न्यायालय ने मनुस्मृति का उल्लेख कर पत्नी को गुजारा भत्ता देने से किया इंकार

Edited By Prachi Sharma,Updated: 26 Jan, 2024 07:28 AM

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झारखंड हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में बहू को पति की मां व दादी की सेवा करना अनिवार्य बता कर गुजारा भत्ता देने से इंकार कर दिया। पत्नी को अलग रहने की

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रांची (प.स.): झारखंड हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में बहू को पति की मां व दादी की सेवा करना अनिवार्य बता कर गुजारा भत्ता देने से इंकार कर दिया। पत्नी को अलग रहने की जिद नहीं करनी चाहिए। जस्टिस सुभाष चंद की अदालत ने दुमका के फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि बहू अपनी सास या परिवार के किसी बुजुर्ग की सेवा नहीं करने के लिए पति को परिवार से अलग होने के लिए बाध्य नहीं कर सकती और न ही इस आधार पर अलग रह सकती है।

हाईकोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 51 ए का हवाला देते हुए नागरिक के मौलिक कर्त्तव्य का भी जिक्र किया। इसके साथ ही जज ने मामले को संस्कृति और विरासत से जोड़ते हुए कहा कि पत्नी द्वारा बूढ़ी सास या दादी सास की सेवा करना भारत की संस्कृति है। न्यायालय ने परिवार में महिलाओं के महत्व पर जोर देने के लिए हिन्दू धार्मिक ग्रंथों का भी उदाहरण दिया। न्यायमूर्ति चंद ने अपने आदेश में मनुस्मृति के उद्धरणों का भी वर्णन किया और टेरेसा चाको की पुस्तक ‘इंट्रोडक्शन ऑफ फैमिली लाइफ एजुकेशन’ का भी हवाला दिया। 

उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों में बेटा शादी के बाद अपने परिवार से अलग हो जाता है, लेकिन भारत में ऐसा नहीं है। शीर्ष अदालत के एक फैसले का हवाला देते हुए न्यायमूर्ति चंद ने कहा कि पत्नी को विवाह के बाद अपने पति के परिवार के साथ रहना होता है, जब तक उनके अलग होने का कोई मजबूत न्यायोचित कारण नहीं हो।

यजुर्वेद के श्लोक का भी किया जिक्र
यजुर्वेद के श्लोक का भी जिक्र करते हुए आदेश में लिखा है कि- “हे महिला, तुम चुनौतियों से  हारने के लायक नहीं हो। तुम सबसे शक्तिशाली चुनौती को हरा सकती हो। दुश्मनों और उनकी सेवाओं को हराओ, तुम्हारी वीरता हजार है।”

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