Sant Kabir Jayanti: कबीर जी की कथा के साथ पढ़ें उनकी अमृतवाणी

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 11 Jun, 2025 07:31 AM

sant kabir jayanti

Kabir Jayanti, 2025: कबीर वाणी जात-पात, अंधविश्वास को स्वीकार नहीं करती। कबीर साहिब का आविर्भाव ईस्वी सन् 1398 ज्येष्ठ पूर्णिमा सोमवार को हुआ। इसी दिन काशी के जुलाहे नीरू अपनी नवविवाहिता नीमा का गौना कराकर अपने घर लौट रहे थे कि रास्ते में नीमा को...

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 Kabir Jayanti, 2025: कबीर वाणी जात-पात, अंधविश्वास को स्वीकार नहीं करती। कबीर साहिब का आविर्भाव ईस्वी सन् 1398 ज्येष्ठ पूर्णिमा सोमवार को हुआ। इसी दिन काशी के जुलाहे नीरू अपनी नवविवाहिता नीमा का गौना कराकर अपने घर लौट रहे थे कि रास्ते में नीमा को प्यास लगी। वहां लहरतारा तालाब था, जहां नीमा पानी पीने के लिए गई। अभी उतर कर पानी पीने ही लगी थी कि वहां कमल दल के गुच्छ पर किसी शिशु के रोने की आवाज सुनाई दी। नीरू-नीमा आपसी सहमति से इस शिशु को घर ले गए, जो बाद में संत कबीर हुए। जिस स्थान पर उन्हें पाया, उसे प्रकटस्थली कहा जाता है, जहां इनका प्रकटस्थली मंदिर बनाया गया। वहां देश-विदेश से कबीर पंथी व अन्य धर्मों के लोग आकर उनका आशीर्वाद लेते हैं।

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मूलगादी कबीर चौरा मठ सिद्धपीठ काशी कबीर साहिब की कर्मभूमि है। नीरू टीला कबीर साहिब का घर था, जहां नीरू एवं नीमा रहते थे तथा वहीं सद्गुरु कबीर साहिब का लालन-पालन हुआ। कबीर साहिब के माता-पिता कपड़ा बुनने का कार्य करते थे। इस कार्य में कबीर साहिब बाद में निपुण हो गए और माता-पिता का हाथ बंटाने लगे लेकिन उनका झुकाव परमार्थ की ओर था तथा गूढ़ तत्वों को समझ कर उनकी गहराई में जाने लगे और उनका विवेचन करने की उनमें असाधारण योग्यता थी।

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कबीर साहिब की साखियां हमारे जीवन की आंखें हैं। साखी के बिना हम अज्ञान में अंधकार में डूबे रहते हैं। साखी अज्ञानता के अंधकार को दूर करके उसे प्रकाश में बदल देती है।

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कबीर साहिब कहते हैं कि आत्मा की कोई जात नहीं तो उसके भक्तों की क्या जात हो सकती है। सब जीव उस एक परम पिता परमात्मा की ज्योति से उत्पन्न हुए हैं, न कोई ऊंचा है न नीचा, न कोई अच्छा है न बुरा।

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जात नहि जगदीश की हरिजन की कहां होय। जात-पात के कीच में डूब मरो मत कोय॥
कबीर साहिब ने संसार को जात-पात के बंधनों से दूर रहने का उपदेश दिया। प्रभु की कोई जात नहीं, इंसान की क्या जात हो सकती है। इंसान को जात-पात के कीचड़ में नहीं फंसना चाहिए।

‘बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।’
कबीर साहिब कहते हैं कि जब मैं बाहर बुराई ढूंढने निकला तो कोई व्यक्ति बुरा न मिला। जब अपने भीतर झांक कर देखा तो ज्ञात हुआ कि मुझसे बढ़कर कोई बुरा नहीं।

मनहु कठोर मरै बनारस नरक न बांच्या जाई। हरि का संत मरै हांड़वैत सगली सैन तराई॥
कबीर साहिब ने कभी स्थान को महानता नहीं दी और कर्मों को ही उच्च समझा। कबीर साहिब उपदेश देते हैं कि कठोर हृदय पापी यदि बनारस में मरेगा तो वह नरक से बच नहीं सकेगा, परंतु भगवान के भक्त यदि मगहर में भी मरते हैं तो वे खुद ही मुक्त नहीं होते, बल्कि अपने सब शिष्यों को भी तार देते हैं।

प्रेमी ढूंढत मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोई। प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, तब सब विष अमृत होई॥’
कबीर साहिब कहते हैं मैं ईश्वर प्रेमी को ढूंढता फिर रहा हूं परंतु मुझे सच्चा ईश्वर प्रेमी कोई नहीं मिला। जब एक ईश्वर-प्रेमी दूसरे ईश्वर-प्रेमी से मिल जाता है तो विषय वासनताओं रूपी सम्पूर्ण सांसारिक विष, प्रेम रूपी अमृत में बदल जाता है।

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कबीर साहब ने इस संसार को समझने व जानने के लिए ज्ञान का रास्ता बताया है। दुनिया में झगड़ा इतना बढ़ गया है कि साखी ही झगड़े को जड़, हमारी अज्ञानता को दूर कर सकती है। दुनिया से अज्ञानता मिट जाए तो सारे झगड़े समाप्त हो जाएंगे।

कबीर साहब का ज्ञान, मन, बुद्धि, चित्त अहंकार से दूर है। उनकी साखियां अज्ञानता को दूर कर सत्य का साक्षात्कार कराती हैं। कबीर साहिब क्रांतिकारी व महान समाज सुधारक थे। अपना जीवन निर्गुण भक्ति में व्यतीत करते हुए उन्होंने समाज में फैले, जात-पात और अंधविश्वास, झूठे रीति-रिवाजों का विरोध किया। 

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