श्री राम से जुड़ा है रंगोली का संबंध, जानिए क्या कहता है इतिहास

Edited By Updated: 26 Oct, 2019 11:17 AM

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दिवाली का त्यौहार नजदीक आते ही हर जगह सुंदर-सुंदर सजावट शुरू हो जाती है। लोग अपने घरों को रंग-रोगन करवाते रंग बिरंगे रंग की लाइटों से अपने घर की चार दीवारी को जग मग करते हैं।

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
दिवाली का त्यौहार नजदीक आते ही हर जगह सुंदर-सुंदर सजावट शुरू हो जाती है। लोग अपने घरों को रंग-रोगन करवाते रंग बिरंगे रंग की लाइटों से अपने घर की चार दीवारी को जग मग करते हैं। मान्यता है ये सब देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। क्योंकि धार्मिक किंवदंतियों के अनुसार मां लक्ष्मी इस दिन अपने भक्तों के घर में फेरा ज़रूर डालती है और उन्हें अपार धन-संपत्ति का वरदान प्रदान करती है। धार्मिक शास्त्रों के साथ-साथ वास्तु शास्त्र में भी कहा गया देवी लक्ष्मी केवल वहीं अपने पांव डालती है जहां सकारात्मकता होती है। इसलिए लोग दिवाली से पहले ही अपने घरों से सारी नकारात्कता फैलानी वाली समस्त चीज़ों को घर से निकाल बाहर फेंके देते हैं।
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इसके अलाना एक और परंपरा है जिसे आज भी निभाया जाता है, जो है रंगोली बनाना। कहा जाता है प्राचीन समय से ही रंगोली भारतीय संस्कृति का एक अटूट अंग रहा है। वास्तु शास्त्र के अनुसार इससे घर में व परिवार के सदस्यों के अंदर सकारात्मकता पैदा होती है। तो वहीं कुछ स्थानों पर अल्पना के नाम से प्रसिद्ध रंगोली का आगमन मोहनजोदड़ो और हड़प्पा सभ्यता से जुड़ा माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान श्रीराम, रावण का वध करने के बाद अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के  साथ 14 वर्ष के बाद अयोध्या लौटे थे तो अयोध्यावासियों ने अपने घर-द्वारों की सफाई करके आंगन व प्रवेश-द्वार पर रंगोली बनाई थी और खूब दीपमाला की थी। तभी से हर दीपावली पर रंगोली बनाने की परम्परा चल पड़ी। हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार रंगोली में बनाई गई आकृतियां घर के दोषों को दूर कर सुख-समृद्धि व खुशहाली लाती हैं।

रंगोली एक लोककला है जो विभिन्न शुभ अवसरों पर देवी-देवताओं के आगमन के लिए उनके स्वागत के लिए मुख्यद्वार के पास फर्श पर बनाई जाती है। भारत के विभिन्न राज्यों में विभिन्न नामों से जानी जाने वाली रंगोली की अलग-अलग शैली और परम्पराएं हैं जो वहां की संस्कृति को दर्शाती हैं।

विभिन्न क्षेत्रों के अनुसार रंगोली: बंगाल में इसे ‘अल्पना’ के नाम से जाना जाता है। महिलाएं चावल के आटे और सूखे पत्तों से रंगोली बनाती हैं। वे अल्पना के डिजाइन में सूरज, लक्ष्मी, कमल का फूल आदि बनाती हैं। बिहार में अरिपन के नाम से प्रसिद्ध हर खुशी के मौके पर खासतौर से फसल कटने की खुशी में इसे बनाया जाता है। उड़ीसा व उसके आस-पास के क्षेत्रों में इसको चावल के पेस्ट से बनाया जाता है। इसमें लक्ष्मी मां  के चरणों को जरूर बनाया जाता है क्योंकि ऐसा मानते हैं कि इससे मां लक्ष्मी घर में अवश्य निवास करती है। केरल और तमिलनाडु में हर रोज सुबह ‘कोलम’ को मुख्यद्वार के सामने बनाने का रिवाज है। कोलम को चावल के आटे से बनाया जाता है और इसे बनाने वाली महिला अन्नपूर्णा कहलाती है।
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रंगोली शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द ‘रंगावली’ से हुई जो ‘रंग’ और ‘आवली’ अर्थात रंगों की पंक्ति से मिल कर बना है। राजस्थान में मांडना, गुजरात में साथिया व छत्तीसगढ़ में चौक-पूरना के नाम प्रसिद्ध इस कला को उकेरने में विभिन्न रंगों, फूल-पत्तियों, हल्दी, रोली, चावल आदि का प्रयोग होता है। ‘रंगोली’ बनाने का डिजाइन इसे बनाने वाले व्यक्ति के कौशल पर निर्भर करता है।

रंगोली बनाने का महत्व : रंगोली बनाने का उद्देश्य चाहे कुछ भी हो लेकिन इसके फायदे बहुत हैं। इसे बनाने वाला स्वयं को तनावमुक्त महसूस करता है और अपने चारों तरफ सकारात्मक एनर्जी को पाता है। रंगोली बनाते समय हमारी उंगली और अंगूठे का प्रयोग होता है जिससे एक्यूप्रैशर बनता है और हमारा ब्लड सर्कुलेशन सही चलने लगता है। विभिन्न फूलों व रंगों से बनाने के कारण आसपास का वातावरण भी सुगंधित और सकारात्मक हो जाता है।

दीपावली पर रंगोली बनाने और दीए जलाने की परम्परा तो श्रीराम के अयोध्या आगमन के समय से जुड़ी है लेकिन इसके अतिरिक्त प्राचीन समय में लोगों का विश्वास था कि यह कलात्मक चित्रकला घरों को धन-धान्य से परिपूर्ण रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
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आज के समय में रंगों में रंगे लकड़ी के बुरादे, विभिन्न रंगों के चाक-पाऊडर, ताजे फूलों, अनाज या अलग-अलग रंगों में रंगे चावलों द्वारा प्रवेशद्वार पर विभिन्न डिजाइन उकेर कर रंगोली बनाई जाती है।

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