Edited By Niyati Bhandari,Updated: 15 Dec, 2025 12:15 PM

Safala Ekadashi Vrat Katha: हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष स्थान है। वर्ष भर में आने वाली 24 एकादशियों में सफला एकादशी का अत्यंत महत्त्व बताया गया है। यह एकादशी पौष मास के कृष्ण पक्ष में आती है। ब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार जैसे नागों में शेषनाग,...
Safala Ekadashi Vrat Katha: हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष स्थान है। वर्ष भर में आने वाली 24 एकादशियों में सफला एकादशी का अत्यंत महत्त्व बताया गया है। यह एकादशी पौष मास के कृष्ण पक्ष में आती है। ब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार जैसे नागों में शेषनाग, पक्षियों में गरुड़, यज्ञों में अश्वमेघ यज्ञ और नदियों में गंगोत्री श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार समस्त व्रतों में एकादशी व्रत सर्वोत्तम माना गया है। शास्त्रों में कहा गया है कि 5 हजार वर्षों की तपस्या का फल केवल एक एकादशी व्रत से प्राप्त हो जाता है।
सफला एकादशी का पौराणिक महत्व
सफला एकादशी का वर्णन भगवान विष्णु के प्रिय व्रत के रूप में मिलता है। इस दिन विधिपूर्वक व्रत, उपवास, रात्रि जागरण और विष्णु-पूजन करने से मनुष्य के पाप नष्ट होते हैं और जीवन में सफलता प्राप्त होती है। इसी कारण इसे सफला कहा गया है अर्थात् “फल देने वाली” एकादशी।

लुम्पक की कथा: पाप से पुण्य तक की यात्रा
प्राचीन काल में चंपावती नगर में महिष्मत नामक एक राजा राज्य करता था। उसका बड़ा पुत्र लुम्पक अत्यंत दुष्ट, निंदक और पापी स्वभाव का था। उसके आचरण से दुखी होकर राजा ने उसे राज्य से निष्कासित कर दिया। विवश होकर लुम्पक जंगल में रहने लगा और राहगीरों को लूटकर तथा मांस-फल खाकर जीवन यापन करने लगा।
उसी वन में एक पूजनीय पीपल का वृक्ष था, जिसके नीचे लुम्पक रहने लगा। एक दिन वह गंभीर रूप से बीमार पड़ गया और बेहोश होकर गिर पड़ा। उस दिन सफला एकादशी थी। अगले दिन द्वादशी की दोपहर तक वह बिना अन्न-जल के पड़ा रहा। जब उसे होश आया, तो उसने कुछ फल इकट्ठे किए और मन ही मन भगवान विष्णु को अर्पण कर उन्हें ग्रहण किया। भूख और बीमारी के कारण वह सारी रात सो भी नहीं सका। अनजाने में ही उसका निराहार व्रत और रात्रि जागरण संपन्न हो गया।

भगवान विष्णु की कृपा
सफला एकादशी के प्रभाव से भगवान मधुसूदन विष्णु लुम्पक पर प्रसन्न हुए। द्वादशी के दिन प्रातःकाल एक दिव्य अश्व उसके पास आया और आकाशवाणी हुई, “हे राजकुमार! इस सफला एकादशी के पुण्य से तुम्हें पुनः राज्य प्राप्त होगा।”
लुम्पक अपने पिता के पास लौटा, उन्हें समस्त कथा सुनाई। राजा ने उसे ससम्मान स्वीकार किया। कालांतर में वह स्वयं राजा बना, उसका विवाह हुआ और उसे धर्मनिष्ठ पुत्र की प्राप्ति हुई। इस प्रकार एक पापी व्यक्ति भी एकादशी व्रत के प्रभाव से पुण्यात्मा बन गया।
सफला एकादशी व्रत का फल
शास्त्रों के अनुसार सफला एकादशी व्रत करने से इस लोक में यश, धन और सफलता प्राप्त होती है। परलोक में मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। अश्वमेघ यज्ञ के समान पुण्य फल प्राप्त होता है। पापों का नाश और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन होता है। सफला एकादशी केवल एक व्रत नहीं, बल्कि जीवन को सही दिशा देने वाला दिव्य अवसर है। श्रद्धा, भक्ति और संयम से किया गया यह व्रत मनुष्य को पाप से पुण्य और अज्ञान से मोक्ष की ओर ले जाता है।
