सिंदूरदान किसे कहते हैं, विशेष मंत्र के साथ जानिए महत्व

Edited By Jyoti,Updated: 30 Nov, 2021 10:45 AM

sindoor daan importance and mantra

हिंदू धर्म में दान का अधिक महत्व है। धर्म शास्त्रों में विभिन्न प्रकार के दान बताए गए। तो वहीं इनमें से कई को करने का अपना रिवाज व परंपरा है। इन तमाम में से एक है सिंदूरदान।

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
हिंदू धर्म में दान का अधिक महत्व है। धर्म शास्त्रों में विभिन्न प्रकार के दान बताए गए। तो वहीं इनमें से कई को करने का अपना रिवाज व परंपरा है। इन तमाम में से एक है सिंदूरदान। जी हां, कहा जाता है हिंदू परंपरा में सिंदूरदान को सर्वश्रेष्ठ संस्कार माना जाता है। हिंदू धर्म से संबंध रखने वाले लगभग लोग जानते होंगे कि हिंदू संस्कृति में विवाह में कई तरह के संस्कार निभाए जाते हैं। इन्हीं में से एक होता है सिंदूरदान, जो जीवनपर्यंत पति-पत्नी के संबंधों को अखंडित बनाए रखता हैं।

हिंदू परंपरा से होने वाले विवाह के दौरान वर वधू की मांग भरकर इस पंरपरा को निभाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विवाह संस्कार के दौरान के बाद अग्नि परिक्रमा की रस्म अदा की जाती है, तपश्चात सप्तपदी होती है, जहां सप्तपदी संस्कार तक कन्या वर के दाहिनी तरफ बैठती है और सप्तपदी के पश्चात कन्या को बाईं ओर बिठाया जाता है, जहां वर सिंदूर से वधू की मांग भरता है। इसी परंपरा को वैदिक भाषा में सिंदूरदान के नाम से जाना जाता है।

धार्मिक शास्त्रों में किए वर्णन के अनुसार भारतीय संस्कृति में मांग में सिंदूर भरना एक वैवाहिक संस्कार होता है। शादी के बाद विवाहित महिलाएं प्रतिदिन अपने मांग में मांग सिंदूर से सजाती है। जो सुहागिन महिलाओं का प्रतीक व मंगलदायम माना जाता है।

कहा जाता है इससे एक तरफ सुहागिनों के रूप और सौंदर्य में निखार आता हैं, तो वहीं दूसरी तरफ उनके चेहरे की सुंदरता देखते ही बनती है। इसके अलावा बताया जाता है कि सौभाग्यवती स्त्रियां अपनी मांग में जिस जगह पर सिंदूर सजाती हैं, वह स्थान ब्रह्मरंध्र और अहिम नामक मर्मस्थल के ठीक ऊपर होता है, जो अत्यंत कोमल होता है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार प्रतिदिन मांग भरना अखंड सुहाग का प्रतीक होता है। शास्त्रों के अनुसार जो सुहागिन स्त्री हमेशा अपने सिर के बीचो-बीच मांग में सिंदूर भरती है, उसके पति के जीवन की रक्षा स्वयं मां सीता करती है।

यहां जानें सिंदूर दान के समय किस मंत्र का जप करना चाहिए-

सिंदूरदान मंत्र-
'ॐ सुमंगलीरियं वधूरिमां समेत पश्यत। सौभाग्यमस्यै दत्त्वा याथास्तं विपरेतन।।'

इस मंत्र के भाव अनुसार, 'वर कहता है कि विवाह मंडप में उपस्थित सभी सत्पुरुष एवं महिलाएं, आपके समक्ष मैं वधू की मांग सिंदूर से भर रहा हूं। आप वधू को सुमंगली यानी कल्याणकारी होते हुए देखो और हमें सौभाग्य और समृद्धि का वरदान देकर कृतार्थ करें। हे वरानने यानी वधू, तू सुमंगली यानी कल्याणकारी है। मैं तेरा सुमंगल होते हुए देख रहा हूं। तुम्हारे सौभाग्य को बढ़ाने वाले इस सिंदूर को तुमको दान करके मैं अपना कर्तव्य पूर्ण कर रहा हूं, जो तुम्हारी विपरीत स्थितियों में भी रक्षा करेगा।

इस तरह मंत्रोंच्चार के साथ मांगलिक विवाह संस्कार को पूर्णता दी जाती है।

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