Edited By ,Updated: 17 Oct, 2015 09:26 AM
भगवती दुर्गा के पांचवे स्वरुप को स्कन्दमाता के रूप में जाना जाता है । शास्त्रों के अनुसार नवरात्र में माता दुर्गा के पांचवे स्वरूप में मां स्कन्दमाता की आराधना की....
या देवी सर्वभूतेषु स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
भगवती दुर्गा के पांचवे स्वरुप को स्कन्दमाता के रूप में जाना जाता है । शास्त्रों के अनुसार नवरात्र में माता दुर्गा के पांचवे स्वरूप में मां स्कन्दमाता की आराधना की जाती है। इनकी उपासना करने से भक्त की सर्व इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं। भक्त को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
स्कन्दमाता शब्द का अर्थ : स्कन्द का अर्थ है कुमार कार्तिकेय अर्थात माता पार्वती और भगवान शिव के जेष्ठ पुत्र कार्तिकय। जो भगवान स्कन्द कुमार की माता है वही है मां स्कन्दमाता। शास्त्र अनुसार देवी स्कन्दमाता ने अपनी दाई तरफ की ऊपर वाली भुजा से बाल स्वरुप में भगवान कार्तिकेय को गोद में लिया हुआ है।
स्कन्दमाता स्वरुपिणी देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाहिनी तरफ की ऊपर वाली भुजा से भगवान स्कन्द को गोद में पकड़े हुए हैं। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है, उसमें कमल-पुष्प लिए हुए हैं। कमल के आसन पर विराजमान होने के कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है। शेर पर सवार होकर माता दुर्गा अपने पांचवें स्वरुप स्कन्दमाता के रुप में भक्तजनों के कल्याण के लिए सदैव तत्पर रहती हैं। इन्हें कल्याणकारी शक्ति की अधिष्ठात्री कहा जाता है। देवी स्कन्दमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं तथा इनकी मनोहर छवि पूरे ब्रह्मांड में प्रकाशमान होती है।