Edited By Jyoti,Updated: 29 May, 2019 10:49 AM
महाराजा आनंद राव एक नेक राजा थे। वह अपनी प्रजा का बहुत ख्याल रखते थे। उनके राज्य में प्रत्येक व्यक्ति को उसके योग्य काम मिले, इसका भी वह ध्यान रखते थे।
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महाराजा आनंद राव एक नेक राजा थे। वह अपनी प्रजा का बहुत ख्याल रखते थे। उनके राज्य में प्रत्येक व्यक्ति को उसके योग्य काम मिले, इसका भी वह ध्यान रखते थे। जरूरतमंदों के लिए उन्होंने अपना राजकोष तक खोल दिया था। महामंत्री ने जब देखा कि राजा गरीबों और जरूरतमंदों को राजकोष का धन बांट रहे हैं तो उन्हें चिंता हुई।
महामंत्री को मालूम था कि राजा उनकी बात आसानी से नहीं मानेंगे इसलिए उन्होंने एक दिन राजकोष की दीवार पर लिख दिया, ‘‘आपातकाल के लिए राजकोष की सुरक्षा अपना कर्त्तव्य है। जब राजकोष में धन ही नहीं होगा तो आपातकाल की स्थिति से कैसे निपटा जाएगा?’’
दूसरे दिन महाराजा आनंद ने यह देखा, पढ़ा और वह समझ गए कि महामंत्री ने यह वाक्य लिखा है। उन्होंने उसी के नीचे एक वाक्य जोड़ दिया, ‘‘भाग्यशाली को आपातकाल या आपत्ति कहां घेरती है?’’
महामंत्री ने दीवार के नीचे लिखा यह वाक्य पढ़ लिया और आगे लिखा, ‘‘भाग्य का लेख कोई नहीं जानता?’’
तीसरे दिन महाराजा आनंद ने दीवार पर यह लिखा हुआ देखा। इसके आगे उन्होंने लिखा, ‘‘भाग्य का कोप मानव अपने पुरुषार्थ से शांत कर सकता है लेकिन आलसी व्यक्ति के लिए सौभाग्य भी दुर्भाग्य में बदल जाता है इसलिए सच्चे मन से पुरुषार्थ करते हुए चलो। इतना ही नहीं, पुरुषार्थी लोग प्रचंड पुरुषार्थ से अपने नए भाग्यविधान की रचना करने में समर्थ होते हैं।’’
महामंत्री ने जब इस वाक्य को लिखा हुआ देखा तो उन्हें समझ ही नहीं आया कि आगे क्या लिखा जाए। मन ही मन उन्होंने अपने पुरुषार्थी राजा को नमन किया।
वह स्वयं से बोले, ‘‘वाकई मैं भी अत्यंत भाग्यशाली हूं जो ऐसे महान राजा के साथ काम कर रहा हूं जो पुरुषार्थ और सतत कर्म से हर किसी को पराजित करने की क्षमता रखता है।’’