वृक्ष ‘शिव’ हैं, ब्रह्महत्या से बचना है तो रखें इन बातों का ध्यान

Edited By Updated: 17 Jun, 2025 07:08 AM

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How did the environment affect Hinduism: वेदों में वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, द्यु-भू अर्थात भूमि और द्युलोक के संरक्षण की बात अनेक मंत्रों में कही गई है। साथ ही वृक्ष वनस्पतियों के संरक्षण का आदेश दिया गया है।

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How did the environment affect Hinduism: वेदों में वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, द्यु-भू अर्थात भूमि और द्युलोक के संरक्षण की बात अनेक मंत्रों में कही गई है। साथ ही वृक्ष वनस्पतियों के संरक्षण का आदेश दिया गया है।

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वृक्ष :
वेदों और ब्राह्मण ग्रंथों में वृक्ष वनस्पतियों का बहुत ही महत्व वर्णन किया गया है। वृक्ष वनस्पति मनुष्य को जीवन शक्ति देते हैं और उसका रक्षण करते हैं। औषधियां प्रदूषण को नष्ट करने का प्रमुख साधन हैं इसलिए उन्हें विषदूषणी कहा गया है। वेद में वृक्षों को पशुपति या शिव कहा गया है।

ये संसार के विष कार्बनडाई आक्साइड को पीते हैं और इसी प्रकार वनस्पतियां शिव के तुल्य विषपान करती हैं और प्राण वायु या ऑक्सीजन रूपी अमृत देती हैं। अत: वृक्षों को शिव का मूर्तरूप समझना चाहिए। इसी आधार पर ऋग्वेद में वृक्ष लगाने का आदेश है। ये जल के स्रोतों की रक्षा करते हैं। एक मंत्र में कहा गया है कि वृक्ष प्रदूषण को नष्ट करते हैं, अत: उनकी रक्षा करनी चाहिए।

वायु : वेदों में वायु को अमृत कहा गया है। वायु जीवन शक्ति देती है। इसे भेषज या औषधि कहा गया है। यह प्राणशक्ति देती है और अपानशक्ति के द्वारा सभी दोषों को बाहर निकालती है।

ऋग्वेद में कहा गया है कि हम ऐसा कोई काम न करें, जिससे वायुरूपी अमृत की कमी हो। यदि हम प्राणवायु को कम करते हैं तो अपने लिए मृत्यु का संकट तैयार करते हैं।

ऋग्वेद में मंत्र आया है कि वायु हमारे हृदय के स्वास्थ्य के लिए कल्याणकारक आरोग्यकर औषधि को प्राप्त कराता है और हमारी आयु को बढ़ाता है। यह वायु हमारी पितृवत पालक, बंधुत्व धारक, पोषक और मित्रवत् सुखकर्ता है। इस वायु के घर अंतरिक्ष में जो अमरता का निक्षेप भगवान द्वारा स्थापित है, उससे यह वायु हमारे जीवन के लिए जीवन तत्व प्रदान करती है।

अथर्ववेद में कहा गया है कि वायु के संचार से शरीर का मल निकलकर स्वास्थ्य मिलता है और तार, विमान, ताप, वृष्टि आदि का संचार होता है।

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सूर्य और पृथ्वी : सूर्य ऊर्जा का स्रोत है, अंतरिक्ष वृष्टि करता है और पृथ्वी ऊर्जा तथा वृष्टि का उपयोग करके मानवमात्र को अन्न आदि देकर मानव जीवन को संचालित करती है।

इनका संतुलन जब बिगड़ता है तब विनाश की प्रक्रिया शुरू होती है। अत: वेदों में इनके संतुलन को सुरक्षित रखने के लिए आदेश दिए गए हैं। अनेक मंत्रों में कहा गया है कि द्युलोक, अंतरिक्ष और भूलोक को सभी प्रकार के प्रदूषणों से बचाएं।

अथर्ववेद में विशेष रूप से कहा गया है कि भूमि के मर्म स्थानों को क्षति न पहुंचाएं। ऐसा करने से जल के स्रोत आदि नष्ट होते हैं और भूस्खलन तथा भूकंप आदि की संभावना बढ़ती है।

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जल : वेदों में जल की उपयोगिता और उसके महत्व पर बहुत बल दिया है। जल जीवन है, अमृत है, भेषज है, रोगनाशक और आयुवर्धक है। जल को दूषित करना पाप माना गया है। जल से सभी रोग नष्ट होते हैं। जल सर्वोत्तम वैद्य है। जल हृदय के रोगों को भी दूर करता है। जल को ईश्वरीय वरदान माना गया है। अनेक मंत्रों में जल को दूषित न करने का आदेश दिया गया है।

जल और वनस्पतियों को कभी हानि न पहुंचाएं। पुराणों में तो यहां तक कहा गया है कि नदी के किनारे या नदी में जो थूकता है, मूत्र करता है या शौच आदि करता है, वह नरक में जाता है और उसे ब्रह्महत्या का पाप लगता है।

 

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