Edited By Niyati Bhandari,Updated: 14 Nov, 2023 11:41 AM
पहले के लोग घड़ी नहीं पहनते थे, इसके बावजूद उनका जीवन समयबद्ध था। उनका सोना-जागना, खाना-पीना, सब कुछ समय पर होता था। इसके विपरीत
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जीवन की घड़ी
पहले के लोग घड़ी नहीं पहनते थे, इसके बावजूद उनका जीवन समयबद्ध था। उनका सोना-जागना, खाना-पीना, सब कुछ समय पर होता था। इसके विपरीत आज हर घर और हर हाथ में घड़ी है, बावजूद आज के लोगों की दिनचर्या एकदम अस्त-व्यस्त है। आज आदमी की कलाई में बंधी घड़ी महज शोभा की वस्तु बनकर रह गई है, जबकि यह आदमी को हर घड़ी चेताती है कि जिंदगी घड़ी दो घड़ी से ज्यादा नहीं है। अत: तू शांत-चित्त हो, घड़ी भर बैठ कर प्रभु का स्मरण कर ले, वरना हाथ की घड़ी हाथ में बंधी रह जाएगी और जीवन की घड़ी बंद हो जाएगी।
सत्यवादियों का अकाल
सत्य और ईमान का रास्ता स्वर्ग में जाकर खत्म होता है। दुर्भाग्य है कि आज सत्यवादियों और ईमानदारों का अकाल-सा पड़ गया है क्योंकि अब लोगों का विश्वास है कि ईमानदारी के दिन लद गए हैं। वे तर्क देते हैं कि देखो ! टेढ़े-मेढ़े वृक्षों को यहां कोई नहीं छेड़ता और सीधे-सपाट वृक्ष हमेशा ही काटे जाते हैं।
पहले दुख, फिर सुख
मेरा कहना है- सच्चाई के दिन कभी नहीं लदते। कीमती फर्नीचर हमेशा सीधी-सपाट लकड़ी का ही बनता है। टेढ़ी-मेढ़ी लकड़िया हमेशा चूल्हे में जलाने के काम आती हैं।
सर्दी के महीने में और कर्ज के चुकाने में शुरू-शुरू में थोड़ा दुख तो होता है, मगर बाद में बहुत आराम मिलता है। जहर खाकर मरने में, विषय भोग करने में और शराब का प्याला भरने में शुरू-शुरू में थोड़ा सुख तो होता है, मगर बाद में बड़ी सजा भोगनी पड़ती है।
तपस्या और वेश्या दोनों भी ऐसे ही कर्म हैं, फर्क सिर्फ इतना है-तपस्या का आदि कटु लेकिन अंत स्वर्ग होता है, जबकि वेश्या का आदि मधुर लेकिन अंत नरक होता है।
बच्चों की तुलना मत कीजिए
अपने बच्चों की तुलना औरों के बच्चों से मत करिए और न ही उन्हें औरों के बच्चों जैसा बनने के लिए कहिए। इससे उन्हें चिढ़ होती है और वे तनावग्रस्त हो जाते हैं। यदि आप अपने बच्चे की तुलना उसके दोस्त से करेंगे तो कल्पना कीजिए क्या होगा, यदि वह भी आपकी तुलना अपने दोस्त के पिता से करने लगे।
बच्चों को तुलना की तुला में तौलना उनकी नैसर्गिक प्रतिभा की हत्या करना है। बच्चों से सिर्फ इतना ही कहें- बेटे ! हट के किया-हट के दिया दुनिया हमेशा याद रखती है।