Edited By Lata,Updated: 30 Jan, 2020 11:00 AM
बात उस समय की है, जब भारत आजाद नहीं हुआ था। एक बालक के अंदर देशभक्ति कूट-कूट कर भरी थी।
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बात उस समय की है, जब भारत आजाद नहीं हुआ था। एक बालक के अंदर देशभक्ति कूट-कूट कर भरी थी। वह उन लोगों की बराबर मदद करता था, जो आजादी के दीवाने थे और गुलामी की जंजीरें तोडऩे के लिए जी-जान से जुटे थे। उसकी मां ने अपने बेटे को देशभक्ति के रंग में रंगे देखा तो उसे बड़ी खुशी हुई, पर मां के मन में यह डर भी था कि कहीं वह पुलिस के हाथों पकड़े जाने पर घबरा न जाए और उन लोगों के नाम-पते न बता दे, जो छिपकर काम कर रहे थे।
एक दिन मां ने लड़के को अपना डर बताया तो उसने बड़ी दृढ़ता से कहा, ''मां, तुम बेफिक्र रहो। मैं घबराऊंगा नहीं। बालक फिर भी बालक था। मां को उसकी बात पर विश्वास नहीं हुआ। बोली, ''मैं तेरी देशभक्ति की परीक्षा लूंगी। इसके बाद मां ने एक दीया जलाया और कहा, ''इस पर अपनी हथेली रख दे। लड़का एक क्षण के लिए भी नहीं झिझका। उसने फौरन अपनी हथेली बत्ती की लौ के ऊपर कर दी। हथेली जलती रही, पर उस लड़के के मुंह से उफ तक नहीं निकली। वह लगातार मुस्कुराता रहा। बालक का हौसला देखकर मां का जी भर आया। उसने उसे सीने से लगा लिया और दिल खोलकर आशीर्वाद दिया।
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अब वह लड़का अपने काम में दोगुने उत्साह से जुट गया। आगे चलकर यही लड़का भारत का महान क्रांतिकारी अशफाक उल्ला खां बना। पकड़े जाने के बाद काकोरी षड्यंत्र केस में अशफाक को फांसी की सजा मिली मगर यह सजा भी उनके बुलंद हौसलों को कम नहीं कर सकी। वह हंसते हुए गाते थे, ''हे मातृभूमि, तेरी सेवा किया करूंगा, फांसी मिले मुझे या हो उम्रकैद, बेड़ी बजा-बजाकर तेरा भजन किया करूंगा।