गर्भवती महिलाएं जरूर जानें प्रेमानंद जी महाराज की ये 4 अमृतवाणी, संतान सुख होगा मंगलमय

Edited By Updated: 29 May, 2025 07:00 AM

premanand ji maharaj tips for pregnancy

गर्भावस्था न केवल शारीरिक परिवर्तन का समय होता है, बल्कि यह एक गहरा आध्यात्मिक और भावनात्मक अनुभव भी होता है। एक महिला जब मां बनने जा रही होती है, तो उसके मन में कई प्रकार के विचार, भावनाएं और डर पैदा होते हैं। ऐसे समय में सही मार्गदर्शन और...

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Premanand Ji Maharaj Tips for Pregnancy: गर्भावस्था न केवल शारीरिक परिवर्तन का समय होता है, बल्कि यह एक गहरा आध्यात्मिक और भावनात्मक अनुभव भी होता है। एक महिला जब मां बनने जा रही होती है, तो उसके मन में कई प्रकार के विचार, भावनाएं और डर पैदा होते हैं। ऐसे समय में सही मार्गदर्शन और सकारात्मक विचार बहुत जरूरी होते हैं। प्रेमानंद जी महाराज, एक प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु हैं, जिनकी वाणी जीवन के हर चरण में मार्गदर्शन करती है। उन्होंने गर्भवती महिलाओं के लिए भी कुछ महत्वपूर्ण और सारगर्भित बातें बताई हैं, जो न केवल गर्भस्थ शिशु के विकास में सहायक होती हैं, बल्कि मां के मन, शरीर और आत्मा को भी शांति देती हैं।

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गर्भ के समय मन को शांत और प्रसन्न रखना सबसे बड़ा धर्म है
प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि गर्भवती महिला का मन जैसा होगा, वैसा ही संस्कार गर्भस्थ शिशु में जाएगा। इसलिए गर्भ के दौरान मन को शांत, सकारात्मक और प्रसन्न रखना सबसे बड़ा कर्तव्य है।

गर्भवती महिला को चाहिए कि वह नकारात्मक समाचारों और विचारों से दूरी बनाए रखें।  नियमित रूप से भगवान का नाम जप करें और अच्छे संगीत, भजन, कीर्तन और शास्त्रों का श्रवण करें। इससे न केवल शिशु का मानसिक विकास बेहतर होता है बल्कि मां की भावनात्मक स्थिति भी स्थिर और संतुलित रहती है।

गर्भावस्था में भोजन ही नहीं, विचार भी शुद्ध और सात्विक होने चाहिए
प्रेमानंद जी महाराज ने बार-बार यह कहा है कि जैसा खाएंगे, वैसा सोचेंगे और जैसा सोचेंगे, वैसा बनेंगे। इसलिए गर्भवती महिला का आहार सिर्फ शरीर को पोषण देने वाला नहीं, बल्कि मन और आत्मा को भी शुद्ध करने वाला होना चाहिए।

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गर्भ के समय भगवान का स्मरण करना शिशु को दिव्य बनाता है
प्रेमानंद जी महाराज का मानना है कि यदि गर्भवती महिला प्रतिदिन भगवान का ध्यान, भजन, मंत्र-जप या गीता-पाठ करती है, तो उसका शिशु आध्यात्मिक रूप से अधिक जागरूक और संस्कारी बनता है। वे कहते हैं जैसे अभिमन्यु ने मां के गर्भ में चक्रव्यूह का ज्ञान पाया था, वैसे ही आज भी गर्भस्थ शिशु सुनता, समझता और ग्रहण करता है। इसलिए गर्भकाल को साधना काल मानते हुए, महिला को ईश्वर के निकट रहने की प्रेरणा दी जाती है। इससे जीवन भर शिशु को नैतिक और आध्यात्मिक बल प्राप्त होता है।

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