्न में उनके द्वारा तुम्हारी हानि हो सकती है।’’
हनुमान जी ने कहा, ‘‘मुझे उनका भय नहीं, आप मुझे आज्ञा दीजिए।’’
सीता जी ने उनकी बात सुनकर कहा, ‘‘ठीक है, तुम भगवान श्री रामचंद्र जी का स्मरण करके इन मीठे फलों को खाओ।’’
सीता जी की आज्ञा पाकर महावीर हनुमान जी निर्भय होकर अशोक वाटिका में पहुंच गए। खूब जी भर कर फल खाए। पेड़ों को भी उखाड़ कर, तोड़ कर फैंकने लगे। अनेक बलवान राक्षस वहां रखवाली कर रहे थे। उनमें से कुछ हनुमान जी के द्वारा मारे गए और कुछ ने भागकर रावण को बताया कि अशोक वाटिका में एक बहुत बड़ा बंदर आया है, उसने फल भी खाए हैं और पेड़ों को भी उखाड़-उखाड़ कर फैंक रहा है।
ऐसा सुनते ही रावण ने वहां बड़े-बड़े बलवान योद्धाओं को भेजा लेकिन हनुमान जी ने खेल-खेल में ही उन्हें मार गिराया। कुछ जो जीवित बचे, उन्होंने फिर जाकर दरबार में गुहार लगाई। अब रावण ने अपने महापराक्रमी पुत्र अक्षय कुमार को वहां भेजा, परन्तु वह भी हनुमान जी के हाथों मारा गया।
उसके वध का समाचार सुनकर रावण अत्यंत दुखी और क्रोधित हुआ। अब उसने देवराज इंद्र को भी युद्ध में जीत लेने वाले अपने सबसे बड़े पुत्र मेघनाद को यह कह कर वहां भेजा, ‘‘उस बंदर को जान से मत मारना। बांधकर ले आना। मैं भी देखना चाहता हूं कि वह बलशाली बंदर कौन है और कहां से आया है?’’
मेघनाद बहुत से बलवान योद्धाओं के साथ अशोक वाटिका की ओर चल पड़ा। हनुमान जी ने देखा कि यह अत्यंत भयानक और विकराल योद्धा सामने से आ रहा है। बस पहले तो उन्होंने मेघनाद के साथ आने वाले योद्धाओं को अपने शरीर से रगड़-रगड़ कर मार डाला, फिर एक पेड़ उखाड़कर उसके प्रहार से उसके रथ को घोड़ों सहित चकनाचूर कर दिया।
इसके बाद एक जोर का मुक्का मेघनाद की छाती में मारकर वह फुर्ती से पेड़ के ऊपर जा बैठे। मेघनाद बेहोश होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। बेहोशी दूर होने के बाद उसने बहुत माया रची लेकिन उसका हनुमान जी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
अब उसने ब्रह्मा जी का दिया हुआ अचूक अस्त्र ‘ब्रह्मास्त्र’ हनुमान जी पर चलाया। हनुमान जी ने सोचा, यदि मैं इस ब्रह्मास्त्र का अपने ऊपर कोई प्रभाव नहीं पड़ने देता तो उसका अपमान होगा। संसार में इसकी महिमा घट जाएगी। अत: ब्रह्मास्त्र की चोट लगते ही वह जान-बूझकर बेहोश होकर पृथ्वी पर गिर पड़े।
मेघनाद ने उन्हें नागपाश में बांध लिया। यही उससे भूल हुई। ब्रह्मास्त्र एक ऐसा अस्त्र है कि यदि उसके ऊपर किसी दूसरे अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग कर दिया जाए तो उसका प्रभाव अपने आप समाप्त हो जाता है। इस प्रकार मेघनाद की भूल से हनुमान जी स्वयं ही ब्रह्मास्त्र के प्रभाव से छुटकारा पा गए। उन्हें उसका प्रभाव नष्ट करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी।