प्रेरक प्रसंग: कबीरदास जी से जानिए कैसा होता है शिष्य और गुरु का रिश्ता

Edited By Updated: 06 Jul, 2021 02:14 PM

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काशी में संत कबीरदास की ख्याति चरम पर थी। फिर भी वह एक अत्यंत साधारण व्यक्ति की तरह बिना किसी तामझाम के रहते थे। एक दिन काफी दूर से एक व्यक्ति उनसे दीक्षा लेने के लिए आया।

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काशी में संत कबीरदास की ख्याति चरम पर थी। फिर भी वह एक अत्यंत साधारण व्यक्ति की तरह बिना किसी तामझाम के रहते थे। एक दिन काफी दूर से एक व्यक्ति उनसे दीक्षा लेने के लिए आया। शहर से दूर रहने के कारण उसने जगह-जगह कबीरदास का पता पूछा, किंतु किसी ने सही पता नहीं बताया। अंत: में निराश होकर वह एक ऐसी जगह पहुंचा जहां से कबीर बीच चौराहे पर बैठे दिखाई पड़ रहे थे। वहां पहुंचकर उसने किसी से कबीर के बारे में जानकारी ली। उस व्यक्ति ने कहा कि सामने चले जाओ। बीच चौराहे पर मुंह नीचा किए जो व्यक्ति बैठा है, वही कबीरदास हैं।

वह व्यक्ति चौराहे पर गया और कबीरदास के सिर को जोर से हिलाते हुए उसने पूछा, ‘‘क्या आप ही संत कबीर हैं?’’ 

कबीरदास कुछ नहीं बोले। वह दोबारा निकटवर्ती एक दुकानदार के पास पहुंचा और उससे पूछा कि क्या वाकई जो व्यक्ति चौराहे पर बैठा है, वही कबीरदास है? 

दुकानदार ने आश्वस्त करते हुए उससे कहा कि, ‘‘हां, वही है।’’

यह सुनकर वह व्यक्ति पश्चाताप की मुद्रा में भागता हुआ कबीरदास के पास आया और उनके पैरों में गिरकर बोला कि संत जी मुझसे गलती हो गई। मैंने आपके सिर को हिलाया, उससे आपके सिर में चोट तो नहीं आई? 

मुझे क्षमा कर दीजिए। मैं तो आपसे दीक्षा लेने आया था। सरल हृदय कबीर ने शांत भाव से उस साधक की ओर देखा और हंसते हुए कहा कि मुझे कोई परेशानी नहीं हुई। आदमी जो 10 पैसे की हांडी लेता है उसे भी कई बार ठोक बजाकर खरीदता है। तुम तो मुझे पूरे जीवन के लिए गुरु बनाने आए हो। इसके बाद कबीरदास ने उस व्यक्ति को अपना शिष्य बना लिया।

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