जब एक रसोइए ने बचाई गांधी जी की जान

Edited By Lata,Updated: 09 Mar, 2020 10:01 AM

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नील और अफीम जैसी नकदी फसलों से जहां एक तरफ ब्रिटिश उद्योग फल-फूल रहा था वहीं इसकी

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नील और अफीम जैसी नकदी फसलों से जहां एक तरफ ब्रिटिश उद्योग फल-फूल रहा था वहीं इसकी खेती से किसान बर्बाद हो रहे थे। मुनाफे ने ईस्ट इंडिया कंपनी को इतना अंधा बना दिया कि उसने बंगाल, ओडिशा और बिहार के किसानों की 25 प्रतिशत जमीन पर अफीम और इंडिगो की खेती अनिवार्य कर दी। एक तरफ अफीम को चोरी से चीन भेज कर व्यापारी अपनी जेबें भर रहे थे तो दूसरी तरफ यूरोप में नील बेचकर ईस्ट इंडिया कंपनी मालामाल हो रही थी। उन्हें इससे लेना-देना नहीं था कि वह नील खेतों को बंजर बनाकर किसानों को तबाह कर रही थी।
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दक्षिण अफ्रीका से वापस आने के बाद महात्मा गांधी को भी चंपारण के किसानों की इस बर्बादी की सूचना मिली और वह चंपारण चल पड़े। डब्ल्यू.एस. इरविन उस समय इंडिगो प्लांटर्स का चंपारण में मैनेजर था। महात्मा गांधी के बीच में आ जाने से इस खेती के बंद अथवा कम होने से उसे अपनी बर्बादी का खतरा था। समस्या के हल के लिए उसने महात्मा गांधी को अपने घर पर आमंत्रित किया। इरविन ने अपने रसोइए की मदद से दूध में जहर मिलाकर गांधी जी को अपने रास्ते से हटाने की योजना बनाई।
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राज को राज रखने के लिए रसोइए को लालच व धमकी दी लेकिन रसोइए ने महात्मा गांधी को दूध का गिलास पकड़ाते हुए कहा, ''सर, इस दूध में जहर मिलाया हुआ है। यह सूचना कई लोगों के बीच में देकर उसने महात्मा गांधी की जान तो बचा ली लेकिन अपनी बर्बादी नहीं बचा पाया। उसे जेल में बंद कर दिया गया और उसके घर को ढहा दिया गया। उसकी जमीन जब्त कर ली गई। परिवार उजड़ गया। यह रसोइया कोई और नहीं बल्कि मोतिहारी के बत्तख मियां अंसारी थे जिनके परिवार को आज भी वहां सम्मान से देखा जाता है। इतिहास में यह घटना पता नहीं क्यों जगह नहीं बना सकी लेकिन सरकारी दस्तावेजों में इसका जिक्र है।

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