यहां श्रीकृष्ण ने अपने हाथों से बोया था मोती का पेड़...

Edited By Jyoti,Updated: 31 Jul, 2019 12:50 PM

here shri krishna had planted a pearl tree with his own hands

चाहे द्वापरयुग हो या कलियुग राधा बिना कृष्ण तब भी अधूरे थे और आज भी अधूरे माने जाते हैं। चाहे इनका विवाह न हुआ हो परंतु राधा-कृष्ण का नाम आज भी साथ ही लिया जाता है

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चाहे द्वापरयुग हो या कलियुग राधा बिना कृष्ण तब भी अधूरे थे और आज भी अधूरे माने जाते हैं। चाहे इनका विवाह न हुआ हो परंतु राधा-कृष्ण का नाम आज भी साथ ही लिया जाता है।बल्कि भगवान कृष्ण से पहले उनकी प्रिय राधा का नाम लिया जाता है। हमारे शास्त्रों में इन दोनों से संबंधित बहुत सी कथाएं मिलती है, जिसकी मदद से हम हमारे हिंदू धर्म के देवी-देवताओं के बारे में बहुत कुछ जान पाते हैं।
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कहते हैं समस्त धार्मिक ग्रंथ मुरलीधर कृष्ण कन्हैया की लीलाओं से भरे पड़े हैं। आज हम इन्हीं में वर्णित श्री कृष्ण की पौराणिक कथा के बारे में आपको बताने जा रहे हैं, जिससे जानकर शायद आपकी आश्चर्य की कोई सीमा नहीं रहेगी। ये पौराणिक  कथा को वर्तमान समय के साथ बड़ी ही खूबसूरती से जोड़ती हैं।

ज्यादातर यही पढ़ा और सुना जाता है कि भगवान कृष्ण की हज़ारों रानियां थी, मगर उसमें राधा रानी का नाम शामिल नहीं था। इन्हें हमेशा से केवल इनकी प्रेमिका के रूप में देखा गया था। लेकिन कहीं-कहीं कुछ मान्यताओं के अनुसार इस बात का उल्लेख मिलता है कि ब्रह्मा जी स्वयं दोनों का विवाह सपंन्न  करवाया था।

बरसाने में रहने वाले संत-महात्माओं का मानना है श्रीकृष्ण और राधा रानी के बीच सांसारिक रिश्ते नहीं थे लेकिन गर्ग संहिता, गौतमी तंत्र के अंतर्गत इस बात का वर्णन है कि उन दोनों का विवाह हुआ था। लेकिन बता दें इसे प्रमाणिक रूप से कह पाना आज भी किसी के लिए संभव नहीं है।

तो वहीं पुराणों की मानें तो गोवर्धन पर्वत  उठाने की घटना के कुछ समय बाद श्रीकृष्ण और राधारानी की सगाई संपन्न हुई थी। काह जाता है सगाई में तोहफ़े के तौर पर मिले बेशकीमती मोतियों को श्रीकृष्ण ने वहीं ज़मीन में बोया था। जिससे बाद से वहां कुछ ऐसे पेड़ उग गए हैं जिनमें से मोती निकलते हैं।
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गर्ग संहिता के अनुसार राधा-कृष्ण की सगाई के दौरान, राधा रानी के पिता वृषभानु ने भगवान कृष्ण को तोहफ़े में बेशकीमती मोती दिए। इन मोतियों को तोहफ़े में पाकर वासुदेव बहुत परेशान हो गए, उन्हें ये डर सता रहा था कि कि इतने कीमती मोती वो संभालेंगे कैसे।

अपने पिता की इस परेशानी को श्रीकृष्ण भांप गए थे। जिसके बाद  उन्होंने अपनी मां से झगड़कर वे मोती ले लिए और कुंड के पास ज़मीन में गाड़ दिए। जब श्रीकृष्ण को इस बात का पता चला तो वे अपने पुत्र पर बहुत क्रोधित हुए और अपने सिपाहियों को उन मोतियों को ढूंढकर लाने के लिए कहा। परंतु  जब वे लोग ज़मीन को खोदकर मोती लाने के लिए उस स्थान पर पहुंचे, तो उन्होंने देखा कि उस जगह पर पेड़ उग चुका था, जिस पर बहु सुंदर मोती लटक रहे थे। तब एक बैलगाड़ी में भरकर मोतियों को नंदबाबा के घर पहुंचाया गया। कहा जाता है तब से लेकर आज तक उस कुंड को मोती कुंड के ही नाम से जाना जाता है। 84 कोस की गोवर्धन यात्रा के दौरान लोग लोग आज भी यहां लगे पीलू के पेड़ से मोती बटोरने आते हैं। बता दें वैसे पूरे ब्रज में कई अन्य जगहों पर पीलू के पेड़ लगे हैं लेकिन केवल यहीं लगे पीलू के पेड़ पर मोती लगते हैं।
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