Ramadan 2019: हर मुस्लिम के लिए ज़कात देना क्यों है ज़रूरी ?

Edited By Updated: 08 May, 2019 06:07 PM

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जैसे कि आप सब जानते ही हैं कि 06 मई 2019 से मुस्लिम धर्म सबसे पाक महीना शुर हो चुका है। इसे इबादतों का पाक महीना कहा जाता है। मान्यता है कि इस पाक महीने में अल्लाह जन्नत के द्वार खोल देते हैं।

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जैसे कि आप सब जानते ही हैं कि 06 मई 2019 से मुस्लिम धर्म सबसे पाक महीना शुर हो चुका है। इसे इबादतों का पाक महीना कहा जाता है। मान्यता है कि इस पाक महीने में अल्लाह जन्नत के द्वार खोल देते हैं। इस पाक महीने से वैसे तो कई मान्यताएं जुड़ी हुई है जिसमें से एक है ज़कात की। इसके अनुसार रमज़ान के पाक महीने में हर मुसलमान अपने साल भर की कमाई की ज़कात निकालते हैं। इस्लामिक ग्रन्थों की मुताबिक अल्लाह ने फरमाया है ज़कात इंसान की कमाई में गरीबों और मसकीनों का हक है। ज़कात का मतलब दान होता है। इसलिए रमज़ान के महीने में हर मुसलमान के लिए ज़कात देना ज़रूरी होता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि आख़िर ये जकात क्या होता है और इसे हर मुसलमान के लिए अनिवार्य क्यों माना गया है, साथ ही इसे किसे देना चाहिए। अगर आप इन सभी बातों से अंजान है तो चलिए हम आपको बताते हैं।  
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ज़कात अल्लाह के लिए एक मलकायिक हिस्सा होता है जिसे शरीयत ने तय किया है। उसका मुसलमान फकीर को मालिक बना देना शरीयत में ज़कात कहलाता है। ज़कात निकालने के बाद सबसे बड़ा मसला यह आता है कि इसे किसको दिया जाना चाहिए। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार ज़कात देते वक्त इस बात का ख्याल रहना चाहिए कि यह उसे ही दें जिसे उसकी सबसे ज्यादा ज़रूरत है। वह शख़्स जिसकी आमदनी कम हो और उसका खर्च ज्यादा हो,अल्लाह ने उसके लिए कुछ पैमाने और ओहदे तय किए हैं। जिसके हिसाब से हर शख़्स को अपनी ज़कात देनी चाहिए। इसके अलावा और जगह भी बताई गई है जहां व्यक्ति ज़कात के पैसे का इस्तेमाल कर सकता है। लेकिन सबसे पहले ज़कात का हकदार फकीर है।

फकीर उस शख़्स को कहा जाता है जिसकी आमदनी 10 हज़ार रुपए सालाना है और उसका खर्च 21 हज़ार रुपए सालाना है। कहने का मतलब ये है फकीर वह शख़्स जिसकी आमदनी कुल खर्च से आधे से भी कम हो।
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दूसरा नंबर आता है मिसकीन का। मिसकीन वो शख़्स कहलाता है जो फकीर से थोड़ा अमीर है। वह शख़्स जिसकी आमदनी दस हज़ार रुपए सालाना हो और उसका खर्च 15 हज़र रुपए सालाना है।

तीसरा है- तारीक-ए-क्लब। तारीक-ए-क्लब उन लोगों को कहा जाता है जो लोग ज़कात की वसूली करते हैं और उसको बांटते हैं। आमतौर पर यह लोग उन देशों में पाए जाते हैं जहां पर इस्लामिक हुकूमत लागू होता है।
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चौथा है गदर्म को छुड़ाना। बहुत पहले समय में गुलाम और बंदियां रखी जाती थीं। जिसे बहुत बड़ा गुनाह माना जाता था। मगर अल्लाह की नज़र में हर इंसान का बराबर दर्जा है। इसलिए अल्लाह द्वारा मुसलमानों को हुक्म दिया गया कि अपनी ज़कात का इस्तेमाल ऐसे गुलामों को छुड़वाने के लिए करें।

पांचवा नंबर आता है “कर्ज़दारों” का। ज़कात का इस्तेमाल मुसलमानों के कर्ज़ चुकाने में भी कर सकते हैं। जैसे कोई मुसलमान कर्ज़दार है वो उस कर्ज़ को चुकाने की हालत में नही है तो आप उसको कर्ज़ चुकाने के लिये ज़कात का पैसा दे सकते हैं।
 

छ्ठां नंबर आता है “अल्लाह की राह में। जहां मुसलमान शिर्क और बिदआत में मसरुफ़ है और कुरआन, हदीस के इल्म से दूर हो ऐसी जगह आप अपनी ज़कात का इस्तेमाल कर सकते हैं।

आख़िर में आता है मुसाफ़िर की मदद। कहा जाता है कि एक मुसलमान का फ़र्ज़ बनता है कि अपने ज़कात के पैसे किसी ऐसे किसी शख़्स की मदद जिसके पास अपने घर तक आने-जाने का किराया भी न हों।
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