Kundli Tv- इस वजह से काल भैरव ने काट डाला था ब्रह्मा का 5वां सर

Edited By Jyoti,Updated: 28 Nov, 2018 06:05 PM

kaal bhairav jayanti special

29 नवंबर 2018 गुरूवार को काल भैरव जयंती का पर्व मनाया जाएगा। ज्योतिष के अनुसार इस दिन को कालाष्टमी भी कहा जाता है। मान्यता है कि काल भैरव जयंती के दिन भगवान शिव के रूप काल भैरव की आराधना की जाती है।

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29 नवंबर 2018 गुरूवार को काल भैरव जयंती का पर्व मनाया जाएगा। ज्योतिष के अनुसार इस दिन को कालाष्टमी भी कहा जाता है। मान्यता है कि काल भैरव जयंती के दिन भगवान शिव के रूप काल भैरव की आराधना की जाती है। हिंदू धर्म की कुछ मान्यताओं के अनुसार इनका एक नाम दंडपाणी भी हैं। लेकिन असल में काल भैरव कौन थे, इनका जन्म कैसे हुआ आदि के बारे में सब नहीं जानते। आज हम आपको इनसे संबंधित पौराणिक कथा के बारे में बताने जा रहे है, जिसमें हम इनके जन्म से लेकर ब्रह्माजी का सिर काटने तक की सारी कथा जानेंगे। 
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जन्म कथा
शिव पुराण में कालभैरव के जन्म को लेकर बड़ी ही रोचक कथा वर्णित है। जिसके अनुसार एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी में  इस बात को लेकर वाद-विवाद पैदा हो गया कि कौन उनमें से सर्वश्रेष्ठ है। कहा जाता है कि दोनों अपने आपको श्रेष्ठ बताते हुए  एक दूसरे से युद्ध करने लगे। सभी देववताओं उनके युद्ध को शांत करवाते हुए वेद से पूछा तो उत्तर आया कि जिनके भीतर चराचर जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान समाया हुआ है वहीं सर्वश्रेष्ठ हैं यानि भगवान शिव। जब ब्रह्माजी वेद के मुख से शिव के बारे में यह सब सुना तो उन्होंने अपने पांचवें मुख से शिव को बहुत भला-बुरा कहा। जिससे वेद को बहुत दुख पहुंचा। तब एक दिव्यज्योति के रूप में भगवान रूद्र प्रकट हुए। ब्रह्मा ने कहा कि हे रूद्र तुम मेरे ही सिर से पैदा हुए हो। अधिक रुदन करने के कारण मैंने ही तुम्हारा नाम रूद्र रखा है इसलिए तुम मेरी सेवा में आ जाओ।
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भगवान शिव जो को ब्रह्माजी के इस आचरण पर बहुत क्रोध आया उन्होंने भैरव को उत्पन्न करके कहा कि जाओ तुम ब्रह्मा पर शासन करो। दिव्य शक्ति से भरपूर भैरव ने अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी अंगुली के नाखून से ही शिव के लिए अपमान जनक शब्द कहने वाले ब्रह्मा जी के पांचवें सिर को काट दिया। कहते हैं इसके बाद में शिव जी ने भैरव जी को काशी भेजा जहां उन्हें ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली। आज भी ये काशी के कोतवाल के रूप में पूजे जाते हैं। कहते हैं काशी जाने वाला हर भक्त की यात्रा इनके दर्शन किए बगैर अधूरी मानी जाती।

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