Khatu Shyam Ji Mandir: इस तरह से खाटू श्याम मंदिर अस्तित्व में आया

Edited By Updated: 16 Apr, 2025 07:18 AM

khatu shyam ji mandir

Mahabharat Barbarik: हमारे देश के बहुत से धार्मिक स्थल चमत्कारों व वरदानों के लिए प्रसिद्ध हैं, उन्हीं में से एक है राजस्थान का प्रसिद्ध ‘खाटू श्याम मंदिर’। इस मंदिर में भीम के पोते और घटोत्कच के बेटे बर्बरीक की श्याम रूप में पूजा की जाती है। कहा...

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Khatu Shyam Ji Mandir: हमारे देश के बहुत से धार्मिक स्थल चमत्कारों व वरदानों के लिए प्रसिद्ध हैं, उन्हीं में से एक है राजस्थान का प्रसिद्ध ‘खाटू श्याम मंदिर’। इस मंदिर में भीम के पोते और घटोत्कच के बेटे बर्बरीक की श्याम रूप में पूजा की जाती है। कहा जाता है कि जो भी इस मंदिर में जाता है उसे बाबा का नित नया रूप देखने को मिलता है। कई लोगों को तो इनके आकार में भी बदलाव नजर आता है, कभी मोटा तो कभी दुबला, कभी हंसता हुआ तो कभी ऐसा कि नजरें टिकाना मुश्किल हो जाता है। मान्यता है कि इस बालक में बचपन से ही वीर और महान योद्धा के गुण थे और इन्होंने भगवान शिव को प्रसन्न कर उनसे तीन अभेद्य बाण प्राप्त किए थे।

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इसी कारण इन्हें तीन बाणधारी भी कहा जाता था। स्वयं अग्रिदेव ने इनसे प्रसन्न होकर ऐसा धनुष प्रदान किया था जिससे वह तीनों लोकों में विजय प्राप्त करने का सामर्थ्य रखते थे। महाभारत के युद्ध के प्रारम्भ में बर्बरीक ने अपनी माता के समक्ष इस युद्ध में जाने की इच्छा प्रकट की, उन्होंने माता से पूछा, ‘‘मैं इस युद्ध में किसका साथ दूं?’’ 

माता ने सोचा कि कौरवों के साथ तो उनकी विशाल सेना, स्वयं भीष्म पितामह, गुरु द्रोण, कृपाचार्य, अंगराज कर्ण जैसे महारथी हैं, इनके सामने पांडव अवश्य ही हार जाएंगे, ऐसा सोच वह बर्बरीक से बोली, ‘‘जो हार रहा हो, तुम उसी का सहारा बनो।’’ 

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बर्बरीक ने माता को वचन दिया कि वह ऐसा ही करेंगे और वह अपने नीले घोड़े पर सवार होकर युद्ध भूमि की ओर निकल पड़े। अंतर्यामी, सर्वव्यापी भगवान श्रीकृष्ण तो युद्ध का अंत जानते थे इसलिए उन्होंने सोचा कि अगर कौरवों को हारता देखकर बर्बरीक कौरवों का साथ देने लगा तो पांडवों की हार तय है। तब श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण का वेश धारण कर चालाकी से बर्बरीक के सामने प्रकट हो उनका शीश दान में मांग लिया।

बर्बरीक सोच में पड़ गया कि कोई ब्राह्मण मेरा शीश क्यों मांगेगा ? यह सोच उन्होंने ब्राह्मण से उनके असली रूप के दर्शन की इच्छा व्यक्त की। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अपने विराट रूप में दर्शन दिए। 

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बर्बरीक ने भगवान श्रीकृष्ण से सम्पूर्ण युद्ध देखने की इच्छा प्रकट की। भगवान बोले- तथास्तु। ऐसा सुन बर्बरीक ने अपने आराध्य देवी-देवताओं और माता को नमन किया और कमर से कटार खींचकर एक ही वार में अपने शीश को धड़ से अलग कर श्रीकृष्ण को दान कर दिया। 

श्रीकृष्ण ने तेजी से उनके शीश को अपने हाथ में उठाया एवं अमृत से सींचकर अमर करते हुए युद्ध भूमि के समीप ही सबसे ऊंची पहाड़ी पर सुशोभित कर दिया, जहां से बर्बरीक पूरा युद्ध देख सकते थे।

बर्बरीक मौन हो कर महाभारत का युद्ध देखते रहे। युद्ध की समाप्ति पर पांडव विजयी हुए और आत्म-प्रशंसा में वे विजय का श्रेय अपने ऊपर लेने लगे। आखिरकार निर्णय के लिए सभी श्रीकृष्ण के पास गए तो वह बोले, ‘‘मैं तो स्वयं व्यस्त था इसीलिए मैं किसी का पराक्रम नहीं देख सका। ऐसा करते हैं, सभी बर्बरीक के पास चलते हैं।’’ 

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बर्बरीक के शीश-दान की कहानी अब तक पांडवों को मालूम नहीं थी। वहां पहुंच कर भगवान श्रीकृष्ण ने उनसे पांडवों के पराक्रम के बारे में जानना चाहा। बर्बरीक के शीश ने उत्तर दिया, ‘‘भगवन युद्ध में आपका सुदर्शन चक्र नाच रहा था और जगदम्बा लहू का पान कर रही थीं, मुझे तो ये लोग कहीं भी नजर नहीं आए।’’ 

बर्बरीक का उत्तर सुन सभी की नजरें नीचे झुक गईं। तब श्रीकृष्ण ने बर्बरीक का परिचय कराया और उनसे प्रसन्न होकर इनका नाम श्याम रख दिया। 

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अपनी कलाएं एवं अपनी शक्तियां प्रदान करते हुए भगवान श्रीकृष्ण बोले, ‘‘बर्बरीक धरती पर तुम से बड़ा दानी न तो कोई हुआ है और न ही होगा। मां को दिए वचन के अनुसार तुम हारने वाले का सहारा बनोगे। कल्याण की भावना से जो लोग तुम्हारे दरबार में तुमसे जो भी मांगें उन्हें मिलेगा। तुम्हारे दर पर सभी की इच्छाएं पूर्ण होंगी।’’

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इस तरह से खाटू श्याम मंदिर अस्तित्व में आया। महाभारत में ‘कर्ण’ से भी बड़े महादानी थे ‘बर्बरीक’

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