ऐसा जंगल जहां भगवान के भजन की धुन सुनते ही भाग आते है भालू

Edited By Jyoti,Updated: 16 Feb, 2020 04:53 PM

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इंसानों को तो आपने मंदिरों में पूजा पाठ व भजन आरती करते हुए खूब देखा और सुना होगा। लेकिन क्या कभी आपने हिंसक जानवरों को मंदिर या धार्मिक स्थल में अपनी श्रद्धा दिखाते हुए देखा या सुना है।

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इंसानों को तो आपने मंदिरों में पूजा पाठ व भजन आरती करते हुए खूब देखा और सुना होगा। लेकिन क्या कभी आपने हिंसक जानवरों को मंदिर या धार्मिक स्थल में अपनी श्रद्धा दिखाते हुए देखा या सुना है। अगर नहीं तो चलिए हम आपको दिखाते हैं आपके ये नज़ारा। दरअसल मध्यप्रदेश के शहडोल जिले के अंतिम छोर प्रदेश का बार्डर और छत्तीसगढ़ प्रदेश की सीमा खड़ाखोह के जंगल राजमाड़ा रामवन आश्रम में जहां भगवान भजन की धुन सुनते ही जंगल की गुफाओं से हिंसक जानवर भालू निकलकर बड़ी ही श्रद्धा से भजन सुनते हैं। इतना ही नहीं भजन कीर्तन सुनने के बाद प्रसाद भी ग्रहण करते हैं।  इन भालुओं की श्रद्धा की दास्तां न केवल मध्यप्रदेश में बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ में खूब चर्चाओं में है।
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बता दें मध्यप्रदेश के शहडोल जिले के जैतपुर तहसील के अंतिम छोर प्रदेश का बार्डर और छत्तीसगढ़ प्रदेश की सीमा खड़ाखोह के जंगल दुर्गम स्थल राजमाड़ा में नदी से घिरे घनघोर जंगल के बीच एक साधू का आश्रम है। इस दुर्गम स्थल में सीताराम बाबा रामवन में आश्रम में एक कुटिया बना निवास करते हैं। इस कुटिया की खास बात यह है कि यहां के बाबा जैसे ही अपने वाद्य यंत्रों के माध्यम से भगवान के भजन करना शुरू करते हैं वैसे ही वाद्ययंत्र की धुन सुनते ही जंगल के समस्त भालुओं का एक दल श्राद्ध भाव से वहां आ जाते हैं। कहा जाता है भालुओं के दल में एक नर व मादा भालू व दो शावक है। और जब तक बाबा रामदीन का भजन गायन चलता है तब तक बड़े ही श्रद्धा भाव से भजन का आनंद ले प्रसाद ग्रहण कर वापस जंगल चले जाते हैं।

पंजाब केसरी के संवाददाता अजय नामदेव की रिपोर्ट के अनुसार यहां कि सबसे खास बात यह कि ये हिंसक भालू जब तक भजन व पूजा पाठ चलता है तब तक किसी को कोई नुकसान नही पहुंचाते। यह इनका रोज का काम है। इनकी इस श्रद्धा की गाथा सुनने लोग दूर दूर से आए हैं। इतना नहीं बल्कि इनकी इसी श्रद्धा के चलते ये स्थान लोगों के लिए आस्था का केंद्र बन गया है। वहीं कुछ लोग इसे मनोरंजन के रूप में भी देखने आते हैं। भालुओं के भक्ति का गाथा की कहानी मध्यप्रदेश के साथ साथ छत्तीसगढ़ में भी खूब प्रख्यात है।
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आपकी जानकारी के लिए बता दें कि शहडोल जिले के जैतपुर तहसील के ग्राम खोहरा बैरक के रहने वाले बाबा सीताराम सुख-शांति व भगवान की भक्ति में लीन होने के लिए वर्ष 2013 से यहां कुटिया का आश्रम बना वहां भक्ति भाव कर रहे हैं। बाबा बताते हैं कि एक बार वे अपने आश्रम की कुटिया में भगवान की भक्ति में वाद्य यंत्रों के माध्यम से भजन का गायन कर रहे थे कि अचानक जब उन्होंने अपनी आंखें खोली तो पाया कि भालुओं के एक दल बाबा के आश्रम के बाहर शांत मन से भजन का आनंद ले रहे हैं।

हिम्मत जुटा बाबा ने भालुओं को प्रसाद ग्रहण कराया तब से लेकर आज तक यह सिलसिला आज तक चला आ रहा है। बाबा के वाद्य यंत्र व भजन की धुन सुनकर भागे-दौड़े चले आते है। एक खास बात ये भी है कि भालू कभी भी बाबा के आश्रम की कुटिया के अंदर प्रवेश नही करते, बाबा के आश्रम में पिछले 8 वर्षों से लगातार लकड़ियों की एक धुनि जल रही है।
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बाबा पूजा पाठ के दौरान भालुओं को स्नेह और प्यार करते हैं। बाबा ने इन भालुओं के दल के सदस्यों का नामकरण भी किया है। जिनमें से नर भालू को लाली व मादा को लल्ली। अन्य को चुन्नू,मुन्नू के नाम से पुकारते हैं। बाबा बताते हैं मुसीबत पड़ने पर जब भी उन्हें पुकारते हैं तो सारे भालू उनकी मदद के लिए भागे चले आते हैं। इसके अलावा बाबा कहते हैं कि पूजा पाठ के दौरान जंगल के क्षेत्रों में ये हिंसक जानवरों की तरह व्यवहार करते हैं। इस दौरान उनकी गुफा के नज़दीक जाने में खतरा माना जाता है।

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