Devavrat Rekhe: क्या है दंडक्रम पारायण और क्यों कहलाता है यह वैदिक पाठक का मुकुट ? जानें इसकी अनसुनी महिमा

Edited By Updated: 04 Dec, 2025 08:11 AM

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Devavrat Rekhe: सिर्फ 19 वर्ष की आयु में किसी युवक से इतनी अद्भुत आध्यात्मिक उपलब्धि की उम्मीद शायद ही कोई करता हो लेकिन देवव्रत महेश रेखे ने ऐसा कार्य कर दिखाया है, जिसे आने वाली कई पीढ़ियां याद रखेंगी।

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Devavrat Rekhe: सिर्फ 19 वर्ष की आयु में किसी युवक से इतनी अद्भुत आध्यात्मिक उपलब्धि की उम्मीद शायद ही कोई करता हो लेकिन देवव्रत महेश रेखे ने ऐसा कार्य कर दिखाया है, जिसे आने वाली कई पीढ़ियां याद रखेंगी। उन्होंने वह साधना की है जिसे दंडक्रम पारायण कहा जाता है एक ऐसी दुर्लभ वैदिक परंपरा, जिसकी पूर्णता लगभग असंभव मानी जाती है।

यह उपलब्धि इतनी विशेष इसलिए है क्योंकि भारत में अंतिम बार यह कठिन वैदिक पाठ लगभग दो शताब्दी पहले हुआ था। ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो इससे पहले महाराष्‍ट्र के नासिक में वेदमूर्ति नारायण शास्त्री ने करीब 200 वर्ष पूर्व इस पारायण को पूरा किया था। देवव्रत द्वारा किया गया यह पाठ शुक्ल यजुर्वेद की एक विशिष्ट शाखा से उत्पन्न होता है, जिसे दंडक्रम परंपरा कहा जाता है।

यजुर्वेद: कर्म, यज्ञ और अनुशासन का वेद
चार वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद भारतीय ज्ञान परंपरा की नींव हैं। ये केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन, समाज, विज्ञान और आध्यात्मिकता का विशाल भंडार हैं। 

ऋग्वेद सबसे प्राचीन वेद है, जिसमें देवताओं की स्तुतियां और सूक्त शामिल हैं।
सामवेद में ऋचाओं को संगीतबद्ध रूप दिया गया है।
अथर्ववेद जीवन, चिकित्सा, तंत्र और व्यवहार के मंत्रों से भरा हुआ है।
यजुर्वेद यज्ञ एवं अनुष्ठानों की विधियों का विस्तृत मार्गदर्शन करता है।

यजुर्वेद की दो प्रमुख शाखाएं हैं- कृष्ण और शुक्ल। शुक्ल यजुर्वेद में ही माध्यन्दिन और काण्व नामक दो उपशाखाएं पाई जाती हैं।

माध्यन्दिन शाखा: दंडक्रम की मूल धारा
शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिन शाखा उत्तर भारत में विशेष
रूप से प्रतिष्ठित रही है। इसमें 40 अध्याय,1975 मंत्र और 303 अनुवाक सम्मिलित हैं। महर्षि याज्ञवल्क्य से यह ज्ञान महर्षि मध्यन्दिन ने प्राप्त किया था और इसी कारण इसका नाम माध्यन्दिन संहिता पड़ा। यह शाखा यज्ञ-विधान, मंत्रों और यज्ञ-क्रियाओं में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है।

क्या है दंडक्रम पारायण ?
दंडक्रम दो शब्दों से मिलकर बना है दंड यानी अनुशासन और क्रम यानी सुव्यवस्थित प्रक्रिया। इसका अर्थ हुआ विधि, क्रम और अनुशासन के साथ मंत्रों का विशिष्ट पाठ। दंडक्रम पारायण की विशेषता यह है कि इसमें मंत्र केवल सामान्य रूप से नहीं पढ़े जाते, बल्कि अनुलोम-विलोम यानी सीधा और उलटा दोनों रूपों में उच्चारित किए जाते हैं। पाठ की शुरुआत देवताओं इंद्र, अग्नि, सोम, वायु, पृथ्वी आदि के आह्वान मंत्रों से होती है। यह साधना स्मरण-शक्ति, तप और एकाग्रता की पराकाष्ठा मांगती है।

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