‘खुला’ को मान्यता देने के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 03 Apr, 2024 08:10 AM

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नई दिल्ली (एजैंसी): मुस्लिम महिलाओं को खुला (मुस्लिम व्यक्तिगत कानून में तलाक का एक रूप) का सहारा लेने के बिना शर्त अधिकार को मान्यता देने वाले

 

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नई दिल्ली (एजैंसी): मुस्लिम महिलाओं को खुला (मुस्लिम व्यक्तिगत कानून में तलाक का एक रूप) का सहारा लेने के बिना शर्त अधिकार को मान्यता देने वाले केरल हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने एक अप्रैल को नोटिस जारी किया। जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस संजय कुमार की खंडपीठ वैवाहिक अपील में पारित आदेश के साथ-साथ वैवाहिक अपील में आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका खारिज करने की चुनौती पर सुनवाई कर रही थी। केरल मुस्लिम जमात और व्यक्ति ने हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अलग-अलग विशेष अनुमति याचिकाएं दायर कीं।
 
वैवाहिक अपील में हाई कोर्ट ने मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम के तहत मुस्लिम पत्नी को दी गई तलाक की डिक्री को चुनौती दी। यह मानते हुए कि विवाह समाप्त करने का अधिकार मुस्लिम पत्नी का पूर्ण अधिकार है, जो उसे पवित्र कुरान द्वारा प्रदत्त है और यह उसके पति की स्वीकृति या इच्छा के अधीन नहीं है, न्यायालय ने केसी मोयिन बनाम नफीसा मामले में 49 साल पुराने फैसले को खारिज कर दिया और प्रभावी रूप से मुस्लिम महिलाओं को विवाह विच्छेद के न्यायेतर तरीकों का सहारा लेने से रोक दिया। हाई कोर्ट ने आगे कहा कि शरीयत अधिनियम की धारा 2 में संदर्भित न्यायेतर तलाक के सभी रूप फस्ख को छोड़कर मुस्लिम महिलाओं के लिए उपलब्ध है। खुला को नियंत्रित करने वाले किसी भी धर्मनिरपेक्ष कानून की अनुपस्थिति में न्यायालय ने कहा कि खुला वैध होगा, यदि निम्नलिखित शर्तें पूरी होती हैं।

इनमें पत्नी द्वारा विवाह को अस्वीकार करने या समाप्त करने की घोषणा, वैवाहिक बंधन के दौरान उसे प्राप्त मेहर या कोई अन्य भौतिक लाभ वापस करने का प्रस्ताव व खुला की घोषणा से पहले सुलह का प्रभावी प्रयास किया जाना शामिल है। हाई कोर्ट ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति खुला या तलाक की प्रभावशीलता पर विरोध करना चाहता है तो ऐसे पीड़ित व्यक्ति के लिए कानून के तहत ज्ञात उचित तरीके से इसका विरोध करना खुला है। वैवाहिक अपील में इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की गई। इसमें कहा गया कि यदि कोई मुस्लिम पत्नी अपने पति के साथ अपनी शादी को खत्म करना चाहती है तो उसे अपने पति से तलाक की मांग करनी होगी। उसके इनकार करने पर काजी या अदालत का रुख करना होगा। दूसरे शब्दों में, याचिकाकर्ता ने माना कि मुस्लिम महिला को अपनी इच्छा से तलाक मांगने का अधिकार है, लेकिन तर्क दिया कि उसे खुला उच्चारण करने का कोई पूर्ण अधिकार नहीं है।
 

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