कार्तिक मास: श्री हरि नारायण के साथ भगवान कार्तिकेय भी करते हैं प्राणियों का शुद्धिकरण

Edited By Jyoti,Updated: 10 Oct, 2019 10:21 AM

importance of kartik month in hindu religion

यूं तो हिंदू धर्म की प्रचलित मान्यताओं व पंचांग के अनुसार साल में आने वाले हर माह का अपना एक महत्व होता है। मगर इन महीनों में से सबसे श्रेष्ठतम व उत्तम माह कार्तिक माह को माना जाता है।

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यूं तो हिंदू धर्म की प्रचलित मान्यताओं व पंचांग के अनुसार साल में आने वाले हर माह का अपना एक महत्व होता है। मगर इन महीनों में से सबसे श्रेष्ठतम व उत्तम माह कार्तिक माह को माना जाता है। इसके सबसे मुख्य कारण इसका श्री हरि विष्णु से गहरा संबंध है। बल्कि पौराणिक मान्यताओं के श्री हरि विष्णु स्वयं कहते हैं कि कार्तिक माह मुझे अतिप्रिय है। धार्मिक मान्यताओं के कार्तिक मास का स्वामी कार्तिकेय एवं नारायण जी को समर्पित है। इसके अलावा कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि में मां श्री महालक्ष्मी पृथ्वी पर आकर सम्पूर्ण कार्तिक माह में भगवान विष्णु के निद्रा त्यागने से पहले सम्पूर्ण सृष्टि की व्यवस्था देखती हैं। सभी ऋषि, मुनि, योगी और सन्यासियों का चातुर्मास्य व्रत भी इसी माह में कार्तिक शुक्ल पक्ष एकादशी को जगतगुरु विष्णु के पूजन के साथ संपन्न होता है।
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इस माह की त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णिमा को शास्त्रों ने अति पुष्करिणी कहा है, स्कन्द पुराण के अनुसार जो प्राणी कार्तिक मास में प्रतिदिन स्नान करता है वह इन्हीं तीन तिथियों की प्रातः स्नान करने से पूर्ण फल का भागी हो जाता है। त्रयोदशी को स्नानोपरांत समस्त वेद प्राणियों समीप जाकर उन्हें पवित्र करते हैं।

माना जाता है चतुर्दशी में सभी देवता एवं यज्ञ समस्त जीवों को पावन बनाते हैं और पूर्णिमा को स्नान अर्घ्य, तर्पण, जप, तप, पूजन, कीर्तन दान-पुण्य करने से स्वयं भगवान विष्णु प्राणियों को ब्रह्मघात और अन्य कृत्या-कृत्य पापों से मुक्त करके जीव को शुद्ध कर देते हैं।

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इन दौरान भगवत गीता एवं श्रीसत्यनारायण व्रत की कथा का श्रवण, गीतापाठ विष्णु सहस्त्र नाम का पाठ तथा 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' का जप करने से प्राणी पाप मुक्त व कर्ज मुक्त होकर भगवान श्री विष्णु जी की कृपा पाता है।

कहा जाता प्रत्येक व्यक्ति कोकार्तिक मास में झूठ बोलना, चोरी-ठगी करना, धोखा देना, जीव हत्या करना, गुरु की निंदा करने व मदिरापान करने से बचना चाहिए। बल्कि इस दौरान एकादशी से पूर्णिमा तक के मध्य भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए खुले आसमान में दीप जलाते हुए निम्न मंत्र का जाप करें।

दामोदराय विश्वाय विश्वरूपधराय च।
नमस्कृत्वा प्रदास्यामि व्योमदीपं हरिप्रियम्।।

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अर्थात- मैं सर्वस्वरूप एवं विश्वरूपधारी भगवान दामोदर को नमस्कार करके यह आकाशदीप अर्पित करता हूं। साथ ही निम्न मंत्र का जाप करें उच्चारण करते हुए पितरों को नमस्कार करें।

'नमः पितृभ्यः प्रेतेभ्यो नमो धर्माय विष्णवे।
नमो यमाय रुद्राय कान्तारपतये नम:।।


इसके साथ धर्म स्वरूप श्री विष्णु को नमस्कार करें, यमदेव को नमस्कार करें तथा भगवान रूद्र को नमस्कार करते हुए आकाशदीप जलाएं।
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