Mahesh Navami 2020: क्या देवों के देव महादेव से जु़ड़ा है माहेश्वरी समाज का रहस्य?

Edited By Jyoti,Updated: 31 May, 2020 12:33 PM

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आज महेश नवमी का पर्व मनाया जाएगा। ज्येष्ठ माह की नवमी तिथि को पड़ने वाला ये त्यौहार माहेश्वरी समाज के प्रमुख त्यौहारों में से एक है। इस दिन भगवान शंकर व देवी पार्वती की पूजा का विधान है।

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आज महेश नवमी का पर्व मनाया जाएगा। ज्येष्ठ माह की नवमी तिथि को पड़ने वाला ये त्यौहार माहेश्वरी समाज के प्रमुख त्यौहारों में से एक है। इस दिन भगवान शंकर व देवी पार्वती की पूजा का विधान है। कथाएं प्रचलित हैं कि महादेव के आशीर्वाद से ही इस दिन। माहेश्वरी समाज की उतपत्ति हुई थी। यही कारण है कि इस दिन को माहेश्वरी समाज बहुत ही धूमधाम से मनाता है। हालांकि इस बार लॉकडाउन के कारण इस पर्व को धूमधाम से ना मना कर अपने-अपने घरों में ही मनाया जाएगा। तो चलिए इस खास अवसर पर जानते हैं महेश नवमी से जुड़ी पौराणिक कथा।
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महेश नवमी की कथा
कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में खडगलसेन नामक एक राजा थे, जिनसे राजा इनकी प्रजा बड़ी प्रसन्न थी।  राजा खडगलसेन धार्मिक प्रवृति के होने के साथ-साथ प्रजा की भलाई में लगे रहते। उनके पास संतान के अलावा कोई कमी नहीं थी जिस कारण वे अत्यंत दुखी रहते। एक बार राजा ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से कामेष्टि यज्ञ का आयोजन करवाया। इस यज्ञ में संत-महात्माओं ने राजा को वीर और पराक्रमी पुत्र होने का आशीर्वाद दिया। 

साथ भविष्यवाणी की, कि 20 सालों तक उसे उत्तर दिशा में जाने से रोकना होगा। राजा ने उनका कहा माना और उनका आशीर्वाद ग्रहण किया जिसके बाद राजा के यहां पुत्र का जन्म हुआ जिस का धूमधाम से नामकरण संस्कार करवाया और अपने पुत्र का नाम सुजान कंवर रखा। कुछ ही दिनों मे सुजान कंवर वीर, तेजस्वी और समस्त विद्याओं से निपुण हो गया।

कुछ समय पश्चात उस शहर में जैन मुनि का आगमन हुआ, सुजान कंवर उनके सत्संग से बहुत प्रभावित हुआ। जिसके बाद उसने जैन धर्म की शिक्षा ग्रहण कर और जगह जगह धर्म का प्रचार-प्रसार करने लगे। जिससे धीरे-धीरे राज्य के लोगों की जैन धर्म में आस्था बढ़ने लगी।
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कहा जाता है कि एक दिन राजकुमार सुजान कंवर शिकार खेलने के लिए जंगल में गए, इस दौरान वो अचानक से उत्तर दिशा की ओर जाने लगे। सैनिकों के मना करने के बावजूद वह माने नहीं। उत्तर दिशा में सूर्य कुंड के पास ऋषि-मुनि यज्ञ कर रहे थे। जिसे देखकर राजकुमार अत्यंत क्रोधित हुए और बोले- 'मुझे अंधरे में रखकर उत्तर दिशा में नहीं आने दिया गया' और उन्होंने सभी सैनिकों को भेजकर यज्ञ में विघ्न उत्पन्न करवाया।

ऋषियों ने उनके इस कर्म से क्रोधित होकर उन सभी को श्राप दिया और वे सब पत्थर बन जाएं। जब राजा ने यह समाचार सुनकर राजा ने अपने प्राण त्याग दिए तथा उनकी सभी रानियां भी सती हो गईं।

मगर राजकुमार सुजान की पत्नी चन्द्रावती ने हार नही मानी। वह सभी सैनिकों की पत्नियों को लेकर ऋषियों के पास गईं और उनसे क्षमा-याचना करने लगीं। ऋषियों ने कहा कि हमारा श्राप विफल नहीं हो सकता, पर उपाय के तौर पर भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती की आराधना करो। हो सकता है वो तुम सब पर प्रसन्न होकर तुम्हारी कोई मदद कर दें।

जिसके बाद सभी महिलाओं ने श्रद्धा के साथ महादेव और देवी पार्वती की आराधना की और उनसे अखंड सौभाग्यवती और पुत्रवती होने का आशीर्वाद प्राप्त किया। उसके बाद सभी ने चन्द्रावती के साथ मिलकर 72 सैनिकों को जीवित करने की प्रार्थना की। 

कहा जाता है भगवान महेश यानि भोलेनाथ ने चन्द्रावती पर व उनकी पत्नियों की पूजा से प्रसन्न होकर और सबको जीवनदान दे दिया। मान्यता है कि भोलेनाथ की आज्ञा से इस समाज के पूर्वजों ने क्षत्रिय कर्म छोड़कर वैश्य धर्म को अपना लिया। इसलिए इस समाज को 'माहेश्वरी समाज' के नाम से जाना जाता है।
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