Edited By Niyati Bhandari,Updated: 26 Apr, 2022 09:34 AM
आमतौर पर इंसान की फितरत है कि उसका मन आदर्शों की पूजा करता है लेकिन यथार्थ स्वीकार करने में उसे दिक्कत आती है। अपने विकास के क्रम में
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आमतौर पर इंसान की फितरत है कि उसका मन आदर्शों की पूजा करता है लेकिन यथार्थ स्वीकार करने में उसे दिक्कत आती है। अपने विकास के क्रम में इंसान को बीच की अवस्थाएं स्वीकार नहीं हैं, इसलिए वह यथार्थ कटुता को नहीं देखना चाहता। उस आवरण को वह झूठ के सहारे ढंकता है। जब उसका झूठ पकड़ लिया जाता है, तो वह तर्कों के सहारे उसे हालात का परिणाम साबित करना चाहता है। असल में, झूठ दो प्रकार के होते हैं। एक आंतरिक झूठ और दूसरा बाहरी झूठ। आंतरिक झूठ वह है, जो हम अपना अस्तित्व ऊपर करने के लिए बोलते हैं। बाहरी झूठ वह, जो हम अपने फायदे के लिए बाहर की दुनिया में कहते हैं या करवाते हैं।
एक होता है आंतरिक फायदा, जिससे हमारा आत्म-सम्मान बढ़ता है। मसलन मैं एक आम आदमी हूं और अपने को बोल दूं कि मैं डॉक्टर हूं जैसे कि मैंने अपने नाम के आगे लिखा लिया डॉक्टर फलां, तो लोगों का देखने का नजरिया ही बदल जाता है। तो ऐसे में लोग दूसरे की नजर में अपने आपको इज्जतदार बनाने के लिए एक झूठ का सहारा लेते हैं।
दोनों तरह के झूठ बुरे हैं। आंतरिक झूठ से पछतावे की भावना पैदा होती है। बाहरी झूठ में हमने दूसरे को धोखा दिया। दूसरे की चीज ले ली झूठ बोल कर। ऐसे में हम झूठ इसलिए बोलते हैं, क्योंकि हमने कभी आदर्शों को तरजीह दी ही नहीं। जब हमारे अंदर भावनाएं नहीं होतीं तब हम झूठ का सहारा लेते हैं। इसके अलावा हम डर के कारण भी झूठ बोलते हैं। जैसे कई बार हमें पता होता है कि हम सच बोल देंगे, तो किसी को सजा या नुक्सान उठाना पड़ सकता है। यही नहीं हम दूसरे को खुश करने के लिए भी झूठ बोलते हैं।
झूठ किसी भी तरह का उचित नहीं होता। झूठ का कभी न कभी खुलासा होता ही है। दूसरों के सामने भले न हो, खुद के सामने तो होता ही है। तब आपको लगेगा कि हमें अपनी पहचान ठीक नहीं लगी, तो हमने झूठ का सहारा लिया।