जानिए क्या है बरसाने की लट्ठमार होली का महत्व?

Edited By Jyoti,Updated: 24 Mar, 2021 06:12 PM

lathmar holi in barsana

ब्रज में चल रहेे होली महोत्सव में बीते दिन 23 मार्च को लट्ठमार होली खेली गई। दूसरी ओर इससे पहले दिन बरसाने में हुई लड्डू होली मनाई गई।

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ब्रज में चल रहेे होली महोत्सव में बीते दिन 23 मार्च को लट्ठमार होली खेली गई। दूसरी ओर इससे पहले दिन बरसाने में हुई लड्डू होली मनाई गई। जिस दौरान बरसाने से राधा रानी मंदिर के बुलावे पर नंद गांव के ग्वाले नंद गांव आकर फिर बरसाने की पीली पोखर पर आते हैं। बात करें बरसाने कि हुरियारिनों की लट्ठमार होली की तो यहां जो लोग नंद गांव से आते हैं उनका बरसाने के गोस्वामी समाज द्वारा स्वागत सत्कार किया जाता है। कहा जाता है जैसे कोई अपनी बेटी के ससुराल बालों का मान-सम्मान करता है उसी तरह से आज भी यहां पर नंद गांव के लोग श्रीकृष्ण के ससुराल बरसाने में आते हैं और फिर बरसाने के लोग उनकी अपने दामाद की तरह ही खातिरदारी करते हैं।

इसके अलावा भांग पिलाकर सभी को होली खेलने के लिए रंगीली गली में चलने का अनुरोध करते हैं। पीली पोखर पर आने के वाद नंद गांव के हुरियारे अपने सर पपर फैंटा बांधते हैं और यहीं पर से तैयार होकर और सबसे पहले बरसाने के राधा रानी मंदिर जाते हैं। यहां बरसाने और नंद गांव के लोग मिलकर बधाई गायन (रसिया गाना) करते हैं। फिर हुरियारों पर टेसू से बना रंग डाला जाता है और फिर सभी रंगीली गली में आते हैं। 

यहां महिलाएं लहंगा चुनरी पहनकर और हाथों में लट्ठ लेकर आती हैं। वहीं पुरुष सर पर पगड़ी, बदन पर बगल बंधी पहन कर और हाथों में पड़ने वाले लट्ठों से बचने के लिए ढाल लेकर आते हैं। जिसके बाद वहां पर मौज़ूद हुरियारिनों से लट्ठ मार होली खेलते हैं। 

कहा जाता है कि आज के दिन पूरा बरसाना हर तरफ रंग और गुलाल से सराबोर दिखाई देता है। देश-विदेश से आए लोग लाखों भक्त इस होली में जमकर नाचते गाते हैं और होली का खूब आनंद लेते हैं। वहीं सभी के मन में इस अलौकिक होली का एक अलग ही नजारा बन जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यहां पर जो महिलाएं होती हैं वो राधा की सखियां मानी जाती हैं और जो पुरुष होते है व आज के दिन कृष्ण के सखा माने जाते हैंं। 

जो राधा रानी की सखियां यानि महिलओं से पहले हंसी मजाक करते हैं, जिस पर महिलाएं उन पर लाठियों की बरसात करती हैं और कहती है कि तुम वर्ष भर में ही क्यों आए हो बरसाने में ही क्यों नहीं रहते।

इस दिन हुरियारों पर पड़ने वाली लट्ठों की चोट बड़े ही प्रेम की चोट मानी जाती है, क्योंकि यहां होली का मतलब ही प्रेम होता है, यही कारण है कि चोटों को झेलकर भी वे यही कहते हैं कि भाबी जरा जोर से मरो और फिर उसके बाद 8-10  महिलाएं एक एक को पकड़ कर जाकर लाठियां मारती हैं  और सभी हुरियारे और हुरियारिन इस होली को नाच गाकर बड़े ही हर्ष उल्लास से मनाते हैं। 


 

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