शोक हरता है अशोक वृक्ष

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 20 May, 2019 11:10 AM

importance of ashok tree

अशोक वृक्ष धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन में अन्य पावन वृक्षों, जैसे वट-पीपल आदि की भांति भारतीयों के लिए श्रद्धा का पात्र है। शुभ एवं मंगलकारी वृक्ष के रूप में इसका वर्णन ब्रह्मवैवर्त पुराण में किया गया है।

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अशोक वृक्ष धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन में अन्य पावन वृक्षों, जैसे वट-पीपल आदि की भांति भारतीयों के लिए श्रद्धा का पात्र है। शुभ एवं मंगलकारी वृक्ष के रूप में इसका वर्णन ब्रह्मवैवर्त पुराण में किया गया है। यह वृक्ष पर्यावरण संतुलन को बनाए रखने में प्रभावी भूमिका निभाता है। धर्मावलंबी इसको किसी न किसी रूप में पावन वृक्ष के रूप में श्रद्धा के साथ मान्यता देते हैं। 

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प्राचीन मूर्तियों में अशोक वृक्ष की अर्चना अंकित है। बौद्ध धर्म के अनुयायी इस वृक्ष को इसलिए पूजते हैं क्योंकि महात्मा बुद्ध का अशोक वृक्ष के नीचे जन्म हुआ था। वैसे तो इस वृक्ष की पूजा का प्रचलन, गन्धर्वों और यक्षों के काल से रहा है। श्री राम ने अशोक के पेड़ से ही सीता जी के दर्शन की अभिलाषा की थी। तो कालान्तर में राम भक्त हनुमान की सीता को अशोक पेड़ के नीचे बैठी देखकर ही शोक की समाप्ति हुई थी। इससे इस पेड़ के शोक रहित होने की बात चरितार्थ सिद्ध होती है। भगवान वाल्मीकि ने रामायण में वर्णित, पंचवटी में लगे प्रमुखत: पांच वृक्षों को शुभ माना है। उनमें अशोक वृक्ष भी है। यह पेड़ इंद्र देव को अत्यधिक प्रिय है क्योंकि यह कामदेव का प्रतीक माना गया है। 

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इस पेड़ को पूजने की परंपरा राजा भोज के समय से है। संस्कृत कवियों ने इसका अनुपम वर्णन अपनी कविताओं में किया है। यह पेड़ पर्यावरण को संतुलित रखने में अहम भूमिका अदा करता है। इस पेड़ की अहमियत स्त्रियों की विभिन्न व्याधियों के उपचार के लिए औषधि के रूप में भी कम नहीं है। शोभाकार वृक्ष के रूप में भी यह प्रतिष्ठित है। महोत्सवों, शुभ कार्यों व दुर्गा पूजा महोत्सव में इसके पत्तों को इसलिए याद करते हैं कि यह शोक हरता है। अशोक वृक्ष को विभिन्न भाषाओं में विभिन्न नामों से संबोधित किया जाता है। जैसे संस्कृत में महापुष्प, अपशोक मंजरी, मारवाड़ी में आसापाली, गुजराती में आसोपालव, देववाणी में अशोक, बञजुली शोक, उडिय़ा, गढ़वाली, बंगाली, मराठी व कन्नड़ में अशोक, तमिल में आर्सीगम वनस्पति शास्त्रियों के अनुसार सराका इंडिका अशोक एवं लैटिन में जानेसिया अशोक। 

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अशोक का वृक्ष 40 से 60 फीट का होता है और सदा हरा-भरा रहता है। आकृति में आम के वृक्ष के समान होता है। इसकी दो जातियां होती हैं। असली अशोक का पेड़ उसे मानते हैं जिसके पत्ते रामफल के समान हों और बसंत में नारंगी रंग के फूल उसमें आते हों। 

अशोक के दूसरे प्रकार के पेड़ आम के पत्तों के समान होते हैं और बसंत में फूल-सफेद रंग के पीले झांई देते हुए होते हैं। इसकी शाखाएं देवदार वृक्ष की शाखाओं के समान सदैव नीचे की ओर झुकी रहती हैं।

इस पर लगने वाले पुष्प की पंखुड़ियां लहरदार होती हैं। इसके पुष्प चैत्र मास में लोहित वर्णीय पुष्प गुच्छों के रूप में रहते हैं। सफेद फूलों वाला अशोक वृक्ष भी होता है जिसे तांत्रिक पूजा-अर्चना में उपयोग करते हैं।

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वृक्ष के पत्ते कोमल, सुंदर, चमकदार लाल रंग के सौंदर्यमय परिलक्षित होते हैं। प्रारंभ में नारंगी की भांति रंग होता है जो कालान्तर में लाल हो जाता है।  इसलिए इनके पुष्पों को ‘हेम-पुष्प’ कहते हैं। यह वृक्ष देहरादून, कालसी, विकास नगर, ऋषिकेश आदि क्षेत्रों में पाया जाता है। दक्षिण भारत व बंगाल के वनों में प्रचुर मात्रा में मिलता है। दिल्ली में भी इसके वृक्ष लगे हुए हैं। 

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