प्रदोष व्रत: उद्यापन करने से पहले इन बातों का पता होना आपके लिए है ज़रूरी

Edited By Jyoti,Updated: 03 Jun, 2020 02:57 PM

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प्रत्येक मास की त्रयोदशी तिथि प्रदोष व्रत मनाया जाता है। ज्योतिष शास्त्र में दिन के अनुसार नाम दिया गया है।

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प्रत्येक मास की त्रयोदशी तिथि प्रदोष व्रत मनाया जाता है। ज्योतिष शास्त्र में दिन के अनुसार नाम दिया गया है। मान्यताओं की मानें तो यूं तो भगवान शंकर की आराधना करने के लिए कोई समय निर्धारित नहीं मगर क्योंकि प्रदोष का अर्थात संध्या काल से है। इसलिए कहा जाता है इस दिन जो भी जातक प्रदोष काल में व्रत की उद्यापन करता है तथा सही विधि विधान से देवों के देव महादेव को पूजा-अर्चना करता। उसकी तमाम तरह की इच्छाएं पूरी होती हैं। मगर इनमें से कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जिन्हें इस बारे में नहीं पता होगा कि प्रदोष व्रत का उद्यापन में किन चीज़ों का ध्यान रखना चाहिए। ऐसी धार्मिक मान्यताएं हैं कि संध्या कालम में महादेव कैलाश पर्वत पर नृत्य करते हैंं, और सभी देवता उनका मिलकर गुणगन करते हैं। तो चलिए जानते हैं प्रदोष व्रत के उद्यापन की विधि-विधान।
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बता दें जो भी जातक त्रयोदशी तिथि के दिन पड़ने वाले इस व्रत को करता है उसे यां तो 11 बार ये व्रत करना चाहिए या 26 त्रयोदशियों तक रखना चाहिए। इसके बाद जब इन व्रतों का उद्यापन करें तो निम्न बातों का ध्यान रखें। 

सबसे पहले इस बात को ध्यान में रखें कि व्रत का उद्यापन त्रयोदशी तिथि पर ही करना चाहिए।

उद्यापन से एक दिन पूर्व सर्व प्रथम श्री गणेश का पूजन किया जाना चाहिए, संभव हो तो पूर्व रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण करें, वरना कुछ देर के लिए गायन ज़रूर करें। 
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प्रात: जल्दी उठकर मंडप बनाकर, मंडप को वस्त्रों और रंगोली से सजाकर तैयार करें और ‘ॐ उमा सहित शिवाय नम:’ मंत्र का एक माला यानि 108 बार जाप करते हुए हवन करें। 

ध्यान रहे हवन में आहूति के लिए खीर का प्रयोग करना चाहिए। 

हवन समाप्त होने पर भगवान भोलेनाथ की आरती करके शांति पाठ करें।
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अंत: में दो ब्रह्माणों को भोजन करवाकर अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देकर आशीर्वाद प्राप्त करें।

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