Pushkar Rajasthan: सृष्टि निर्माता का धाम है पुष्कर, बहुत से लोग हैं इस सच्चाई से अनजान

Edited By Updated: 01 Oct, 2025 02:01 PM

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Pushkar Tourist Places: राजस्थान का अतीत गौरवशाली तो है ही, यहां की प्राकृतिक सुंदरता भी किसी स्वर्ग से कम नहीं है। चाहे फिर वह थार का मरुस्थल, जयपुर की ऐतिहासिक इमारतें, उदयपुर की झीलें या फिर राजपुताना महल हो लेकिन इन सबके बीच एक ऐसा स्थान भी है,...

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Pushkar Tourist Places: राजस्थान का अतीत गौरवशाली तो है ही, यहां की प्राकृतिक सुंदरता भी किसी स्वर्ग से कम नहीं है। चाहे फिर वह थार का मरुस्थल, जयपुर की ऐतिहासिक इमारतें, उदयपुर की झीलें या फिर राजपुताना महल हो लेकिन इन सबके बीच एक ऐसा स्थान भी है, जिसे राजस्थान का स्वर्ग कहा जाता है। अरावली की पहाड़ियों में छिपा यह स्वर्ग है पुष्कर। धर्मग्रंथों में भी पुष्कर का महत्व बताया गया है। सारे तीर्थ बार-बार, पुष्कर तीर्थ एक बार। पुष्कर का अभिप्राय ऐसा तालाब या सरोवर से है, जिसका निर्माण फूल से हुआ हो। सरोवर की उत्पत्ति के बारे में किंवदंती है कि ब्रह्माजी के हाथ से यहीं पर कमल पुष्प गिरने से जल प्रस्फुटित हुआ, जिससे इस सरोवर का उद्भव हुआ।

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सरोवर के चारों ओर 52 घाट व अनेक मंदिर बने हैं। इनमें गऊघाट, वराहघाट, ब्रह्मघाट, जयपुरघाट प्रमुख हैं। सरोवर के बीचों-बीच छतरी बनी है। एक दूसरी मान्यता के अनुसार, देवताओं-असुरों द्वारा किए जा रहे समुद्र मंथन के दौरान निकले अमृत पात्र को जब एक राक्षस छीनकर भाग रहा था, तब उसमें से कुछ बूंदें इसी सरोवर में गिर गईं, तभी से यहां के पवित्र सरोवर का पानी अमृत के समान हो गया।

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पुष्कर को स्वर्ग नगरी मानने के पीछे की ऐसी धार्मिक मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल पक्ष के अंतिम पांच दिनों में पुष्कर झील में स्नान के बाद पूजा करने से मोक्ष प्राप्त होता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, माता सरस्वती ने गुस्से में आकर एक बार ब्रह्माजी को श्राप दिया कि जिस संसार की रचना उन्होंने की है, वहां के लोग ही उन्हें भुला देंगे और उनकी पूजा धरती पर कहीं भी नहीं होगी। इसके बाद सभी लोकों में हाहाकार मच गया, फिर देवतागण सरस्वती जी के पास गए और उनसे श्राप वापस लेने का आग्रह किया।

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माता सरस्वती का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने कहा कि अनंतकाल तक पुष्कर में सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा की पूजा होती रहेगी। यही वजह है कि देश में ब्रह्मा का केवल एक ही मंदिर है, जो पुष्कर में विराजमान है। पुष्कर प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक वातावरण से आच्छादित है।

चारों धामों की यात्रा करने के बाद पुष्कर झील में डुबकी लगाना अत्यंत पवित्र माना जाता है। यूं तो पुष्कर की छोटी-सी नगरी में 500 से अधिक मंदिर हैं, लेकिन प्रमुख मंदिरों में ब्रह्माजी का 14वीं सदी में बनाया गया मंदिर प्रमुख है।

संगमरमर की बनी सीढ़ियों से ऊपर मंदिर के गर्भगृह के ठीक सामने चांदी का कछुआ बना हुआ है। इसके अतिरिक्त दूसरा प्रमुख मंदिर रंगजी का मंदिर है। रंगजी को विष्णुजी का रूप माना जाता है। इस मंदिर का सौंदर्य द्रविड़, राजपूत व मुगल शैली के अद्भुत समागम के कारण है। एक और प्रसिद्ध मंदिर सावित्री देवी का है। यह ब्रह्मा मंदिर के पीछे एक पहाड़ी पर स्थित है।

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पुष्कर में एक प्रसिद्ध मंदिर विद्या की देवी सरस्वती का भी है। इनके अलावा यहां बालाजी मंदिर, मन मंदिर, वराह मंदिर, आत्मेश्वर महादेव मंदिर आदि भी श्रद्धा के प्रमुख केंद्रों में से हैं। पुष्कर में हर साल कार्तिक मेला लगता है, जो विश्वविख्यात है।

ऐसा कहा जाता है कि सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा की यज्ञस्थली और ऋषियों की तपस्यास्थली तीर्थगुरु पुष्कर नाग पहाड़ के बीच बसा हुआ है। पुष्कर में अगस्तय, वामदेव, जमदाग्नि, भर्तृहरि ऋषियों के तपस्या स्थल के रूप में उनकी गुफाएं आज भी नाग पहाड़ में हैं। कहते हैं कि ब्रह्माजी ने पुष्कर में कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णमासी तक यज्ञ किया था।

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शंकराचार्य ने संवत 713 में ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना की थी। तीर्थराज पुष्कर को सब तीर्थों का गुरु कहा जाता है। इसे धर्मशास्त्रों में पांच तीर्थों में सर्वाधिक पवित्र माना गया है। पुष्कर, कुरुक्षेत्र, गया, हरिद्वार और प्रयाग को पंचतीर्थ कहा गया है। अर्धचंद्राकार आकृति में बनी पवित्र एवं पौराणिक पुष्कर झील धार्मिक और आध्यात्मिक आकर्षण का केंद्र है।

महाभारत के वन पर्व के अनुसार, श्रीकृष्ण ने पुष्कर में दीर्घकाल तक तपस्या की थी। सुभद्रा के अपहरण के बाद अर्जुन ने पुष्कर में विश्राम किया था। श्रीराम ने भी अपने पिता दशरथ का श्राद्ध पुष्कर में किया था।  

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