पितृ पक्ष 2019: इन समय में करना चाहिए श्राद्ध कर्म वरना...

Edited By Jyoti,Updated: 18 Sep, 2019 11:57 AM

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पितृ पक्ष आरंभ हुए 6 दिन हो चुके हैं। जिसकी शूरुआत के साथ ही देश भर की पावन नदियों व सरोवरों पर लोगों द्वारा अपने पूर्वजों आदि का पिंडदान व पितृ तर्पण करने का सिलसिला भी शुरू हो गया।

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पितृ पक्ष आरंभ हुए 6 दिन हो चुके हैं। जिसकी शूरुआत के साथ ही देश भर की पावन नदियों व सरोवरों पर लोगों द्वारा अपने पूर्वजों आदि का पिंडदान व पितृ तर्पण करने का सिलसिला भी शुरू हो गया। इसके अलावा इस दौरान पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म करना भी आवश्यक के साथ-साथ लाभदायक भी माना जाता है। इसलिए हिंदू धर्म से संबंध रखने वाले अपने बड़े-बुजुर्गों का श्राद्ध करते हैं ताकि उन पर हमेशा अपने पूर्वजों का आशीर्वाद बना रहे।
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अब श्राद्ध कर्म करना ज़रूरी है ये तो बहुत से लोग जानते हैं लेकिन बहुत कम लोग होंगे जिन्हें ये पता होगा कि श्राद्ध करने के लिए 2 ही समय सबसे महत्वपूर्ण हैं। यूं तो धार्मिक शास्त्रों के अनुसार साल में आने वाले किसी भी अमावस्या को पितरों के लिए श्राद्ध तर्पण आदि कर्म किए जा सकते हैं। मगर पितृ पक्ष में किए ये कर्म अधिक फलदायी होते हैं। तो अगर आप भी चाहते हैं कि आपके जीवन में किसी भी तरह की कमी न हो और न ही आपको किसी तरह की परेशानी से जूझना पढ़े तो पितृ पक्ष में आगे बताए जाने वाले 2 समय पर श्राद्ध कर्म ज़रूर करें।
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श्राद्ध के लिए दिन में ये हैं सबसे श्रेष्ठ समय-
मान्यताओं के अनुसार दोपहर का कुतुप और रौहिण मुहूर्त श्राद्ध के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। कुतप काल में किए गए दान का अक्षय फल मिलता है।
कुतुप मुहूर्त दोपहर 11 बजकर 36 मिनट से 12 बजकर 24 मिनट तक।
रौहिण मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 24 मिनट से दिन में 1 बजकर 15 मिनट तक।

जो व्यक्ति विधि-पूर्वक श्राद्ध क्रिया न कर पाए उसे कम से कम श्राद्ध पक्ष के 15 दिनों में, कम से कम जल से तर्पण ज़रूर करना चाहिए। क्योंकि ऐसा कहा जाता है चंद्रलोक के ऊपर और सूर्यलोक के पास पितृलोक है और पितृ लोक में पानी की कमी होती है। इसलिए जब हमारे द्वारा जल तर्पण किया जाता तो उससे दिवंगत पितरों को तृप्ति मिलती है।
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किसे करना चाहिए श्राद्ध कर्म-
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए और एक से ज्य़ादा पुत्र होने पर बड़े पुत्र को ही श्राद्ध करना चाहिए। जिसका पुत्र ने हो उसकी पत्नी को श्राद्ध करना चाहिए। पत्नी के न होने पर सगा भाई भी श्राद्ध कर्म कर सकता है।
 

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