Edited By Sarita Thapa,Updated: 08 Dec, 2025 01:50 PM

वृंदावन के परम पूज्य संत, प्रेमानंद महाराज जी, अपने सरल और सारगर्भित प्रवचनों के माध्यम से लाखों भक्तों का मार्गदर्शन करते हैं। उन्होंने जीवन में शांति, भक्ति और इच्छाओं की पूर्ति के लिए कई बार सरल धार्मिक उपायों का उल्लेख किया है।
Premanand Maharaj: वृंदावन के परम पूज्य संत, प्रेमानंद महाराज जी, अपने सरल और सारगर्भित प्रवचनों के माध्यम से लाखों भक्तों का मार्गदर्शन करते हैं। उन्होंने जीवन में शांति, भक्ति और इच्छाओं की पूर्ति के लिए कई बार सरल धार्मिक उपायों का उल्लेख किया है। भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करने वाले सबसे शक्तिशाली व्रत के बारे में महाराज जी का मत अत्यंत स्पष्ट है। प्रेमानंद महाराज जी के अनुसार, भक्तों की हर इच्छा पूरी करने वाला और उन्हें भगवान की विशेष कृपा दिलाने वाला एक महत्वपूर्ण व्रत के बारे बताया है।
एकादशी व्रत: मनोकामना पूर्ति का सबसे बड़ा साधन
महाराज जी एकादशी व्रत को न केवल शारीरिक शुद्धि, बल्कि आंतरिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानते हैं। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है। प्रेमानंद महाराज जी राधा-कृष्ण की भक्ति पर ज़ोर देते हैं। उनका कहना है कि इस व्रत को नियम से करने से सीधे भगवान श्री हरि की कृपा प्राप्त होती है। जब साक्षात भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं, तो भक्तों की छोटी-बड़ी सभी मनोकामनाएं स्वतः ही पूरी हो जाती हैं।
एकादशी का व्रत केवल उपवास नहीं है, बल्कि यह इंद्रियों पर नियंत्रण रखने का अभ्यास है। अन्न का त्याग करने से मन शांत होता है, और यह मन ही प्रार्थना व ध्यान के माध्यम से भगवान से जुड़ पाता है। महाराज जी के अनुसार, यह व्रत एक प्रकार की छोटी तपस्या है, जो भक्त के चित्त को शुद्ध करती है। शुद्ध चित्त से की गई प्रार्थना भगवान तक शीघ्र पहुंचती है। प्रेमानंद महाराज जी कहते हैं कि यदि भक्त सांसारिक इच्छाओं के साथ-साथ मोक्ष और शुद्ध भक्ति की कामना से एकादशी व्रत करते हैं, तो भगवान उनकी यह इच्छा ज़रूर पूरी करते हैं। यह व्रत व्यक्ति को भोग से योग की ओर ले जाता है।

एकादशी व्रत करने का सही तरीका
महाराज जी के प्रवचनों के सार के अनुसार, एकादशी व्रत करते समय कुछ खास बातों का ध्यान रखना चाहिए।
अन्न का त्याग
सूर्योदय से लेकर अगले दिन द्वादशी को पारण करने तक अन्न का पूर्ण त्याग करना चाहिए।
जप और कीर्तन
व्रत के दिन अधिकतम समय भगवान के नाम का जप और कीर्तन करना चाहिए।
क्रोध और निंदा से बचें
व्रत के दौरान किसी की निंदा, चुगली या क्रोध करने से बचना चाहिए। मन को पूरी तरह शांत और सात्विक रखना ज़रूरी है।
सात्विक भोजन
यदि निर्जला व्रत संभव न हो, तो फल, दूध और सात्विक भोजन ही ग्रहण करें।
