Edited By Prachi Sharma,Updated: 18 Jan, 2024 10:16 AM
जस्टिस महादेव गोविंद रानाडे एक दिन मद्रास जा रहे थे। एक स्टेशन पर ट्रेन रुकी हुई थी। वह अपने डिब्बे से उतर कर प्लेटफार्म पर टहलने लगे। इसी
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Inspirational Context: जस्टिस महादेव गोविंद रानाडे एक दिन मद्रास जा रहे थे। एक स्टेशन पर ट्रेन रुकी हुई थी। वह अपने डिब्बे से उतर कर प्लेटफार्म पर टहलने लगे। इसी बीच एक अंग्रेज अधिकारी उनके डिब्बे में घुस गया। वहां रखे सामान को देखकर वह समझ गया कि सफर करने वाला कोई भारतीय है। अंग्रेज ने न्यायाधीश महोदय का सारा सामान डिब्बे से बाहर फैंक दिया और पैर फैलाकर बैठ गया। कुछ देर बाद जस्टिस रानाडे वापस डिब्बे में लौटे तो अपना सामान बाहर देखकर चौंक गए।
उन्होंने ट्रेन अटैंडैंट से पूछा तो उसने अंग्रेज की करतूत की जानकारी दी। सारी बात जानकर भी न्यायाधीश के चेहरे पर तनाव या क्रोध की एक रेखा तक नहीं आई।
वह अटैंडैंट से बोले, “तुम्हें तकलीफ न हो तो मेरा सामान अपने कंपार्टमैंट में रख लो।”
अटैंडैंट ने सारा सामान रख लिया, ट्रेन बढ़ चली। कुछ देर बाद अंग्रेज को भी पता चल गया कि उसने जिस भारतीय का सामान फैंका था, वह जस्टिस हैं। वह चुपचाप अपने स्टेशन पर उतरा और चला गया।
धीरे-धीरे महादेव गोविंद रानाडे की ख्याति केवल जज के रूप में नहीं, बल्कि लेखक, समाज सुधारक के रूप में भी देश-विदेश में फैल गई। एक दिन एक गुमनाम खत उनके पास आया। उन्होंने उसे खोलकर पढ़ा तो पाया कि यह खत उसी अंग्रेज का था जिसने सालों पहले उनके साथ ट्रेन में दुर्व्यवहार किया था।
अंग्रेज ने अपने पत्र में लिखा, “मैंने आपसे विनम्रता का पाठ सीखा है। आपके इस सबक ने मुझे बिना दंड दिए ही बेहद लज्जित कर दिया है।”
इस प्रकार रानाडे ने अंग्रेज को बिना एक भी शब्द बोले न केवल उसे उसकी गलती का एहसास करवाया बल्कि ग्लानि भाव से भी भर दिया।