स्वर्णिम संयम की पूर्णता- आध्यात्म साधना के महापथ पर अग्रसर ‘साध्वी श्री मीना जी म.’

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 03 Mar, 2021 07:51 AM

sadhvi shri meena ji maharaaj

स्वयं को जानने का नाम आध्यात्म है। आध्यात्म को प्राप्त करने का प्रधान कारण स्वाध्याय एवं ध्यान है। स्व-बोध और ध्यान साधक को विस्मृत स्वरूप का बोध करवाता है। मैं कौन हूं? प्रथम यह जानना आवश्यक है।

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Sadhvi Shri Meena Ji Maharaaj: स्वयं को जानने का नाम आध्यात्म है। आध्यात्म को प्राप्त करने का प्रधान कारण स्वाध्याय एवं ध्यान है। स्व-बोध और ध्यान साधक को विस्मृत स्वरूप का बोध करवाता है। मैं कौन हूं? प्रथम यह जानना आवश्यक है। बीज को स्वयं का और स्वयं के भीतर छुपी हुई संभावनाओं का कोई बोध अथवा ज्ञान नहीं होता। ऐसे ही साधक को पता नहीं होता कि उसमें परमात्मा बनने की संभावना है परन्तु माली को विदित होता है कि यह बीज है और उसे उसकी संभावनाओं को प्रकट करने का प्रयोग भी ज्ञात होता है कि यही बीज एक दिन वट वृक्ष का आकार ग्रहण करने में सक्षम होगा।

आध्यात्म साधना के शिखरों पर आरूढ़ श्रमण संघीय उपाध्याय एवं पंजाब प्रवर्तक श्री फूलचंद्र जी म. ‘श्रमण’ की धर्म सभा में उपस्थित एक ग्यारह वर्षीय बालिका ने जब अध्यात्म की गहरी बातों को प्रवचन के माध्यम से श्रवण किया तो जन्म-जन्मान्तरों की गहरी अभीप्सा जागृत हुई कि मैं भी इसी मार्ग पर चलकर स्व का बोध प्राप्त करूंगी। ऐसा दृढ़ संकल्प लेकर 14 मई 1955 को लुधियाना में जन्मी सुश्री मीना ने कण्टकाकीर्ण पथ पर बढ़ने का साहस जुटा लिया।

पारिवारिक विरोधों का सामना करते हुए मातुश्री पदमा जैन व पिता लाला तरसेम लाल जैन (मनानी) तथा चाचा डा. तेजपाल जैन और ननिहाल पक्ष में लाला अमरनाथ जैन ‘मानवरत्न’ श्री राम कुमार जैन ‘श्रमणशाल’ लुधियाना सहित समस्त मामाश्री की सहमति प्राप्त करके 3 मार्च 1971 लुधियाना में महासती श्री चन्दा जी म. की सुयोग्य शिष्या परम्परा की महान साध्वी सरलात्मा उपप्रवर्तनी श्री अभय कुमारी जी म. के चरणों में जैन भागवती दीक्षा अंगीकार करके स्व को धर्मानुशासन में जोड़ लिया ।
स्वाध्याय, ध्यान, गुरु आज्ञा पालन व उनकी सेवा में संलग्न रहकर निरंतर अध्यात्म की ऊंचाइयों का स्पर्श करते हुए पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व दिल्ली आदि प्रांतों में पैदल यात्रा करते हुए साधना के 50 वर्षों को पूर्ण करते हुए जिन शासन के सिद्धांतों का प्रचार व प्रसार करके आपने अपनी विलक्षण प्रतिभा का परिचय दिया।

मुुमक्षु चेतनाओं को संयम के पथ पर अग्रसर करके अर्थात 12 शिष्याओं को अपनी चरण-शरण में लेकर उनके आध्यात्मिक जीवन का मार्ग को प्रशस्त किया।

सम्पर्क में आने वालों को भी धर्म मार्ग पर बढ़ने की सतत् प्रेरणा आप देते रहते हैं। आपका कंठ सुरीला है, प्रवचन कला आपकी प्रभावक है। ऐसे लगता है कि साक्षात् सरस्वती आपके कंठ में विराजित है।

अपने यशस्वी, वर्चस्वी संयम जीवन के 50 वर्षों की पूर्णता पर हम आपकी सुदीर्घ संयम साधना का अभिनंदन व अनुमोदन करते हैं तथा आपके उत्तम स्वास्थ्य की मंगल कामना करते हैं कि दीर्घायु शतायु होकर इसी प्रकार आप जैन शासन की प्रभावना करती रहें।

 

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