Edited By Niyati Bhandari,Updated: 22 Dec, 2025 10:29 AM

बच्चों के संस्कार
अब भगवान के मंदिरों से भी ज्यादा, बच्चों का नव निर्माण करने वाले मंदिरों की जरूरत है। अगर बच्चे संस्कारित नहीं हुए तो भगवान के मंदिरों में जाएगा कौन?
बच्चों के संस्कार
अब भगवान के मंदिरों से भी ज्यादा, बच्चों का नव निर्माण करने वाले मंदिरों की जरूरत है। अगर बच्चे संस्कारित नहीं हुए तो भगवान के मंदिरों में जाएगा कौन? पहले कहा जाता था कि अमुक बच्चा अपने बाप पर गया, अमुक बच्चा अपनी मां पर गया है। यदि बच्चों को संस्कारित नहीं किया गया तो आने वाले समय में कहा जाएगा कि अमुक स्टार टी.वी. पर और ये निखट्टू फैशन टी.वी. पर।

धरती हंसती थी
लोग कहते हैं कि रावण और सिकंदर सरीखे आततायी जब इस धरती पर चलते थे तो धरती कांपती थी लेकिन मैं कहता हूं कि वह कांपती नहीं अपितु हंसती थी और कहती थी, बच्चू! मेरे ही अंश के विस्तार होकर मुझे ही अकड़ दिखा रहे हो, ठीक है। थोड़ी देर और उछल-कूद लो। आना तो मेरी ही गोद में है। दरअसल, धरती का कोई पति नहीं हुआ। वह तो सदा कुंवारी है। तभी तो इस देश के एक छोर का नाम ‘कन्याकुमारी’ है।

बुराई का अंत
समाज में बुराइयां बढ़ रही हैं। क्यों? क्योंकि अच्छे लोग जिम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं। अपनी प्रतिष्ठा और नाम को बनाए रखने के लिए अच्छे लोग बुरे लोगों के लिए कुर्सी खाली कर रहे हैं। बुराई का मुकाबला नैतिक साहस के साथ करें। किसी बड़ी क्रांति के लिए शारीरिक बलिष्ठता की नहीं, संकल्प शक्ति की जरूरत है। महात्मा गांधी इसका उदाहरण हैं। बुराई कितनी भी सशक्त हो, उसका अंत संभव है।

जिंदगी के चार दिन
जिंदगी के केवल चार दिन हैं और ये चार दिन भी दो आरजू और दो इंतजार में कट जाते हैं। इससे आगे बढ़ें तो इंसान की सिर्फ दो दिन की कुल जिंदगी है और उन दो दिनों में एक दिन मौत का भी होता है। अब बचा केवल एक दिन और पता नहीं, इस एक दिन की जिंदगी पर आदमी इतना क्यों अकड़ता है? जिंदगी की हैसियत एक मुट्ठी राख से ज्यादा कुछ भी नहीं है। जीवन ‘राख’ बने, इससे पहले जो ‘खरा’ है, उसे पहचान लेना।