सच्चा प्रेमी बनने के लिए Follow करें ये Rules

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 13 Feb, 2021 11:44 PM

satsang

साधक के जीवन में दो बातों का होना आवश्यक है। यदि वह सेवा करे तो जिसकी भी करे उसको अपने से ज्यादा महत्व दे और प्रत्युत्तर में उससे मान, भोग तथा आशीर्वाद आदि कुछ भी न चाहे। भगवान की आज्ञा

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

InspirationalContext: साधक के जीवन में दो बातों का होना आवश्यक है। यदि वह सेवा करे तो जिसकी भी करे उसको अपने से ज्यादा महत्व दे और प्रत्युत्तर में उससे मान, भोग तथा आशीर्वाद आदि कुछ भी न चाहे। भगवान की आज्ञा तथा अपना कर्तव्य समझकर सेवा करे। यदि वह प्रेमपथ का साधक है तो भगवान को अपना साध्य माने, साधन न बनाए। भगवद् भजन के बदले कुछ मांगना तथा भगवान के सिवाय और कुछ चाहना, यह भगवान को साधन बनाना है। यदि भजन करके भगवान से हम धन, संतान आदि कुछ मांगते हैं तो हमारा साध्य तो वह इच्छित पदार्थ ही हुआ। भगवान तो उसकी प्राप्ति के साधन हुए। यही तो भगवान को साधन बनाना है। जो भक्त भगवान को छोड़कर कुछ भी चाहता है या भगवान से कुछ भी मांगता है, उसका साधन हुए भगवान। इस प्रकार भगवान को मानने वाले तथा भजने वाले के लिए यह बहुत हानिप्रद है।

PunjabKesari Satsang

भगवान तो सबको सदैव प्राप्त ही हैं। भला जब वे अनंत, सर्वव्यापी और सर्वाधार हैं तो किसी को भी अप्राप्त कैसे हो सकते हैं। आवश्यकता है उनके योग, बोध और प्रेम की, जिसके बिना सदैव प्राप्त प्रभु भी अप्राप्त से प्रतीत होते हैं। हमने अपने में जो चाह पैदा कर ली है यही हमारे और प्रभु के बीच में मोटा पर्दा कहो चाहे गहरी खाई कहो, बन गई है। इस चाह के कारण ही हम उन सर्वशक्तिमान के योग बोध-प्रेम से वंचित हैं। इसलिए साधक को चाह रहित होना अनिवार्य है।

जो मनुष्य गलती नहीं करता वही सबसे बड़ा त्यागी है और जो ठीक करता है वही सबसे बड़ा सेवक है। जो हर हाल में प्रसन्न रहता है वही सबसे बड़ा तपस्वी है। की हुई भूल पर पश्चाताप करने के समान कोई प्रायश्चित नहीं। भविष्य में भूल न करने के निश्चय के समान कोई दूसरा व्रत नहीं।

PunjabKesari Satsang

भगवान को अपना मानने के बराबर प्रेम प्राप्ति का अन्य साधन नहीं है। ये बातें जिसके जीवन में आ गईं, उसका कल्याण निश्चित है। यह बात परम सत्य है। भक्ति और मुक्ति का त्याग करने पर ही प्रेेम की प्राप्ति होती है। प्रेम अनंत और अगाध रस से पूर्ण है और अनिर्वचनीय है। ममता और कामना का त्याग करने पर मन का स्वत: निरोध होने से योग सिद्ध हो जाता है। इसका फल है शांति की अभिव्यक्ति।

PunjabKesari Satsang

इसी भांति सभी प्रकार के दोष और कामनाओं का त्याग करने पर चित्त शुद्ध होकर मोहरहित हो जाता है, जिसके होने से बोध का उदय होता है। इसका फल है-स्वाधीनता की अभिव्यक्ति। जो मनुष्य शांति में रमण नहीं करता और स्वाधीनता में भी संतुष्ट नहीं होता उसी को प्रेम की प्राप्ति होती है। इसलिए सही मायनों में तो जीवनमुक्त होने के बाद ही मनुष्य प्रेम प्राप्ति का अधिकारी होता है।

जिसके  हृदय में भोग-सुखों का लालच और काम-क्रोधादि विकार मौजूद हैं, वह प्रेम की प्राप्ति तो क्या, प्रेम की चर्चा करने और सुनने का भी अधिकारी नहीं है। वास्तव में जिसके हृदय में ममता, आसक्ति, कामना और स्वार्थ की गंध भी न हो, वही प्रेमी हो सकता है। इन दोषों का सर्वथा अभाव होने पर ही प्रेम का प्रादुर्भाव होता है। इन दोषों के रहते हुए अपने को प्रेमी मानना, अपने को और दूसरों को धोखा देना है। इसलिए यदि सच्चा प्रेमी होना है तो सभी दोषों का त्याग करो, प्रेम अवश्य मिलेगा।

PunjabKesari Satsang

 

 

Related Story

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!