Edited By Niyati Bhandari,Updated: 15 May, 2018 03:25 PM
स्वामी विवेकानंद को एक राजा ने अपने भवन में बुलाया और बोला, ‘‘तुम हिंदू लोग मूर्ति की पूजा करते हो। मिट्टी, पीतल, पत्थर की मूर्ति की। पर मैं ये सब नहीं मानता। ये तो केवल एक पदार्थ है।’’
स्वामी विवेकानंद को एक राजा ने अपने भवन में बुलाया और बोला, ‘‘तुम हिंदू लोग मूर्ति की पूजा करते हो। मिट्टी, पीतल, पत्थर की मूर्ति की। पर मैं ये सब नहीं मानता। ये तो केवल एक पदार्थ है।’’
उस राजा के सिंहासन के पीछे किसी आदमी की तस्वीर लगी थी। विवेकानंद जी की नज़र उस तस्वीर पर पड़ी। विवेकानंद जी ने राजा से पूछा, ‘‘राजा जी, ये तस्वीर किसकी है?’’
राजा बोला, ‘‘मेरे पिता जी की।’’
स्वामी जी बोले, ‘‘उस तस्वीर को अपने हाथ में लीजिए।’’
राजा तस्वीर को हाथ में ले लेता है।
स्वामी जी राजा से, ‘‘अब आप उस तस्वीर पर थूकिए।’’
राजा, ‘‘ये आप क्या बोल रहे हैं स्वामी जी?’’
स्वामी जी, ‘‘मैंने कहा उस तस्वीर पर थूकिए।’’
राजा (क्रोध से), ‘‘स्वामी जी, आप होश में तो हैं न? मैं यह काम नहीं कर सकता।’’
स्वामी जी बोले, ‘‘क्यों? ये तस्वीर तो केवल एक कागज़ का टुकड़ा है और जिस पर कुछ रंग लगा है। इसमें न तो जान है, न आवाज़, न तो ये सुन सकता है, और न ही कुछ बोल सकता है। इसमें न ही हड्डी है और न प्राण।
फिर भी आप इस पर कभी थूक नहीं सकते क्योंकि आप इसमें अपने पिता का स्वरूप देखते हो और आप इस तस्वीर का अनादर करना अपने पिता का अनादर करना ही समझते हो। वैसे ही, हम हिंदू भी उन पत्थर, मिट्टी या धातु की पूजा भगवान का स्वरूप मान कर करते हैं। भगवान तो कण-कण में हैं, पर एक आधार मानने के लिए और मन को एकाग्र करने के लिए हम मूर्ति पूजा करते हैं।’
तब राजा ने स्वामी जी के चरणों में गिर कर क्षमा मांगी।