Ramcharitmanas: सात शब्दों वाला तारक मंत्र देता है श्री फल

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 05 Jul, 2021 03:52 PM

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एक सार्थक नाम के रूप में हमारे ऋषि-मुनियों ने राम नाम को पहचाना है। उन्होंने इस पूज्य नाम की परख की और नामों के आगे लगाने का चलन प्रारंभ किया। प्रत्येक हिंदू परिवार में देखा जा सकता है।

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Ramcharitmanas: एक सार्थक नाम के रूप में हमारे ऋषि-मुनियों ने राम नाम को पहचाना है। उन्होंने इस पूज्य नाम की परख की और नामों के आगे लगाने का चलन प्रारंभ किया। प्रत्येक हिंदू परिवार में देखा जा सकता है। राम नाम को जीवन का महामंत्र माना गया है। राम सर्वमय व सर्वमुक्त है। राम सबकी चेतना का सजीव नाम है। हमारा सबसे बड़ा दुर्भाग्य आज यही है कि हम राम नाम का सहारा नहीं ले रहे हैं। हमने जितना भी अधिक राम नाम को खोया है, हमारे जीवन में उतनी ही विषमता बढ़ी है। उतना ही अधिक संत्रास हमें मिला है।

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श्री राम, जय राम, जय जय राम। श्री राम जय राम जय जय राम

यह सात शब्दों वाला तारक मंत्र है। साधारण से दिखने वाले इस मंत्र में जो शक्ति छिपी हुई है, वह अनुभव का विषय है। इसे कोई भी, कहीं भी, कभी भी कर सकता है। फल बराबर मिलता है।

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‘अस समर्थ रघुनायकहिं, भजत जीव ते धन्य’ प्रत्येक राम भक्त के लिए राम उसके हृदय में वास कर सुख सौभाग्य और सांत्वना देने वाले हैं। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिख दिया है कि प्रभु के जितने भी नाम प्रचलित हैं, उन सबमें सर्वाधिक श्री फल देने वाला नाम राम का ही है। यह नाम सबसे सरल, सुरक्षित तथा निश्चित रूप से लक्ष्य की प्राप्ति करवाने वाला है। मंत्र जप के लिए आयु, स्थान, परिस्थिति, काल, जात-पात आदि किसी भी बाहरी आडंबर का बंधन नहीं है। किसी क्षण, किसी भी स्थान पर इसे जप सकते हैं। 

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जब मन सहज रूप में लगे, तब ही मंत्र जप कर लें। तारक मंत्र ‘श्री’ से प्रारंभ होता है। ‘श्री’ को सीता अथवा शक्ति का प्रतीक माना गया है। राम शब्द ‘रा’ अर्थात र-कार और ‘म’ मकार से मिल कर बना है। ‘रा’ अग्रि स्वरूप है। यह हमारे दुष्कर्मों का दाह करता है। ‘म’ जल तत्व का द्योतक है। जल आत्मा की जीवात्मा पर विजय का कारक है।

इस प्रकार पूरे तारक मंत्र ‘श्री राम, जय राम, जय जय राम’ का सार निकलता है- शक्ति से परमात्मा पर विजया योग शा में कहा गया है कि श्वास और निश्वास में निरंतर र-कार ‘रा’ और म-कार  ‘म’ का उच्चारण करते रहने से दोनों नाड़ियों में प्रवाहित ऊर्जा में सामंजस्य बना रहता है। अध्यात्म में यह माना गया है कि जब व्यक्ति ‘रा’ शब्द का उच्चारण करता है तो इसके साथ-साथ उसके आंतरिक पाप बाहर फैंक दिए जाते हैं। इससे अंत:करण निष्पाप हो जाता है।

 

 

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