Krishna Janmashtami: कृष्ण जन्माष्टमी से पहले जरूर पढ़ें, बांके बिहारी के मुस्लिम और विदेशी भक्तों की मधुर सत्य कथाएं

Edited By Updated: 14 Aug, 2025 02:00 PM

krishna janmashtami

Krishna Janmashtami: देश में ऐसे भी उदाहरण हैं, जो सनातन धर्म के बंटवारे से परे खुद को भगवान कृष्ण की भक्ति में डुबोकर भवसागर को पार कर चुके हैं। आपको बताते हैं मुस्लिमों और उन विदेशियों के बारे में जिन्हें सारी दुनिया कृष्ण भक्त के नाम से जानती है।

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Krishna Janmashtami: देश में ऐसे भी उदाहरण हैं, जो सनातन धर्म के बंटवारे से परे खुद को भगवान कृष्ण की भक्ति में डुबोकर भवसागर को पार कर चुके हैं। आपको बताते हैं मुस्लिमों और उन विदेशियों के बारे में जिन्हें सारी दुनिया कृष्ण भक्त के नाम से जानती है।

Musalman aur krishna bhagwan
सैयद इब्राहिम उर्फ रसखान
भगवान कृष्ण के परम भक्तों में से एक हैं रसखान। उनका असली नाम सैयद इब्राहिम था, मगर कृष्ण के प्रति उनके लगाव और उनकी रचनाओं ने उन्हें रसखान नाम दिया। रसखान यानी रस की खान। कहा जाता है कि रसखान ने भागवत का अनुवाद फारसी में किया था। ‘मानुस हौं तो वही रसखान, बसौं मिलि गोकुल गांव के ग्वारन’, रसखान की ही देन है।

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अमीर खुसरो
ग्यारहवीं शताब्दी के बाद इस्लाम भारत में तेजी से फैला। भारत में इस्लाम कृष्ण के प्रभाव से अछूता नहीं रह पाया। इसी वक्त चर्चा में आए अमीर खुसरो। एक बार निजामुद्दीन औलिया के सपने में कृष्ण आए। औलिया ने अमीर खुसरो से कृष्ण की स्तुति में कुछ लिखने को कहा तो खुसरो ने मशहूर ‘रंग छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाय के’ कृष्ण को समर्पित कर दिया।

आलम शेख
आलम शेख रीति काल के कवि थे। उन्होंने ‘आलम केलि’, ‘स्याम स्नेही’ और ‘माधवानल-काम-कंदला’ नामक ग्रंथ लिखे। ‘हिंदी साहित्य के इतिहास’ में रामचन्द्र शुक्ल लिखते हैं कि आलम हिंदू थे जो मुसलमान बन गए थे। उन्होंने कृष्ण की बाल लीलाओं को अपनी रचनाओं में उतारा था। उनकी प्रमुख रचना ‘पालने खेलत नंद-ललन छलन बलि, गोद लै लै ललना करति मोद गान’ है।

उमर अली
यह बंगाल के प्राचीन श्री कृष्ण भक्त कवियों में से एक हैं। इनकी रचनाओं में भगवान कृष्ण में समाए हुए राधाजी के प्रति प्रेम भाव को दर्शाया गया है। इन्होंने बंगाल में वैष्णव पदावली की रचना की है।

नशीर मामूद
यह भी बंगाल से ही आते हैं। इनका जो पद मिला है, वह गौचारण लीला का वर्णन करता है। पद भाव रस से पूर्ण है। श्री कृष्ण और बलराम मुरली बजाते हुए गायों के साथ खेल रहे हैं। सुदामा आदि सखागण उनके साथ हैं। इनकी रचना इस प्रकार है- धेनु संग गांठ रंगे, खेलत राम सुंदर श्याम।

