Edited By Prachi Sharma,Updated: 14 Aug, 2025 07:07 AM

Madam Bhikaji Cama death Anniversary: महान स्वतंत्रता सेनानी मैडम भीकाजी कामा का जन्म 24 सितम्बर, 1861 को मुम्बई के एक प्रतिष्ठित पारसी परिवार में हुआ था। इनके पिता सोहराबजी पटेल और माता जैजी बाई सोहराबजी पटेल का अपने समाज में अलग ही रुतबा था। उनके...
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Madam Bhikaji Cama death Anniversary: महान स्वतंत्रता सेनानी मैडम भीकाजी कामा का जन्म 24 सितम्बर, 1861 को मुम्बई के एक प्रतिष्ठित पारसी परिवार में हुआ था। इनके पिता सोहराबजी पटेल और माता जैजी बाई सोहराबजी पटेल का अपने समाज में अलग ही रुतबा था। उनके पिता ने कानून की शिक्षा हासिल की थी लेकिन पेशे से वह एक व्यापारी थे। भीकाजी को भी आम पारसी लड़कियों की तरह मुम्बई के एलैक्जैंडर नेटिव गल्र्स इंगलिश इंस्टीच्यूट में शिक्षा के लिए भेजा गया। भीकाजी एक अत्यंत मेधावी छात्रा थीं। 13 अगस्त, 1885 को इनका विवाह मुम्बई के ही समृद्ध वकील रुस्तम कामाजी से हुआ।
इनके पति के अंग्रेजों से अच्छे संबंधों के कारण वह राजनीति में जाने के इच्छुक थे। भीकाजी एक सच्ची राष्ट्रभक्त थीं, इसी आपसी मतभेद के कारण इनका वैवाहिक जीवन सुखद नहीं रहा और इन्होंने अपना अधिकतर समय समाज सेवा के नाम कर दिया। 1896 में जब मुम्बई में प्लेग की भयंकर महामारी फैली तो भीकाजी ने कई समाज सेवी संस्थाओं के साथ रोगियों की दिन-रात सेवा की। इस दौरान इस बीमारी ने उन्हें भी अपनी गिरफ्त में ले लिया। 1901 में उन्हें इलाज के लिए ब्रिटेन भेजा गया, जहां से वह पूर्ण स्वस्थ होकर लौटीं।

लंदन प्रवास के दौरान ही इनकी मुलाकात दादा भाई नौरोजी से हुई। वह भीकाजी की राष्ट्रभक्ति से इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्होंने भीकाजी को अपना निजी सचिव नियुक्त कर लिया। इनका कुछ समय पैरिस में भी बीता, जहां उन्होंने रेवाभाई राणा और मुंशेरशाह बरजोर्जी गोदरेज के साथ मिलकर पैरिस-इंडियन सोसायटी की स्थापना की।
इस दौरान भीकाजी ने भारत की स्वतंत्रता की मांग करने वाले क्रांतिकारी लेख और वंदेमातरम् गीत की पंक्तियां लिख कर प्रकाशित और वितरित भी कीं। मैडम भीकाजी पहली भारतीय थीं, जिन्होंने 22 अगस्त, 1907 को विदेशी धरती पर (जर्मनी में) इंटरनैशनल सोशलिस्ट कांफ्रैंस के दौरान हजारों विदेशी प्रतिनिधियों के सामने राष्ट्रीय ध्वज फहराया था।
तब इस भारतीय युवती का ओजस्वी व्यक्तित्व देख कर वहां उपस्थित विभिन्न देशों के प्रतिनिधि आश्चर्यचकित रह गए। राष्ट्रध्वज फहराने के बाद भीकाजी ने वहां उपस्थित जनसमुदाय को संबोधित करते हुए कहा था कि भारत की आजादी का यह झंडा उन अनगिनत भारतीय युवाओं के पवित्र खून से रंगा है, जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया और मैं यहां उपस्थित लोगों से आग्रह करती हूं कि आप सब भारतीय ध्वज को सलाम करें और स्वाधीनता की इस लड़ाई में सहयोग दें।
यह सोचने वाली बात है कि देश की आजादी के 40 वर्ष पहले अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वाली इस भारतीय स्त्री की शख्सियत कितनी दमदार रही होगी। 1914 में प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान जब फ्रांस और ब्रिटेन में संधि हुई तो पैरिस-इंडियन सोसायटी के लगभग सभी सदस्यों ने पैरिस छोड़ दिया लेकिन भीकाजी ने वहीं रह कर देश की आजादी के लिए संघर्ष करना मंजूर किया। जब पंजाब रैजीमैंट की टुकड़ी ब्रिटेन व उसके मित्र देशों की तरफ से लड़ाई करने के लिए फ्रांस की धरती पर पहुंची तो भीकाजी ने उनके खिलाफ प्रदर्शन किए और इसी दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
1935 तक वह यूरोप में नजरबंद रहीं। इसी बीच उन्हें पक्षाघात का दौरा पड़ा तो इनके वकील सर कावासाजी जहांगीर के काफी प्रयासों के बाद इन्हें घर वापस जाने की अनुमति मिल गई। 13 अगस्त, 1936 को 74 वर्ष की आयु में मुम्बई के पारसी जनरल अस्पताल में इस स्वतंत्रता सेनानी का स्वर्गवास हो गया।