Edited By Niyati Bhandari,Updated: 16 Jul, 2025 02:01 PM

Kalashtami 2025: वेदों में जिस परमपुरुष को रुद्र बताया गया है, तंत्र शास्त्र में उसी रूद्र का भैरव के रूप से वर्णन किया गया है। अतः काशी में निवास व भ्रमण करने वाले भैरव कृपा के कारण यमराज से नहीं डरते। वरण काशी में कदम रखने से स्वयं यमराज भय खाते...
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Kalashtami 2025: वेदों में जिस परमपुरुष को रुद्र बताया गया है, तंत्र शास्त्र में उसी रूद्र का भैरव के रूप से वर्णन किया गया है। अतः काशी में निवास व भ्रमण करने वाले भैरव कृपा के कारण यमराज से नहीं डरते। वरण काशी में कदम रखने से स्वयं यमराज भय खाते हैं। काशी में भैरव दर्शन से सभी अनिष्ट समाप्त होते हैं। काशी विश्वनाथ के कोतवाल के दर्शन से सभी भक्तों के जन्म जन्मांतरों के पापों का नाश हो जाता है। तंत्र रुद्रयामल शास्त्र में शक्ति के साधक के लिए शिव व भैरव जी की आराधना अनिवार्य मानी गई है तथा तन्त्रोक्त दस महाविद्या साधना की सिद्धि हेतु परम शिव व काल भैरव साधना अनिवार्य है।
भगवान शंकर के अवतार काल भैरव को काशी का कोतवाल कहा जाता है । पौराणिक मतानुसार ब्रह्मदेव व कृतु के विवाद के समय परब्रह्म शिव का आगमन हुआ, जब ब्रह्मदेव जी ने अहंकारवश अपने पांचवें मुख से शिव का अपमान किया तब ब्रहमदेव को दंड देने हेतु उसी समय शिव आज्ञा से भैरव की उत्पत्ति हुई। शिव ने भैरव को वरदान देकर उन्हें ब्रह्मदेव को दंड देने का आदेश दिया।

शिव ने भैरव का नामकरण करते हुए कहा कि आपसे काल भी डरेगा। अतः आज से आपका नाम ‘काल भैरव’ के नाम से प्रसिद्ध होगा। काशी में चित्रगुप्त व यमराज का कोई अधिकार नहीं होगा। काशी में पाप-पुण्य लेखे-जोखे का अधिकार मात्र भैरव का ही होगा । शास्त्रानुसार भैरव जी ने ब्रह्मदेव का पांचवां सिर त्रिशूल से काट दिया।

कुछ शास्त्रों में ऐसा भी वर्णित है कि भैरव ने अपने बाएं हाथ के नाखून से ब्रहमदेव का पांचवां सिर नोच लिया था। ब्रहमदेव का कपाल इन्हीं की हाथों से सटा रहा व भैरव जी को ब्रह्म हत्या का पाप लग गया। सभी लोकों और तीर्थ उपतीर्थ में भ्रमण करते-करते जब भैरव बैकुंठ पहुंचे तो उन्हें भगवान विष्णु ने भगवान शंकर के त्रिशूल पर विराजमान होकर काशी जाने का परामर्श दिया।
इसके बाद भैरव काशी तीर्थ आए। काशी में इनके हाथ से जहां ब्रह्मदेव का कपाल विमुक्त हुआ। वह तीर्थ कपाल मोचन नाम से प्रसिद्ध हुआ। शास्त्रों में मुख्यतः अष्ट भैरव की गणना की जाती है। इनके नाम बटुक भैरव, क्रोध भैरव, दंडपाणि (शूल पाणी), भूत भैरव (भीषण भैरव), कपाल भैरव, चंड भैरव, आसितांग भैरव व आनंद भैरव मिलते हैं। शिवपुराण के अनुसार भैरव को शिव का पूर्णरूप बतलाया गया है। काल भैरव परम साक्षात रुद्र का ही रूप हैं।