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नवाब वाजिद अली शाह
यूं तो फैजाबाद का प्रेम भगवान राम के प्रति जगजाहिर है, मगर वहां से निकले और लखनऊ आकर बसे नवाबों के आखिरी वारिस वाजिद अली शाह कृष्ण के दीवाने थे। 1843 में वाजिद अली शाह ने राधा-कृष्ण पर एक नाटक करवाया था। लखनऊ के इतिहास की जानकार रोजी लेवेलिन जोंस ‘द लास्ट किंग ऑफ इंडिया’ में लिखती हैं कि ये पहले मुसलमान राजा (नवाब) हुए, जिन्होंने राधा-कृष्ण के नाटक का निर्देशन किया था। लेवेलिन बताती हैं कि वाजिद अली शाह कृष्ण के जीवन से बेहद प्रभावित थे। वाजिद के कई नामों में से एक ‘कन्हैया’ भी था।

सालबेग की मजार
जगन्नाथपुरी की यात्रा के दौरान रथ एक मुस्लिम संत की मजार पर रुककर ही आगे बढ़ता है। यह मुस्लिम संत थे सालबेग। सालबेग इस्लाम धर्म को मानते थे। उनकी माता हिंदू और पिता मुस्लिम थे। सालबेग मुगल सेना में भर्ती हो गए। एक बार उसके माथे पर चोट लगने के कारण बड़ा घाव हो गया। कई हकीमों और वैद्यों से इलाज के बाद भी उसका जख्म ठीक नहीं हो रहा था।
तब उनकी माता ने उसे भगवान जगन्नाथजी की भक्ति करने की सलाह दी। वह दिन-रात ईश्वर की भक्ति में रमा रहता। फिर उसके सपने में स्वयं जगन्नाथजी ने आकर उसे भभूत दी।

सपने में उस भभूत को माथे पर लगाते ही उसका सपना टूट जाता है। फिर वह देखता है कि उसका घाव वाकई में सही हो जाता है। मृत्यु के बाद एक स्थान पर उसकी मजार बनी है और हर साल यात्रा के वक्त जग्गनाथजी का रथ यहां रुकता है।

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श्री कृष्ण प्रेम
श्री कृष्ण प्रेम (10 मई, 1898 - 14 नवंबर 1965), जिनका जन्म रोनाल्ड हैनरी निक्सन के रूप में हुआ था। वह एक ब्रिटिश आध्यात्मिक साधक थे, जिन्होंने 20वीं सदी की शुरुआत में भारत आकर गहरी आध्यात्मिक यात्रा का मार्ग अपनाया। वह वैष्णव हिन्दू धर्म को अपनाने वाले पहले यूरोपीय व्यक्तियों में से एक माने जाते हैं और भारतीय आध्यात्मिक समुदाय, विशेष रूप से अपने शिष्यों के बीच, अत्यंत सम्मानित थे।

उन्होंने अपनी आध्यात्मिक गुरु श्री यशोदा माई (1882-1944) के साथ मिलकर उत्तराखंड के अल्मोड़ा के पास मिर्तोला नामक स्थान पर एक आश्रम की स्थापना की, जो एक शांत और साधना-उन्मुख केंद्र बन गया। यहीं उन्होंने वैष्णव परंपरा के माध्यम से आध्यात्मिक साधना को अपनाया लेकिन अपने प्रमुख शिष्य श्री माधव आशीष के अनुसार, समय के साथ उन्होंने गौड़ीय वैष्णव परम्परा की सीमाओं को पार करते हुए एक रूढ़िवाद से मुक्त, सार्वभौमिक आध्यात्मिक मार्ग की पुष्टि की।

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अच्युत गोपी : जिनके भजन सुनने दूर-दूर से आते हैं लोग
अमरीका की अच्युत गोपी नामक विदेशी महिला अपने भक्ति गीतों के लिए इतनी फेमस हैं कि दूर-दूर से लोग उनके भजन सुनने के लिए आते हैं। अच्युत एक आध्यात्मिक कंटैंट निर्माता और ग्रैमी नॉमिनेटेड आर्टिस्ट हैं।

वह कहती हैं, ‘‘मैंने अपने जीवन में अब तक श्री कृष्ण भक्ति गीतों और ध्यान-समाधि की काफी कार्यशालाएं आयोजित की हैं। मैं ईमानदारी से कहती हूं कि इसके कारण मेरा जीवन काफी बेहतर हुआ है और इससे मुझे एक अच्छी जिंदगी जीने का मौका मिला है। मुझे नहीं लगता कि इससे भी अच्छी जिंदगी कोई हो सकती है।’’

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